Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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विकोयपण्णत्तिका गणित
यहाँ भुजा च मान ली जाय तो इस समकोण त्रिभुज का क्षेत्रफल = ( 22 )
सम्मुख भुजा शून्य होगी और ऊँचाई व थ होगी, इसीलिये वर्ग राजु प्राप्त होता है । दूसरा सूत्र इस प्रकार है-. बाहु युक्त क्षेत्र क च थ है। यहाँ ध्यास क च तथा लम्ब बाहु च थ मान लेने पर, क्षेत्रफल =
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व्यास
बाहुXT होता है ।
""" सूत्र का प्रयोग किया जा सकता है।
इस प्रकार क च थ प्रथम अभ्यंतर क्षेत्र, च छ त थ द्वितीय, और छ ज ष त तृतीय अभ्यंतर क्षेत्र हैं जिनके क्षेत्रफल क्रमशः हैं, और वर्ग राजु हैं । चूँकि प्रत्येक का बाहल्य ७ राजु है इसलिये इन तीनों क्षेत्रों का ( ओ माय लेने से सांद्र क्षेत्रों ( सम्म क्षेत्र) में बदल जाते हैं उनका ) घनफल क्रमशः हे २४३ और ४०३ घन राजु होता है। इसी तरह, पूर्व पार्श्व ओर से लिये गये क्षेत्रों का घनफल होता है। शेष मध्य क्षेत्र का घनफळ १७४७ = ४९ पन राजु होता है। सबका योग करने पर १९६ पन राजु अधोलोकका घनफळ प्राप्त होता है।
शेष क्षेत्रों के लिये “भुज- पडिभुजमिलिदर्द्ध'
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(गा. १, १८४-१९१ )
अधोलोक का घनफल निकालने के लिये तीसरी विधि भी है ( आकृति - ६ देखिये ) |
स्केल:- १.०.०५.१
इस प्रशंसनीय विधि में क्षेत्र क ख ग घ में से १ वर्ग राजुवाले १९ क्षेत्रों को अलग निकाल कर शेष आकृतियों का क्षेत्रफल निकाला गया है और अंत में प्रत्येक के ७ राजु बाहुल्य से उन्हें गुणित कर अंत में सबका योग कर अधोलोक का घनफल निकाला गया है। आकृति में छाया वर्ग अलग दर्शाये गये हैं और बची हुई भुजायें समानुपात के प्रमेय द्वारा निकाल कर क्रमशः ऊपर से दोनों पावों में है,, 3,,, तथा डु अंत में उ या १ राजु प्राप्त की गई हैं। लोक के अंत की आकृति ख त थ द का क्षेत्रफल : [{ (1+3) +२ } x दय ] वर्ग राजु है, और घनफळ {(ě+उँ) ÷ २ } x १ x ७ घन राजु है। इसी प्रकार, समस्त शेष क्षेत्रों का घनफल, ६१ धन राजु प्राप्त होता है। इसमें १९ वर्ग क्षेत्रों का घनफल १९४७ = ११३ घन राजु जोड़ने पर कुल १९६ घन शत्रु, अधोलोक का घनफल प्राप्त होता है।
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