Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र
पद-५-विशेष
सूत्र-३०७
भगवन् ! पर्याय कितने प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं । जीवपर्याय और अजीवपर्याय । भगवन् ! जीव-पर्याय क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! (वे) अनन्त हैं । भगवन् ! यह किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! असंख्यात नैरयिक हैं, असंख्यात असुर हैं, असंख्यात नागकुमार हैं, यावत् असंख्यात स्तनित-कुमार हैं, असंख्यात पृथ्वीकायिक हैं, यावत् असंख्यात वायुकायिक हैं, अनन्त वनस्पतिकायिक हैं, असंख्यात द्वीन्द्रिय यावत् असंख्यात पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक हैं, असंख्यात मनुष्य हैं, असंख्यात वाणव्यन्तर देव हैं, असंख्यात ज्योतिष्क देव हैं, असंख्यात वैमानिकदेव हैं और अनन्तसिद्ध हैं । हे गौतम ! इस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि वे (जीवपर्याय) अनन्त हैं सूत्र-३०८
भगवन् ! नैरयिकों के कितने पर्याय हैं? गौतम ! अनन्त । भगवन् ! आप किस हेतु से ऐसा कहते हैं ? गौतम! एक नारक दूसरे नारक से द्रव्य से तुल्य है । प्रदेशों से तुल्य है; अवगाहना से-कथंचित् हीन, कथंचित् तुल्य और कथंचित् अधिक है । यदि हीन है तो असंख्यातभाग अथवा संख्यातभाग हीन है; या संख्यातगुणा अथवा असंख्यातगुणा हीन है। यदि अधिक है तो असंख्यातभाग अधिक या संख्यातभाग अधिक है; अथवा संख्यातगुणा या असंख्यात -गुणा अधिक है । स्थिति से-कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक है । यदि हीन है तो असंख्यातभाग हीन यावत् असंख्यातगुण हीन है। अगर अधिक है तो असंख्यातभाग अधिक यावत् असंख्यातगुण अधिक है।
कृष्णवर्ण-पर्यायों से-कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक है । यदि हीन है, तो अनन्तभाग हीन, असंख्यातभाग हीन या संख्यातभाग हीन होता है; अथवा संख्यातगुण हीन, असंख्यातगुण हीन या अनन्तगुण हीन होता है । यदि अधिक है तो अनन्तभाग अधिक, यावत् अनन्तगुण अधिक होता है । नीलवर्ण, रक्तवर्ण, पीतवर्ण, हारिद्रवर्ण और शुक्लवर्णपर्यायों से-षट्स्थानपतित होता है । सुगन्ध और दुर्गन्धपर्यायों से-षट्स्थान-पतित है । तिक्तरस यावत् मधुररसपर्यायों से-षट्स्थानपतित है । कर्कश यावत् रूक्ष-स्पर्शपर्यायों से-षट्स्थान-पतित होता है । (इसी प्रकार) आभिनिबोधिक यावत् अवधिज्ञानपर्यायों, मतिअज्ञान यावत् विभंगज्ञानपर्यायों, चक्षुदर्शन यावत् अवधिज्ञानपर्यायों से-षट्स्थानपतित हीनाधिक होता है। गौतम! इस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि नारकोंके पर्याय अनन्त हैं सूत्र-३०९
भगवन् ! असुरकुमारों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! एक असुरकुमार दूसरे असुरकुमार से द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से तुल्य है; अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है, इसी प्रकार वर्ण, गन्ध, स्पर्श, ज्ञान, अज्ञान, दर्शन आदि पर्यायों से (पूर्वसूत्रवत्) षट्स्थानपतित है । हे गौतम ! इसी कारण से ऐसा कहा जाता है कि असुरकुमारों के पर्याय अनन्त कहे हैं । इसी प्रकार जैसे नैरयिकों और असुरकुमारों के समान यावत् स्तनितकुमारों के (अनन्तपर्याय कहने चाहिए)। सूत्र-३१०
भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा है ? गौतम! एक पृथ्वीकायिक दूसरे पृथ्वीकायिक से द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है और कदाचित् अधिक है । यदि हीन है तो असंख्यातभाग हीन है यावत् असंख्यातगुण हीन है। यदि अधिक है तो असंख्यातभाग अधिक है यावत् असंख्यातगुण अधिक है । स्थिति से कदाचित् हीन है कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो असंख्यातभाग हीन है, या संख्यातभाग हीन है, अथवा संख्यातगुण हीन है । यदि अधिक है तो असंख्यातभाग अधिक है, या संख्यातभाग अधिक है, अथवा संख्यातगुण अधिक है । वर्णों, गन्धों, रसों और स्पर्शों (के पर्यायों) से, मति-अज्ञान-पर्यायों, श्रुत-अज्ञान-पर्यायों एवं अचक्षुदर्शनपर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
भगवन् ! अप्कायिक जीवों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा है?
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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