Book Title: Agam Suttani Satikam Part 08 Vipakshrut Auppatik Rajprashniya Sutram
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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मूलं - ३
१९७
जाव पडिरूवा, ते णं तिलगा जाव नंदिरुक्खा अन्नाहिं बहूहिं पउमलयाहिं नागलयां असोगलयाहिं चंपगलयाहिं चूयलयाहिं वनलयाहिं वासंतिय लयाहिं अइमुत्तयलयाहिं कुंदलयाहिं सामलयाहिं सव्वतो समंता संपरिखित्ता ।
ताओ णं पउमलयाओ जाव सामलयाओ निच्चं कुसुमियाओ जाव पडिरूवाओ, तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरिं बहवे अट्ठट्ठमंगलगा पन्नत्ता, तंजहा- सोध्थियं सिरिवच्छ नंदियावत्त वद्धमाणग भद्दासन कलस मच्छदप्पणा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निक्ककडच्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासादीया दरसणिज्जा अभिरूवा पडिरुवा ।
तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरिं बहवे किण्हचामरज्झया नीलचामरज्झया लोहियचामरज्झया हालद्दचामरज्झया सुकिल्लचामरज्झया अच्छा सण्हा लण्हा रूप्पपट्टा वइरामयदंडा जलयामलगंधिया सुरम्माम पासाइया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा,
तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरिं वहवे छत्ताइछत्ता पडागाइपडागा घंडाजुयला चामरजुयला उप्पलहत्थगा पउमहत्थगा कुमुयहत्थगा नलिनहत्थगा सुभगहत्थगा सोगंधियहत्थगा पोंडरियहत्थगा महापोंडरियहत्थगा सयपत्तहत्थगा सहस्सपत्तहत्थगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा । तस्स णं असोगवरपायवस्स हेट्टा एत्थ णं महं एगे पुढविसिलापट्टए पन्नत्ते इसिखंधासमल्लीणे विकखंभायामसुप्पमाणे किण्हे अंजणगधणकुवलयहलधरकोसेज्जसरिसआगासकेसकञ्जलकक्कयणइंदनीलअयसिकुसुमप्पगासे भिंगंजणभंगभेयरिट्ठगगुलियगवलाइरेगे भमरनिकुरुंबभूते जंबूफल असणकुसुमसणंबंधणनीलुप्पलपत्तणिगरमरगयासासगणयमकीयसिवन्ननिद्धे घने अज्झुसिरे रूवगपडिरूवगदरिसणिज्जे आयंसगतलोवमे सुरम्मे सीहासणसंठिते सुरूवेमुत्ताजालखईयंतकम्मे आइणगरूयवूरनवनीय-तूलफासे सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे' इति, अस्य व्याख्या 'तस्स णमिति' पूर्ववत् वन- खण्डस्य बहुमध्यदेशभागे 'अत्र' एतस्म्न प्रदेशे महान् एको। शोकवरपादपः प्रप्तीस्तीर्थकरगणधरैः, स च किम्भूत इत्याह- 'जाव पडिरूवे' अत्र यावच्छब्देन ग्रन्थान्तरप्रसिद्धं विशेषणजातं सूचितं तच्चेदं- 'दुरुग्गयकन्दमूलवट्टलट्ठसंधि असिलिट्टे धणमसिणसिणिद्ध अणुपुव्विसुजायणिरुवह तोव्विद्धपवरखंधी अनेगणरपवरभुयअगेज्झे कुसुमभरसमोणमंतपत्तलविसालसाले महुकरिभमरगणगुमुगुमाइयणिलिंतउङ्केतसस्सिरीए नानासउणगणमिहुणसुमहुरकण्ण- सुहपलत्तसद्दमहुरे कुसुविकुसविसुद्धरुकखमूले पासाइए दरिसणिजे अभिरूवे पडिरूवे'
'तत्र दूरमुत्-प्राबल्येन गतं कन्दस्याधन्तात् मूलं यस्य स दूरोद्गतकन्दमूलस्तथा वृत्तभावेन परिणत एवं नाम सर्वासु दिक्षु विदिक्षु च शाखाभि प्रशाखाभिश्च प्रसृतो यथा वर्तुलः प्रतिभासते इति, तथा लष्टाः - मनोज्ञाः सन्धयः - शाखा गता यस्य स लष्टसन्धिस्तथा अश्लिष्टः– अन्यैः पादपैः सहासम्पृक्तो, विविक्त इत्यर्थः, ततो विशेषणसमासः, स च पदद्वयमीलनेनावसेयो, बहूनां पदानां विशेषणसमासानभ्युपगमात्, तथा धनो - निविडो मसृणः - कोमलत्वक् न कर्कशस्पर्श, स्निग्धः - शुभकान्ति, आनुपूर्व्या-मलादिपरिपाट्या सुष्ठु जन्मदोषरहितं यथा भवति एवं जात आनुपूर्वीसुजातः, तथा निरपहत-उपदेहिकाद्युपद्रवरहित उद्विद्धः - उच्चः प्रवरः - प्रधानः स्कन्धो
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