Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र पद-२७-कर्मवेदवेदकपद सूत्र-५४९
भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ, ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय । इसी प्रकार नारकों से वैमानिकों तक हैं। भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करता हुआ (एक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? गौतम ! सात या आठ का । इसी प्रकार मनुष्य में भी जानना । शेष सभी जीव वैमानिक पर्यन्त एकत्व और बहुत्व से नियमतः आठ कर्मप्रकृतियाँ वेदते हैं । (बहुत) जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करते हुए, गौतम !
१. सभी जीव आठ कर्मप्रकृतियों के वेदक होते हैं, २. कईं जीव आठ कर्मप्रकृतियों के वेदक होते हैं और कोई एक जीव सात कर्मप्रकृतियों का वेदक होता है, ३. कईं जीव आठ और कईं सात कर्मप्रकृतियों के वेदक होते हैं। इसी प्रकार मनुष्यपद में भी ये तीन भंग होते हैं । दर्शनावरणीय और अन्तराय कर्म के साथ अन्य कर्मप्रकृतियों में भी पूर्ववत् कहना । वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकर्म का वेदन करता हुआ (एक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? गौतम ! बन्धक-वेदक के समान वेद-वेदक के वेदनीय का कथन करना । मोहनीयकर्म का वेदन करता हुआ (एक) जीव, गौतम ! नियम से आठ कर्मप्रकृतियों को वेदता है । इसी प्रकार नारक से वैमानिक पर्यन्त जानना । बहुत्व विवक्षा से भी समझना ।
पद-२७-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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