Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ मङ्गला ॐनमा जिनाय आगमोद्धारक-आचार्यप्रवरश्रीआनन्दसागरसरिवरनिर्मितः मङ्गलादिविचारः (1) आगमाद्धारककृतिसन्दाहे दि विचारः // 1 // शास्त्रादौ मङ्गलं योग, साध्यं वाच्यान्वितं बुधः। वक्ति प्रेक्षावतां यस्मा-तिविघ्नोज्झिता स्थिरा // 1 // प्रशस्तपरिणामात् स्याद्, विनानां द्रवर्ण क्षणात् / जिनाधालम्बनः शस्तः, सोपि तन्मङ्गलं वदेत् // 2 // विनोदकं लवं बहेविध्यातं वीक्ष्य कोविदैः। प्रदीपने न विश्वस्तैः, स्थेयं तद्वच्छ्ताहतौ // 3 // अल्पविघ्नो नयेनिष्ठां, प्रारब्धं मङ्गलं विना / विघ्नभोगेन विदुषां, ततोऽनास्था न मङ्गले // 4 // नोदकौघेन दावस्य, शान्तिदृष्टा तत न किं / प्रदीपनोपशमने, जलौघः क्षिप्यते जनैः // 5 // पापप्रणुत्तये प्रायः, शास्त्रारम्भः शुभात्मनां / सा शास्त्रानुसृतेः सिध्येत्, तत्कर्तुस्तन्नतिं व्रजेत् // 6 // श्रोतारः श्रवणात् शुद्धभावा भगवदादरात् / नयन्त्यविघ्नं निष्ठां तन-मनीपी म ले लगेत् // 7 // स्व विकल्पकृतं नेदं, दर्शितं सर्वदर्शिभिः / गुरुभिश्चीपादिष्टं त-ज्ज्ञायते मङ्गलादरात् // 8 // कृतज्ञाः कृतिनः कार्य-मुपकारकरान् नरान् / सदा स्मृत्वा सृजन्तीह, तत्कार्य IN मङ्गलं बुधैः // 9 // किं देवः कि गुरुवक्ता, धामास्तिक्यस्य वा न वा / इत्युदीरितसंदेह, श्रोतारं सान्त्वयेदतः | // 10 // कल्पितं कल्पवृक्षात् स्यात्, यद्वत्तद्वदिह क्रमात् / विनापहं स्थितिकरं, सन्तानाच्छित्तिकृत्परम् 11 // आदौ निर्विघ्ननिष्ठायां, कामना मध्यमे स्थितौ / अभ्यस्ते शिष्यसन्तान-दाने तत् (ता) मङ्गलत्रिकात् // 12 // त्रिधा मोदकवद्भागो, नान्तरा विपरीतता / श्रुते कर्मक्षयार्थत्वात् मङ्गले श्रोतयुद्धये // 16 // आमे घटे यथा पाथ-स्तथा पात्रे श्रुतं ततः / अधिकारी समुद्देश्यो, येन नान्यापकारिता // 14 // मुक्तये शासनारम्भः, सान खा. श्री केल्यानमाणपसुरि ज्ञामम पिर श्री महावीर गैम आराधना केन्द्र, काबा, 'जि गांधीनगर PIPAC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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