Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 160
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र सूत्र-५६१ भगवान् ! संज्ञी जीव आहारक है या अनाहारक ? गौतम ! वह कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहा-रक होता है । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना । किन्तु एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों के विषय में प्रश्न नहीं करना । बहुत-से संज्ञीजीव आहारक होते हैं या अनाहारक होते हैं ? गौतम ! जीवादि से लेकर वैमानिक तक तीन भंग होते हैं। असंज्ञी जीव आहारक होता है या अनाहारक? गौतम ! वह कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक होता है। इसी प्रकार नारक से वाणव्यन्तर पर्यन्त कहना । ज्योतिष्क और वैमानिक के विषय में प्रश्न नहीं करना । (बहुत) असंज्ञी जीव आहारक भी होते हैं और अनाहारक भी । इनमें केवल एक ही भंग है । (बहुत) असंज्ञी नैरयिक आहारक होते हैं या अनाहारक होते हैं ? गौतम-(१) सभी आहारक होते हैं, (२) सभी अनाहारक होते हैं, (३) एक आहारक और एक अनाहारक, (४) एक आहारक और बहुत अनाहारक होते हैं, (५) बहुत आहारक और एक अनाहारक होता है तथा (६) बहुत आहारक और बहुत अनाहारक होते हैं । इसी प्रकार स्तनित-कुमार पर्यन्त जानना । एकेन्द्रिय जीवों में भंग नहीं होता । द्वीन्द्रिय से पंचेन्द्रियतिर्यंच तक में पूर्वोक्त कथन के समान तीन भंग कहना । मनुष्यों और वाणव्यन्तर देवों में (पूर्ववत्) छह भंग कहना । नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक होता है । इसी प्रकार मनुष्य में भी कहना । सिद्ध जीव अनाहारक होता है । बहत्व की अपेक्षा से नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव आहारक भी होते हैं और अनाहारक भी और मनुष्यों में तीन भंग हैं । (बहुत-से) सिद्ध अनाहारक होते हैं। सूत्र - ५६२ भगवन् ! सलेश्य जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक होता है । इसी प्रकार वैमानिक तक जानना । भगवन् ! (बहुत) सलेश्य जीव आहारक होते हैं या अनाहारक ? गौतम ! समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर इनके तीन भंग हैं । इसी प्रकार कृष्ण, नील और कापोतलेश्यी में भी समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहना । तेजोलेश्या की अपेक्षा से पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिकों में छह भंग हैं । शेष जीव आदि में, जिनमें तेजोलेश्या पाई जाती है, उसमें तीन भंग कहना । पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या वाले जीव आदि में तीन भंग हैं । अलेश्य समुच्चय जीव (अयोगी केवली) मनुष्य और सिद्ध अनाहारक भी होते हैं। सूत्र-५६३ भगवन् ! सम्यग्दृष्टि जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! वह कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय में पूर्वोक्त छह भंग होते हैं । सिद्ध अनाहारक होते हैं । शेष सभी में तीन भंग होते हैं । मिथ्यादष्टियों में समुच्चय जीव और एकेन्द्रियों को छोडकर तीन-तीन भंग पाये जाते हैं । सम्यगमिथ्यादृष्टि जीव, गौतम ! आहारक होता है । एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना । बहत्व की अपेक्षा से भी इसी प्रकार जानना । सूत्र-५६४ भगवन् ! संयत जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! वह कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक । इसी प्रकार मनुष्य को भी कहना । बहत्व की अपेक्षा से तीन-तीन भंग हैं। असंयत जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! कदाचित् आहारक होता है और कदाचित् अनाहारक | बहुत्व की अपेक्षा जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर इनमें तीन भंग होते हैं । संयतासंयतजीव, पंचेन्द्रियतिर्यंच और मनुष्य, आहारक होते हैं। नोसंयत-असंयत-नोसंयतासंयत जीव और सिद्ध, अनाहारक होते हैं। सूत्र- ५६५ भगवन् ! सकषाय जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! वह कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त जानना । बहत्व अपेक्षा से जीव और एकेन्द्रिय को ह नारक आदि में)तीन भंग हैं। क्रोधकषायी जीव आदि में भी इसी प्रकार तीन भंग कहना । विशेष यह कि देवोंमें छ भंग मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 160

Loading...

Page Navigation
1 ... 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181