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विषयानुक्रमणिका
गाथा संख्या विषय
९६४
९६५
९६६
९६७-९७२
९७३, ९७४
९७५
९७६
९७७
९७८, ९७९
९८०
९८१
९८२
९८३,९८४
९८५ ९८६,९८७
९८८
९८९,९९०
९९१,९९२
९९३
९९४
९९५
९९६
९९७-१९९
१०००
१००१ १००२
अप्रज्ञापनीय भाव और प्रज्ञापनीय भावों का अल्पबहुत्व |
चतुर्दशपूर्वधर परस्पर षट्स्थानवर्ती ।
श्रुतकेवली और केवलज्ञानी तुल्य कैसे ? तथा श्रुतकेवली प्रकाशन किससे करते हैं ?
अनन्त कायिक वनस्पति के लक्षण तथा परीत्तजीवी वनस्पति के लक्षण ।
लवण आदि पदार्थ अचित्त कब ? कैसे ?
परिणमन के कारण ।
वनस्पति प्रकरण में लवण आदि का ग्रहण क्यों ? शिष्य का प्रश्न आचार्य का समाधान |
आहार की निष्पति में केवल वनस्पति का ही उल्लेख क्यों ?
उदकयोनिक उदक में, उष्णयोनिक आतप में चिरकाल तक सचित्त ।
पत्र आदि जीव विप्रमुक्त होने की पहचान |
ग्रहण और प्रक्षेपण की चतुभंगी ।
तुल्य जीवों के घात पर अलग-अलग प्रायश्चित्त
क्यों?
समाधान और म्लेच्छ दृष्टान्त ।
प्रायश्चित्त पृच्छा आदि की द्वार गाथा ।
अनन्त वनस्पति और परीत वनस्पति में
प्रायश्चित्त की भिन्नता क्यों ?
प्रशस्त और अप्रशस्त कौटुंबिक दृष्टान्त |
भिन्न प्रलंब ग्रहण में क्या दोष ?
कन्यान्तः पुर रक्षक का दृष्टान्त ।
देवद्रोणी दृष्टान्त |
प्रलंब एषणीय न मिलने पर अनेषणीय का ग्रहण |
मद्यप का दृष्टान्त ।
प्रलंब ग्रहण वर्जनीय क्यों ?
सभी धर्म अनुगुरु किन्तु देशसाधर्म्य से ।
प्रवचन अनुधर्म ही आचरणीय है । भगवान् महावीर की घटना का उल्लेख ।
यही समूचा गम - प्रकार नियमतः साध्वियों के लिए ।
सूत्र २
'कल्पते भिन्नम्' का विवेचन । कारणिक सूत्र रचना और कारण ।
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गाथा संख्या विषय
१००३, १००४ पूर्वसूत्र में प्रलंबराक्षण प्रतिषिद्ध फिर इस सूत्र में कल्पनीय कैसे ? शिष्य द्वारा प्रश्न ।
१००५,१००६ दृष्टान्त से अर्थसिद्धि क्यों ? आचार्य का समाधान |
१००७
अर्थ की स्पष्टता दृष्टान्त के द्वारा ।
१००८, १००९ शिष्य द्वारा प्रस्तुत दृष्टान्त से उसी का
समाधान ।
प्रलंब सेवन अहितकर कब ?
बिना दृष्टान्त अर्थ का निर्णय संभव नहीं ।
१०१०
१०११
१०१२-१०१६ मरुक दृष्टान्त ।
१०१७
१०१८
मरुक दृष्टान्त का उपनय ।
ऊर्ध्वदर के प्रकार व ऊर्ध्वदर और सुभिक्ष की चतुर्भंगी ।
१०१९,१०२० अध्वप्रतिपन्न होने के आगाढ़ कारण। १०२१.१०२२ अध्वकल्पस्थिति की जानकारी देनी आवश्यक। न देने पर आचार्य आदि को प्रायश्चित्त । ग्लानत्व के प्रकार ।
रोग और आतंक में अंतर |
१०२५,१०२६ आगाढ़ और अनागाढ़ ग्लानत्व में ग्रहण अग्रहण
का विवेक।
वैद्य विषयक द्वार गाथा ।
आठ प्रकार के वैद्य व रोग का प्रतिकार पूछने के
लिए वैद्य के पास जाने की विधि।
१०२३
१०२४
१०२७
१०२८
१०२९
१०३०
रोगों के प्रतिकार में प्रयुक्त द्रव्य ।
अपरिणामक भिक्षु को समझाने के लिए भंडी और पोत की उपमा ।
१०३१, १०३२ वैद्य द्वारा निर्दिष्ट आलेप ग्रहण करने की विधि । निथिनीयों के लिए भी यही गम प्रकार।
१०३३
४७
१०३४
१०३५
१०३६
१०३७
सूत्र ३.५
पक्व के चार निक्षेप ।
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भाव पक्व की व्याख्या ।
पक्व ग्रहण श्रमणों के लिए दोषप्रद ।
प्रस्तुत सूत्र तीसरे और चौथे भंग के प्रसंग में है।
१०३८-१०४० श्रमणियों के लिए अविधि भिन्न या भिन्न प्रलंब ग्रहण का निषेध तथा उसके छह भंग । १०४११०४२ श्रमणियों के भंगानुसार प्रायश्चित्त । १०४३,१०४४ प्रलंब सूत्र का कथन न करने व उसको स्वीकार न करने पर प्रायश्चित्त ।
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