Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश/सूत्र और कदाचित् अनन्त होते हैं। इसी प्रकार मनुष्यत्व तक में भी जानना । वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों, वैमानिकों को असुर कुमारों समान समझना। विशेष ये है कि स्वस्थानमें एक से लेकर समझना तथा वैमानिक के वैमानिकत्व पर्यन्त कहना सूत्र-६०५
__ मारणान्तिकसमुद्घात स्वस्थान में भी और परस्थान में भी पूर्वोक्त एकोत्तरिका से समझ लेना, यावत् वैमानिक का वैमानिकपर्याय में कहना । इसी प्रकार ये चौबीस दण्डक चौबीसों दण्डकों में कहना । वैक्रियसमुद्घात की समग्र वक्तव्यता कषायसमुद्घात के समान कहना । विशेष यह कि जिसके (वैक्रियसमुद्घात) नहीं होता, उसके विषय में नहीं कहना । यहाँ भी चौबीस दण्डक चौबीस दण्डकों में कहना । तैजससमुद्घात का कथन मारणान्तिकसमुद्घात के समान कहना । विशेष यह कि जिसके वह होता है, उसी के कहना । इस प्रकार ये भी चौबीसों दण्डकों में कहना।
एक-एक नारक के नारक-अवस्था में कितने आहारकसमुद्घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! नहीं होते । भावी आहारकसमुद्घात भी नहीं होते । इसी प्रकार यावत् वैमानिक-अवस्था में समझना । विशेष यह कि मनुष्यपर्याय में अतीत (आहारकसमुद्घात) किसी के होता है, किसी के नहीं होता । जिसके होता है, उसके जघन्य एक अथवा दो और उत्कृष्ट तीन होते हैं । भावी आहारकसमुद्घात किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते । जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार होते हैं । इसी प्रकार समस्त जीवों और मनुष्यों में जानना ।
मनुष्य के मनुष्यपर्याय में अतीत आहारकसमुद्घात किसी के हुए हैं, किसी के नहीं हुए । जिसके होते है उसके जघन्य एक, दो या तीन,उत्कृष्ट चार होते हैं । इसी प्रकार भावी भी जानना । इसी प्रकार ये २४ दण्डक चौबीसों दण्डकों में यावत् वैमानिकपर्याय में कहना । एक-एक नैरयिक के नारकत्वपर्याय में कितने केवलिसमुद्घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! नहीं हुए हैं । और भावि में भी नहीं होते । इसी प्रकार वैमानिकपर्याय तक कहना । विशेष यह कि मनुष्यपर्याय में अतीत केवलिसमुद्घात नहीं होता । भावी किसी के होता है, किसी के नहीं होता है। जिसके होता है, उसके एक होता है। मनुष्य के मनुष्यपर्यायमें अतीत केवलिसमुद्घात किसी के होता है, किसी के नहीं होता । जिसके होता है, उसके एक होता है। इसी प्रकार भावी में भी कहना । इस प्रकार ये २४ दण्डक चौबीसों दण्डकोंमें जानना । सूत्र-६०६
भगवन ! (बहत-से) नारकों के नारकपर्याय में रहते हए कितने वेदनासमदघात अतीत हए हैं ? गौतम ! अनन्त । भावी कितने होते हैं ? गौतम ! अनन्त । इसी प्रकार वैमानिकपर्याय तक जानना । इसी प्रकार सर्व जीवों के यावत् वैमानिकों के वैमानिकपर्याय में समझना । इसी प्रकार तैजससमुद्घात पर्यन्त कहना । विशेष यह कि जिसके वैक्रिय और तैजससमुद्घात सम्भव हों, उसी के कहना । भगवन् ! (बहत) नारकों के नारकपर्याय में रहते हए कितने आहारकसमुद्घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! एक भी नहीं । भावी (आहारकसमुद्घात) कितने होते हैं ? गौतम ! नहीं होते । इसी प्रकार यावत् वैमानिकपर्याय में कहना । विशेष यह कि मनुष्यपर्याय में असंख्यात अतीत और असंख्यात भावी आहारकसमुद्घात होते हैं । इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना । विशेष यह कि वनस्पति-कायिकों के मनुष्यपर्याय में अनन्त अतीत और अनन्त भावी होते हैं । मनुष्यों के मनुष्यपर्याय में कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात एवं भावी भी जानना । शेष सब नारकों समान समझना । इस प्रकार इन चौबीसों के चौबीस दण्डक होते हैं
भगवन् ! नारकों के नारकपर्याय में रहते हुए कितने केवलिसमुद्घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! नहीं हुए और भावि में भी नहीं होते । इसी प्रकार वैमानिकपर्याय पर्यन्त कहना । विशेष यह कि मनुष्यपर्याय में अतीत नहीं होते, किन्तु भावी असंख्यात होते हैं । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना । विशेष यह कि वनस्पतिकायिकों के मनुष्यपर्याय में अतीत नहीं होते । भावी अनन्त होते हैं । मनुष्यों के मनुष्यपर्याय में अतीत केवलिसमुद्घात कदाचित् होते हैं, कदाचित् नहीं होते । जिसके होता है, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शत-पृथक्त्व होते हैं । मनुष्यों के भावी केवलिसमुद्घात कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात होते हैं । इस प्रकार इन चौबीस दण्डकों में चौबीस दण्डक घटित करके पृच्छा के अनुसार वैमानिकों के वैमानिकपर्याय तक कहना ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 174