Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 145
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र सूत्र-५४१ भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीस कोड़ा कोड़ी सागरोपम । उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है । सम्पूर्ण कर्मस्थिति में से अबाधाकाल को कम करने पर कर्मनिषेक का काल है । निद्रापंचक की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम का असंख्या-तवाँ भाग कम, सागरोपम के तीन सप्तमांश भाग की, उत्कृष्ट तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है । उसका अबाधा-काल तीन हजार वर्ष का है तथा सम्पूर्ण कर्मस्थिति में से अबाधाकाल को कम करने पर कर्मनिषेककाल है । भगवन् ! दर्शनचतुष्क कर्म की स्थिति ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है । उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है तथा सम्पूर्ण कर्मस्थिति में से अबाधाकाल को कम करने पर कर्मनिषेक-काल है। सातावेदनीयकर्म की स्थिति ईर्यापथिक-बन्धक की अपेक्षा जघन्य-उत्कृष्ट दो समय की, साम्परायिक-बन्धक की अपेक्षा जघन्य बारह मुहर्त की और उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम । इसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है। असातावेदनीयकर्म की स्थिति जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से तीन भाग की, उत्कृष्ट तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है । इसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। भगवन् ! सम्यक्त्व-वेदनीय ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त, उत्कृष्ट कुछ अधिक छियासठ सागरोपम की । मिथ्यात्व-वेदनीय की जघन्य स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम एक सागरोपम की है और उत्कृष्ट सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरोपम की । इसका अबाधाकाल सात हजार वर्ष का है तथा कर्मस्थिति में से अबाधाकाल कम करने पर कर्मनिषेककाल है । सम्यग-मिथ्यात्ववेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहर्त्त, उत्कृष्ट स्थिति भी अन्त-मुहर्त की। कषाय-द्वादशक की जघन्य स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम सागरोपम के सात भागों में से चार भाग की, उत्कृष्ट स्थिति चालीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है । इसका अबाधाकाल चार हजार वर्ष का है तथा निषेककाल पूर्ववत् । संज्वलन-क्रोध ? गौतम ! जघन्य दो मास, उत्कृष्ट चालीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम है। इसका अबाधाकाल चार हजार वर्ष का है, यावत् निषेक समझ लेना । मान-संज्वलन ? गौतम ! जघन्य एक मास की, उत्कृष्ट क्रोध की स्थिति के समान है । माया-संज्वलन ? गौतम ! जघन्य अर्धमास, उत्कृष्ट स्थिति क्रोध के बराबर है। लोभ-संज्वलन की स्थिति? जघन्य अन्तर्महर्त्त, उत्कष्ट स्थिति क्रोध के समान।। स्त्रीवेद की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम सागरोपम के सात भागों में से डेढ भाग की, उत्कृष्ट पन्द्रह कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है । इसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है । पुरुषवेद की स्थिति? जघन्य आठ संवत्सर की, उत्कृष्ट दस कोडाकोडी सागरोपम की है | इसका अबाधाकाल एक हजार वर्ष है। निषेककाल पूर्ववत् । नपुंसक-वेद की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम, सागरोपम के दो सप्तमांश भाग, उत्कृष्ट बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है । इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है । हास्य और रति की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के एक सप्तमांश भाग, उत्कृष्ट दस कोड़ाकोड़ी सागरोपम तथा इसका अबाधाकाल एक हजार वर्ष का है। अरति, भय, शोक और जुगुप्सा की स्थिति? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के दो सप्तमांश भाग की, उत्कृष्ट बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है। इनका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है। भगवन् ! नरकायु की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त-अधिक दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट करोड़ पूर्व के तृतीय भाग अधिक तेतीस सागरोपम । तिर्यंचायु की स्थिति ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट पूर्वकोटि के त्रिभाग अधिक तीन पल्योपम की है । इसी प्रकार मनुष्यायु में जानना । देवायु की स्थिति नरकायु के समान जानना । नरकगति-नामकर्म की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम एक सागरोपम के दो सप्तमांश भाग की, उत्कृष्ट बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम । इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष है। तिर्यंचगतिनामकर्म की स्थिति नपुंसकवेद के समान है। मनुष्यगति-नामकर्म की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के देढ मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 145

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