________________
बृहत्कल्पभाष्यम्
है, शेष भंग प्रतिषिद्ध है। संयतियों के लिए तीसरा भंग ही संबंधित हैं। वे तीन प्रकार के हैं-पुरुष, स्त्री और अनुज्ञात है।)
नपुंसक। इनके भेद-प्रभेद पूर्ववत् हैं।) ४२०. तत्थाऽऽवायं दुविहं, सपक्ख-परपक्खतो उ नायव्वं। ४२५. मणुय-तिरिएसु लहुगा, चउरो गुरुगा य दित्ततिरिएसु।
दुविहं होइ सपक्खे, संजय तह संजतीणं च॥ तिरियनपुंसित्थीसु य, मणुयत्थि-नपुंसगे गुरुगा। ४२१. संविग्गमसंविग्गा, संविग्ग मणुण्ण एतरा चेव। शौचवादी मनुष्यों तथा अदृप्स तिर्यंच आपात होने पर
असंविग्गा वि य दुविहा, तप्पक्खिय एयरा चेव॥ प्रायश्चित्त है चतुर्लघुक। दृप्त तिर्यंचों का आपात होने पर आपात दो प्रकार को होता है-स्वपक्ष तथा परपक्ष प्रायश्चित्त है चार गुरुक। तिर्यंच नपुंसक और स्त्री तथा का। स्वपक्ष आपात दो प्रकार का है-संयतों का तथा । मनुष्य स्त्री-नपुंसकों का आपात होने पर प्रत्येक में चार संयतियों का। संयत दो प्रकार के हैं-संविग्न और असंविग्न। संविग्न भी दो प्रकार के हैं-मनोज्ञ और ४२६. मणुय-तिरियपुंसेसुं, दोसु वि लहुगा तवेण कालेण। अमनोज्ञ। असंविग्न भी दो प्रकार के हैं-संविग्नपाक्षिक और __ कालगुरू तवगुरुगा, दोहिं गुरू अद्धोकंती वा। असंविग्नपाक्षिक।
अशौचवादी मनुष्य पुरुष और अदृप्त तिर्यंच पुरुष का ४२२. परपक्खे वि य दुविहं, माणुस तेरिच्छगं च नायव्वं। आपात होने पर प्रत्येक का प्रायश्चित्त है चार लघुक। यह ___ एक्कक्कं पि य तिविहं, पुरिसित्थि नपुंसगं चेव॥ तप तथा काल से लघु होता है। अशौचवादी मनुष्य स्त्री तथा
परपक्षापात भी दो प्रकार का होता है-मनुष्यापात तथा नपुंसक के आपात से चार गुरुक का प्रायश्चित्त आता है। तिर्यगआपात। इन दोनों के तीन-तीन प्रकार हैं-पुरुषापात, यह प्रायश्चित्त काल और तप दोनों से गुरु होता है। अथवा स्त्रीआपात और नपुंसकापात।
अ पक्रांति है।' ४२३. पुरिसावायं तिविहं, दंडिय कोडुबिए य पागइए। ४२७. पागय कोडुंबिय दंडिए य अस्सोय-सोयवादीसु।
ते सोयऽसोयवादी, एमेव नपुंस-इत्थीसु।। चउगुरुगा जमलपया, अहवा चउ छ च्च गुरु लहुगा। पुरुषापात तीन प्रकार का है-दंडिक, कौटुम्बिक तथा प्राकृत, कौटुम्बिक और दंडिक-इनके शीचवादी और प्राकृत अर्थात् दंडिकपुरुषापात, कौटुम्बिकपुरुषापात और अशौचवादी पुरुषों के आपात पर अ पक्रांति जाननी प्राकृतपुरुषापात। ये तीनों दो-दो प्रकार के होते हैं-शौचवादी चाहिए। यमलपद अर्थात् स्त्री-नपुंसक इनके चतुर्गुरुक और अशौचवादी। इसी प्रकार नपुंसक और स्त्री संबंधी भी प्रायश्चित्त जानना चाहिए। अथवा स्त्रियों के आपात पर तप यही भेद-प्रभेद होते हैं।
और काल से विशेषित चार गुरुक और नपुंसक के आपात ४२४. दित्तमदित्ता तिरिया, जण्णमुक्कोस मज्झिमा तिविहा। पर तप और काल से विशेषित छह लघु का प्रायश्चित्त
एमेवित्थि-नपुंसा, दुगुंछिय-ऽदुगुंछिया नवरं।। जानना चाहिए। तिर्यगापात-तिर्यंच दो प्रकार के होते हैं-दृप्त और अदृप्त। ४२८. तिरिएसु वि एवं चिय, अदुगुंछ-दुगुंछ-दित्त-ऽदित्तेसु। इन दोनों के तीन-तीन प्रकार हैं-जघन्य, उत्कृष्ट और अमणुण्णेयर लहुगो, संजतिवग्गम्मि चउगुरुगा। मध्यम। जघन्य हैं-मेष आदि। मध्यम हैं-महिष आदि। इसी प्रकार जुगुप्सित, अजुगुप्सित, दृप्त, अदृप्त तिर्यंच में उत्कृष्ट हैं-हाथी आदि। ये पुरुष तिर्यंच हैं। इसी प्रकार स्त्री अर्धापक्रांति-मतान्तर जानना चाहिए। स्वपक्ष के आपात में और नपुंसक तिर्यंच भी हैं। वे सब दो-दो प्रकार के होते शोधि इस प्रकार है-अमनोज्ञ संविग्न और असंविग्न के हैं-जुगुप्सित और अजुगुप्सित।
आपात में प्रायश्चित्त है लघुमास और संयतियों के आपात में (आपात का कथन किया गया। संलोक केवल मनुष्यों से प्रायश्चित्त है चार गुरुमास। १. कुछेक आचार्यों के मत में वह अापक्रांति इस प्रकार है-दृप्ततियंच. २. पागइयऽसोयवादी, पुरिसाणं लहुग दोहि वी लहुगा। नरों के आपात पर तथा मनुष्यों के, गृहस्थों के तथा पाषंडियपुरुषों के ते चेव य कालगुरू, तेसिं चिय सोयवादीणं॥ आपात पर चारलघुक जो कालगुरुक हों, यह प्रायश्चित्त आता है। ते च्चिय लहु कालगुरू, कोडंबीणं असोयवादीणं। अदृप्त तिर्यंच स्त्री-नपुंसक, जो अजुगुप्सित हैं, उनके आपात पर तेसिं चिय ते चेव उ, तवगुरुगा सोयवादीणं॥ कालगुरुक चारलघुक का प्रायश्चित्त है। उन्हीं दृप्त जुगुप्सित दंडिय असोय ति च्चिय, सोयम्मि य दोहि गुरुग चउलहुगा। तिर्यंचस्त्री-नपुंसकों के आपात पर तापोगुरुक चारलघुक तथा एस पुरिसाण भणिओ, इत्थि-नपुंसाण वी एवं ।। अशीचवादी मनुष्य स्त्री-नपुंसकों के आपात पर तपोगुरुक चार
(वृ. पृ. १२४) लघुक का प्रायश्चित्त आता है। (वृ. पृ. १२३,१२४)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org