Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 154
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र पद-२६-कर्मवेदबन्धपद सूत्र-५४८ भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ, ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक हैं । भगवन ! (एक) जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करता हआ कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है ? गौतम ! सात, आठ, छह या एक कर्मप्रकृति का । (एक) नैरयिक जीव ज्ञानावरणीयकर्म को वेदता हुआ गौतम ! सात या आठ कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त जानना । परन्तु मनुष्य का कथन सामान्य जीव के समान है। (बहत) जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करते हए कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं ? गौतम ! सभी जीव सात या आठ कर्मप्रकृतियों के, अथवा बहुत जीव सात या आठ के और एक छह का बंधक होता है, अथवा बहत जीव सात, आठ और छह के, अथवा बहुत जीव सात के और आठ के तथा कोई एक प्रकृति का, अथवा बहुत जीव सात, आठ और एक के, या बहुत जीव सात के तथा आठ के, एक जीव छह का और एक जीव एक का, अथवा बहुत जीव सात के या आठ के, एक जीव छह का और बहुत जीव एक के, अथवा बहुत जीव सात के, आठ के, छह के तथा एक के, अथवा बहुत जीव आठ के, सात के, छह के और एक के बंधक होते हैं । ये कुल नौ भंग हुए। एकेन्द्रिय जीवों और मनुष्यों को छोड़कर शेष जीवों यावत् वैमानिकों के तीन भंग कहना । (बहुत-से एकेन्द्रिय) जीव सात के और आठ के बन्धक होते हैं । मनुष्यों ? गौतम ! (१) सभी मनुष्य सात कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं, (२) बहुत-से सात और एक आठ कर्मप्रकृति बाँधता है, (३) बहुत-से मनुष्य सात के और एक छह का बन्धक है, इसी प्रकार छह के बन्धक के साथ भी दो भंग, (६-७) एक के बन्धक के साथ भी दो भंग, (८-११) बहुत-से सात के बन्धक, एक आठ का और एक छह का बन्धक, यों चार भंग, (१२-१५) बहुत-से सात के बन्धक, एक आठ का और एक मनुष्य एक प्रकृति का बन्धक, यों चार भंग, (१६-१९) बहुत-से सात के बन्धक तथा एक छह का और एक, एक का बन्धक, इसके भी चार भंग, (२०-२७) बहुत-से सात के बंधक, एक आठ का, एक छह का और एक, एक का बन्धक होता है, यो इसके आठ भंग हैं । कुल मिलाकर ये सत्ताईस भंग हैं । ज्ञानावरणीय-कर्म के समान दर्शनावरणीयकर्म एवं अन्तराय का कथन भी करना । भगवन् ! (एक) जीव वेदनीयकर्म का वेदन करता हुआ कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है ? गौतम! वह सात, आठ, छह या एक का बन्धक होता है, अथवा अबंधक होता है । इसी प्रकार मनुष्य में भी समझना । शेष नारक आदि वैमानिक पर्यन्त सात या आठ के बन्धक हैं । (बहत) जीव वेदनीयकर्म का वेदन करते हए कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं ? गौतम ! १. सभी जीव सात के, आठ के और एक के बन्धक होत हैं, २. बहुत जीव सात, आठ या एक के बन्धक होते हैं और एक छह का बन्धक होता है । ३. बहुत जीव सात, आठ, एक तथा छह के बन्धक होते हैं, ४-५. अबन्धक के साथ भी दो भंग, ६-९. बहत जीव सात के, आठ के, एक के बंधक होते हैं तथा कोई एक छह का तथा कोई एक अबन्धक भी होता है, यों चार भंग होते हैं । कुल नौ भंग हए । एकेन्द्रिय जीवों को अभंगक जानना । नारक आदि वैमानिकों तक के तीन-तीन भंग कहना । मनुष्यों के विषय में वेदनीयकर्म के वेदन के साथ, गौतम ! १-बहतसे सात के अथवा एक के बन्धक होते हैं । २-बहुत-से मनुष्य सात के और एक के बन्धक तथा कोई एक छह का, एक आठ का बन्धक है या फिर अबन्धक होता है । इस प्रकार ये कुल मिलाकर सत्ताईस भंग-प्राणातिपातविरत की क्रियाओं के समान कहना । वेदनीयकर्म के वेदन के समान आयुष्य, नाम और गोत्र कर्म में भी कहना । ज्ञानावरणीय समान मोहनीयकर्म के वेदन के साथ बन्ध को कहना। पद-२६-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 154

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