Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 446
________________ ३७६ मुनि गीतार्थ नहीं होते अतः सबसे पहले वे अविभक्त पुंज से, पश्चात् अन्य विभक्त राशि से सागारिक पिंड ग्रहण करे। सागारियस्स पूयाभत्ते उद्देसिए चेइए पाहुडियाए, सागारियस्स उवगरणजाए निट्ठिए निसढे पाडिहारिए, तं सागारिओ देइ सागारियस्स परिजणो देइ, तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिग्गाहित्तए॥ (सूत्र २४) ३६५३.दव्वे छिण्णमछिण्णं, ण कप्पती कप्पए य इति वुत्तं। इदमण्णं पुण भावे, अव्वोच्छिण्णम्मि पडिसिद्धं॥ द्रव्य से छिन्न-विभक्त अंशिकाद्रव्य ग्रहण करना कल्पता है, अच्छिन्न-अविभक्त नहीं कल्पता, यह कहा गया है। प्रस्तुत सूत्र में यह अन्य बात कही जा रही है कि सागारिक की अव्यवच्छिन्न अंशिका भावतः प्रतिषिद्ध है। ३६५४.अविसेसिओ व पिंडो, हेट्ठिमसुत्तेसु एसमक्खातो। इह पुण तस्स विभागो, सो पुण उवकरण भत्ते वा॥ अथवा पूर्व सूत्रों में अविशेषित-अविभक्त सागारिक पिंड कहा गया है। प्रस्तुत सूत्र में सागारिक पिंड के विभाग का कथन है। वह उपकरण अथवा भक्त हो सकता है। ३६५५.संबंधी सामि गुरू, पासंडी वा वि तं समुहिस्स। पूया उक्खित्तं ति य, पट्टगभत्तं च एगट्ठा॥ सागारिक का कोई संबंधी उसका स्वामी, गुरु अथवा पाषंडी-अन्यतीर्थिक है वह पूज्य होता है। उसको उद्दिष्ट कर जो किया जाता है वह पूज्यभक्त कहलाता है। पूज्यभक्त, उत्क्षिप्तभक्त तथा पट्टकभक्त-ये सभी एकार्थक हैं। ३६५६.चेइय कडमेगट्ठ, पाहुडिय पहेणगं च एगट्ठा। उवगरणं वत्थादी, जाव विभागो व जोग्गं वा॥ चेतित और कृत-ये एकार्थक हैं। प्राभृतिका और प्रहेणक-ये एकार्थक हैं। उपकरण का अर्थ है-वस्त्र आदि। जितने विभाग उपकरणों के किए जाते हैं तथा जिसके लिए जो उपकरण योग्य है, वह वक्तव्य है। ३६५७.निविय कडं च उक्कोसकं च दिण्णं तु जाणसु णिसहूँ । भुत्तुव्वरियं पडिहारियं तु इयरं पुणो चत्तं। निष्ठित और कृत एकार्थक हैं। अथवा जो उत्कृष्ट वस्त्र आदि का निर्माण किया वह निष्ठित कहलाता है। जो दिया जाता है वह निसृष्ट कहलाता है। भोजन के पश्चात् जो शेष बचे वह हमें अर्पित करना है, वह प्रातिहारिक है। इतरत् बृहत्कल्पभाष्यम् अर्थात् अप्रातिहारिक वह है जिसका सागारिक ने पुनर् अदेयरूप में दे दिया है। सागारियस्स पूयाभत्ते उद्देसिए चेइए पाहुडियाए, सागारियस्स उवगरणजाए निट्ठिए निसटे पाडिहारिए, तं नो सागारिओ देइ नो सागारियस्स परिजणो देइ, सागारियस्स पूया देइ, तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिग्गाहित्तए॥ (सूत्र २५) सागारियस्स पूयाभत्ते उद्देसिए चेइए पाहुडियाए सागारियस्स उवगरणजाए निट्ठिए निसट्ठे अपाडिहारिए, तं सागारिओ देइ सागारियस्स परिजणो देइ, तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिग्गाहित्तए॥ (सूत्र २६) सागारियस्स पूयाभत्ते उद्देसिए चेइए पाहुडियाए सागारियस्स उवगरणजाए निट्ठिए निसढे अपाडिहारिए, तं नो सागारिओ देइ, नो सागारियस्स परिजणो देइ, सागारियस्स पूया देइ, तम्हा दावए एवं से कप्पइ पडिग्गाहित्तए॥ __ (सूत्र २७) ३६५८.पूयाभत्ते चेतिए, उवकरणे णिट्ठिते णिसटे य। तं पि ण कम्पति घेत्तुं, पक्खेवगमादिणो दोसा। पूजा के निमित्त जो भक्त बनाया है, जो उपकरण निष्ठित किया है, वह अप्रातिहारिकरूप में दे दिया, उसे ग्रहण करना भी नहीं कल्पता, क्योंकि उसमें प्रक्षेपक आदि दोष तथा भद्रक, प्रान्तकृत दोष होते हैं। वत्थ-पदं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा 'इमाइं पंच' वत्थाई धारित्तए वा परिहरित्तए वा, तं जहा-जंगिए भंगिए साणए 'पोत्तए तिरीडपट्टे' नामं पंचमे॥ (सूत्र २८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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