Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 180
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र तिमिर से रहित और पूर्ण शुद्ध होते हैं तथा शाश्वत भविष्यकाल में रहते हैं । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं? गौतम ! जैसे अग्नि में जले हए बीजों से फिर अंकुर की उत्पत्ति नहीं होती, इसी प्रकार सिद्धों के भी कर्मबीजों के जल जाने पर पुनः जन्म से उत्पत्ति नहीं होती। सूत्र-६२२ सिद्ध भगवान् सब दुःखों से पार हो चुके हैं, वे जन्म, जरा, मृत्यु और बन्धन से विमुक्त हो चुके हैं । सुख को प्राप्त अत्यन्त सुखी वे सिद्ध शाश्वत और बाधारहित होकर रहते हैं। पद-३६-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (१५) प्रज्ञापना-उपांगसूत्र -४मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद समाप्त मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 180

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