Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र है । ज्योतिष्क देवों का अवधिसंस्थान झालर आकार का है । सौधर्मदेवों का अवधि-संस्थान ऊर्ध्व-मृदंग आकार का है। इसी प्रकार अच्युतदेवों तक समझना । ग्रैवेयकदेवों के अवधिज्ञान फूलों की चंगेरी के आकार का है। भगवन् ! अनुत्तरौपपातिक देवों के अवधिज्ञान का आकार कैसा है ? गौतम ! यवनालिका के आकार का है। सूत्र-५८३
। भगवन् ! क्या नारक अवधि के अन्दर होते हैं, अथवा बाहर ? गौतम ! वे अन्दर होते हैं, बाहर नहीं । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना । पंचेन्द्रियतिर्यंच अवधि के बाहर होते हैं । मनुष्य अवधिज्ञान के अन्दर भी होते हैं और बाहर भी होते हैं । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों, नैरयिकों के समान हैं।
भगवन् ! नारकों का अवधिज्ञान देशावधि होता है अथवा सर्वावधि ? गौतम ! उनका अवधिज्ञान देशावधि होता है । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक समझना । पंचेन्द्रियतिर्यंचों का अवधि भी देशावधि होता है, सर्वावधि नहीं। मनुष्यों का अवधिज्ञान देशावधि भी होता है, सर्वावधि भी होता है । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों, नारकों के समान जानना।
भगवन् ! नारकों का अवधि क्या आनुगामिक होता है, अनानुगामिक होता है, वर्द्धमान होता है, हीयमान होता है, प्रतिपाती होता है, अप्रतिपाती होता है, अवस्थित होता है, अथवा अनवस्थित होता है ? गौतम ! वह अनुगामिक, अप्रतिपाती और अवस्थित होता है । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना । पंचेन्द्रियतिर्यंचों का अवधि आनगामिक भी होता है. यावत अनवस्थित भी होता है । इसी प्रकार मनुष्यों के अवधिज्ञान में समझ लेना । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों को, नारकों के समान जानना।
पद-३३-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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