Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 162
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र पद-२९-उपयोग सूत्र-५७२ भगवन् ! उपयोग कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का-साकारोपयोग और अनाकारोपयोग । साकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! आठ प्रकार का, आभिनिबोधिक-ज्ञानसाकारोपयोग, श्रुतज्ञान०, अवधिज्ञान०, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान-साकारोपयोग, मति-अज्ञान०, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान-साकारोपयोग । अनाकारोपयोग कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का-चक्षुर्दर्शन-अनाकारोपयोग, अचक्षुदर्शन०, अवधिदर्शन० और केवलदर्शन-अनाकारोपयोग । इसी प्रकार समुच्चय जीवों का भी जानना । भगवन् ! नैरयिकों का उपयोग कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का-साकारोपयोग और अनकारोपयोग । नैरयिकों का साकारोपयोग छह प्रकार का है। -मतिज्ञान-साकारोपयोग, श्रुतज्ञान०, अवधिज्ञान०, मतिअज्ञान०, श्रुत-अज्ञान० और विभंगज्ञान-साकारोपयोग । नैरयिकों का अनाकारोपयोग तीन प्रकार का है । चक्षुदर्शनअनाकारोपयोग, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन-अनाकारोपयोग । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना। पृथ्वीकायिक जीवों के उपयोग-सम्बन्धी प्रश्न । गौतम ! उनका उपयोग दो प्रकार का है-साकारोपयोग और अनाकारोपयोग । पृथ्वीकायिक जीवों का साकारोपयोग दो प्रकार का है-मति-अज्ञान और श्रुतअज्ञान । पृथ्वीकायिक जीवों का अनाकारोपयोग एकमात्र अचक्षुदर्शन है। इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों तक जानना । द्वीन्द्रिय जीवों का उपयोग ? दो प्रकार का है-साकारोपयोग और अनाकारोपयोग । द्वीन्द्रिय जीवों का साकारोपयोग चार प्रकार का है । -आभिनिबोधिकज्ञान-साकारोपयोग, श्रुतज्ञान०, मति-अज्ञान० और श्रुत-अज्ञान-साकारोपयोग । द्वीन्द्रिय जीवों का अनाकारोपयोग एक अचक्षुदर्शन ही है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय को कहना । चतु-रिन्द्रिय में भी इसी प्रकार कहना । किन्तु उनका अनाकारोपयोग दो प्रकार का है, चक्षुदर्शन० और अचक्षुदर्शन-अनाकारोपयोग । पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों को नैरयिकों के समान कहना । मनुष्यों के उपयोग समुच्चय उपयोग के समान कहना। वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों को नैरयिकों के समान कहना। __ भगवन् ! जीव साकारोपयुक्त होते हैं या अनाकारोपयुक्त ? गौतम ! दोनों होते हैं । क्योंकि-गौतम ! जो जीव आभिनिबोधिकज्ञान यावत् केवलज्ञान तथा मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान एवं विभंगज्ञान उपयोगवाले होते हैं, वे साकारोपयुक्त कहे जाते हैं और जो जीव चक्षुदर्शन यावत् केवलदर्शन के उपयोग से युक्त होत हैं, वे अनाकारो-पयुक्त कहे जाते हैं । भगवन् ! नैरयिक साकारोपयुक्त होते हैं या अनाकारोपयुक्त ? गौतम ! दोनों होते हैं, क्योंकि-गौतम ! जो नैरयिक आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान तथा मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान के उपयोग से युक्त होते हैं, वे साकारोपयुक्त होते हैं और जो नैरयिक चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन के उपयोग से युक्त होते हैं, वे अनाकारोपयुक्त होते हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना। पृथ्वीकायिकों के विषय में पृच्छा । गौतम ! पूर्ववत्, जो पृथ्वीकायिक जीव मत्यज्ञान और श्रुत-अज्ञान के उपयोगवाले हैं, वे साकारोपयुक्त होते हैं तथा जो पृथ्वीकायिक जीव अचक्षुदर्शन के उपयोगवाले होते हैं, वे अनाकारोपयुक्त होते हैं । इसी प्रकार अप्कायिक यावत् वनस्पतिकायिक साकारोपयुक्त भी होते हैं और अनाकारोपयुक्त भी । जो द्वीन्द्रिय आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, मत्यज्ञान और श्रुत-अज्ञान के उपयोगवाले होते हैं, वे साकारोप-युक्त होते हैं और जो द्वीन्द्रिय अचक्षुदर्शन के उपयोग से युक्त होते हैं, वे अनाकारोपयुक्त होते हैं । इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों में समझना, विशेष यह कि चतुरिन्द्रिय जीवों में चक्षुदर्शन अधिक कहना । पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकों को नैरयिकों के समान जानना । मनुष्यों में समुच्चय जीवों के समान जानना चाहिए । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में नैरयिकों के समान कहना। पद-२९-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 162

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