Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ आगमो द्वारक कृति-- सन्दोहे ||5|| साधारणं मतम् // 18 // मनुते व्यवहारोऽत्र, कार्य सन्नैव कारणे / कार्योत्पादाय तद्यलः, क्रिया तन्नामला समा // 19 // ब्रूतेत्र निश्चयो हेतौ, सदा कार्य न यत्कृति: / मृदं विहाय कुम्भस्य, तन्त्वादौ सम्भवेत् नयक्वचित् // 20 // आविर्भावोत्र कार्यस्य, कृतिसाध्यो न यत्क्वचित् / एकस्मिन् सर्वकार्याणा-मुत्पत्ति: कारणे | विचारः मता // 21 // साधयेद् यत्र यत् सत् स्याद्, नान्यद् यतस्ततो नहि / असतः खरशृङ्गादेरुत्पत्त्यै यत्नवान्नरः // 22 // हेतुतां मन्यते हेतोः, सजातीनां नयः परः / समेषां निश्चयो नैव, किन्तु कार्यकृतां तकाम् // 23 // भव्यस्य मोक्षगामित्वं, व्यवहारोऽभिमन्यते / अयं तु सिद्धं भव्यत्व-भाजमाह न चापरम् // 24 / / पलालं नं दहत्यभिज्यते न घटः क्वचित् / नरका निर्गमो नास्ति, शून्यं न च प्रवेश्यते // 25 // प्रव्रजेन्नामुनि.व, मिथ्यादृक् शुद्धग भवेत् / अज्ञानी नाप्नुयात् ज्ञानं, संसारी नैव सिद्धथति // 26 / / निश्चयोऽत्र वदन्नेवं, प्राह धर्ममयोगजं / शेषं तदुपचारेण, यावदप्रमदं मुनिम् // 27 // कुर्वद्रूपं वदन् कार्य, वदत्याग् न साधुतां / / चरणोपहतौ ज्ञानं, दर्शनं केवलं न च // 28 // गुणधाम्नो मतेऽस्या याजन्तुव्रजति सप्तमम् / मौनं सम्यक्त्वमाहाऽतः, सम्यक्त्वं मौनमेव च // 29 // अस्यात्मा स्वगुणारामी, मोहं त्यक्त्वा भजन्निजं / चारित्रं दर्शनं ज्ञानं, कषायेन्द्रियनियात् // 30 // नास्याविरतसदृष्टिर्न देशविरतो न च / प्रमत्तसंयतश्चापि, व्यवहारात् समेप्यमी // 31 // न शङ्काद्या अतीचारा, न च बन्धक्धादयः / न चाप्रशस्तयोगाद्याः, किन्त्वेते भङ्गभाजनम् // 32 // ततो ये निश्चयं ख्यात, आत्मवेत्तृत्वमानिनः / ब्रुवन्तो मार्गशंसित्वं, सदारारम्भकिञ्चनाः / / // 33 // गुरुत्वं स्वेषु सर्वेषां, श्रोतणां रोपयन्ति च / श्राद्धसाधुपदस्थानी, जुगुप्सन्ते सदा क्रियाम् // 34 // सूत्रानुसारतस्तेषां, निश्चयाभासमग्नता / नाकल्पानां श्रियं राज्ञां, विन्देद्रीरिमयं क्वचित् // 35 // ज्ञानेनोद्योतिते मार्गे, भास्करण तमो नहि / तथाऽऽत्मरूपविज्ञाने, न लवो मोहसीधुजः // 36 // कलत्रेष्वादरं द्युम्ने, मनो- M // 5 // वृत्तिमघोचये / इन्द्रियेष्वभिरामित्वं, बालिशत्वं गतोपमम् // 37 // कषाये स्विन्नचित्तत्वं, धारयन्तो दिवानिशम् / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105