Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र अजगर किस प्रकार के हैं ? एक ही आकार के । आसालिक किस प्रकार के होते हैं ?
__ भगवन् ! आसालिक कहाँ सम्मूर्च्छित होते हैं ? गौतम ! वे मनुष्य क्षेत्र के अन्दर ढ़ाई द्वीपों में, निर्व्याघातरूप से पन्द्रह कर्मभूमियों में, व्याघात की अपेक्षा से पाँच महाविदेह क्षेत्रों में, अथवा चक्रवर्ती, वासुदेवों, बलदेवों, माण्डलिकों, और महामाण्डलिकों के स्कन्धावारों में, ग्राम, नगर, निगम, निवेशों में, खेट, कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख, पट्टण, आकार, आश्रम, सम्बाध और राजधानीनिवेशों में | इन सब का विनाश होनेवाला हो तब इन स्थानों में आसालिक सम्मूर्च्छिमरूप से उत्पन्न होते हैं। वे जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग-मात्र और उत्कृष्ट बारह योजन की अवगाहना से (उत्पन्न होते हैं) । उसके अनुरूप ही उसका विष्कम्भ और बाहल्य होता है । वह (आसालिक) चक्रवर्ती के स्कन्धावर आदि के नीचे की भूमि को फाड़ कर प्रादुर्भूत होता है । वह असंज्ञी, मिथ्यादृष्टि और अज्ञानी होता है, तथा अन्तर्मुहूर्त्तका की आयु भोग कर मर जाता है।
__ महोरग किस प्रकार के होते हैं ? अनेक प्रकार के । कई-कई महोरग एक अंगुल के, अंगुलपृथक्त्व, वितस्ति, वितस्तिपृथक्त्व, एक रत्नि, रत्निपृथक्त्व, कुक्षिप्रमाण, कुक्षिपृथक्त्व, धनुष, धनुषपृथक्त्व, गव्यूति, गव्यूतिपृथक्त्व, योजनप्रमाण, योजन पृथक्त्व, सौ योजन, योजनशतपृथक्त्व, और कोई हजार योजन के भी होते हैं । वे स्थल में उत्पन्न होते हैं, किन्तु जल में विचरण करते हैं, स्थल में भी विचरते हैं । वे मनुष्यक्षेत्र के बाहर के द्वीप-समुद्रों में होते हैं। इसी प्रकार के अन्य जो भी उरःपरिसर्प हों, उन्हें भी महोरगजाति के समझना । वे उरःपरिसर्प स्थलचर संक्षेप में दो प्रकार के हैं-सम्मूर्छिम और गर्भज । इनमें से जो सम्मूर्छिम हैं, वे सभी नपुंसक होते हैं । इनमें से जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के हैं । स्त्री, पुरुष और नपुंसक । उर:परिसों के दस लाख जाति-कुलकोटि-योनि-प्रमुख होते हैं।
भुजपरिसर्प किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के | नकुल, गोह, सरट, शल्य, सरंठ, सार, खार, गृहकोकिला, विषम्भरा, मूषक, मंगुसा, पयोलातिक, क्षीरविडालिका, चतुष्पद स्थलचर के समान इनको समझना । इसी प्रकार के अन्य जितने भी (भुजा से चलने वाले प्राणी हों, उन्हें भुजपरिसर्प समझना) । वे भुजपरिसर्प संक्षेप में दो प्रकार के हैं । सम्मूर्छिम और गर्भज । जो सम्मूर्छिम हैं, वे सभी नपुंसक होते हैं । जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के हैं। स्त्री, पुरुष और नपुंसक । भुजपरिसॉं के नौ लाख जाति-कुलकोटि-योनि-प्रमुख होते हैं। सूत्र-१६३
वे खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यंचयोनिक किस-किस प्रकार के हैं ? चार प्रकार के । चर्मपक्षी, लोमपक्षी, समुद्गक पक्षी और विततपक्षी । वे चर्मपक्षी किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के । वल्गुली, जलौका, अडिल्ल, भारण्डपक्षी जीवंजीव, समुद्रवायस, कर्णत्रिक और पक्षिविडाली । अन्य जो भी इस प्रकार के पक्षी हों, (उन्हें चर्मपक्षी समझना)
रोमपक्षी अनेक प्रकार के हैं । ढंक, कंक, कुरल, वायस, चक्रवाक, हंस, कलहंस, राजहंस, पादहंस, आड, सेडी, बक, बकाका, पारिप्लव, क्रौंच, सारस, मेसर, मसूर, मयूर, शतवत्स, गहर, पौण्डरिक, काक, कामंजुक, वंजुलक, तित्तिर, वर्त्तक, लावक, कपोत, कपिंजल, पारावत, चिटक, चास, कुक्कुट, शुक, बी, मदनशलाका, कोकिल, सेह और वरिल्लक आदि ।
समुद्गपक्षी एक ही आकार के हैं । वे (मनुष्यक्षेत्र से) बाहर के द्वीप-समुद्रों में होते हैं । विततपक्षी एक ही आकार के होते हैं । वे (मनुष्यक्षेत्र से) बाहर के द्वीप-समुद्रों में होते हैं । ये खेचरपंचेन्द्रिय संक्षेप में दो प्रकार के हैं। सम्मर्छिम और गर्भज । जो सम्मर्छिम हैं. वे सभी नपंसक हैं।
जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के हैं । स्त्री, पुरुष और नपुंसक । खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यंच-योनिकों के बारह लाख जाति-कुलकोटि-योनिप्रमुख होते हैं । सूत्र - १६४
सात, आठ, नौ, साढ़े बारह, दस, दस, नौ, तथा बारह, यों द्वीन्द्रिय से लेकर खेचर पंचेन्द्रिय तक की क्रमशः इतने लाख जातिकुलकोटि समझना ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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