Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 146
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश/सूत्र सप्तमांश भाग की, उत्कृष्ट पन्द्रह कोड़ाकोड़ी सागरोपम है | अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष है | भगवन् ! देवगतिनामकर्म की स्थिति कितने काल की कही है ? गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्रसागरोपम के एक सप्तमांश भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति पुरुषवेद की स्थिति के तुल्य है। एकेन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के दो सप्तमांश भाग की, उत्कृष्ट बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम । इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है । द्वीन्द्रिय-जातिनामकर्म की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के नव पैतीशांशवें भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है । इसका अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष का है । त्रीन्द्रियजातिनामकर्म की स्थिति ? जघन्य पूर्ववत् । उत्कृष्ट अठारह कोडाकोड़ी सागरोपम की है । इसका अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष का है । चतुरिन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति के सम्बन्ध में प्रश्न । हे गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योतम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के नव पैतीतांश भाग की, उत्कृष्ट अठारह कोडाकोडी सागरोपम है। अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष है । पंचेन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के दो सप्तमांश भाग की, उत्कृष्ट बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम है। अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है। औदारिक-शरीर-नामकर्म की स्थिति भी इसी प्रकार समझना । वैक्रिय-शरीर-नामकर्म की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र सागरोपम के दो सप्तमांश भाग की, उत्कृष्ट बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है । अबाधाकाल बीस वर्ष का है | आहारक-शरीर-नामकर्म की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तः सागरोपम कोड़ाकोड़ी की है । तैजस और कार्मण-शरीर-नामकर्म की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के दो सप्तमांश भाग की, उत्कृष्ट स्थिति बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है । अबाधाकाल दो हजार वर्ष है। औदारिक०, वैक्रिय० और आहारकशरीरांगोपांग, नामकर्मों की स्थिति भी इसी प्रकार है । पाँचों शरीरबन्धननामकर्मों की स्थिति भी इसी प्रकार है। पाँचों शरीरसंघात-नामकर्मों की स्थिति शरीर-नामकर्म की स्थिति के समान है । वज्रऋषभनाराचसंहनननामकर्म की स्थिति रति-नामकर्म के समान है । ऋषभनाराचसंहनननामकर्म की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के छह पैतीशांश भाग की, उत्कृष्ट बारह कोडाकोड़ी सागरोपम है अबाधाकाल सौ वर्ष का है । नाराचसंहनन-नामकर्म की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात पैतीशांश भाग की, उत्कृष्ट चौहद कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है । अबाधाकाल चौदह सौ वर्ष का है । अर्द्ध-नाराच संहनन-नामकर्म की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के आठ पैतीशांश भाग की, उत्कृष्ट सोलह कोडाकोड़ी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल सोलह वर्ष का है । कीलिकासंहनन-नामकर्म की स्थिति ? जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के नव पैतीशांश भाग की, उत्कृष्ट अठारह कोडाकोड़ी सागरोपम है । इसका अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष का है । सेवार्त्तसंहनन-नामकर्म की स्थिति ? जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के दो सप्तमांश भाग की, उत्कृष्ट बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है । अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है। संहनननामकर्मों के समान संस्थाननामकर्मों की भी स्थिति कहना। शुक्लवर्ण-नामकर्म की स्थिति जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के एक सप्तमांश भाग, उत्कृष्ट दस कोड़ाकोड़ी सागरोपम है । अबाधाकाल १००० वर्ष का है । पीत वर्ण-नामकर्म की स्थिति जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के पाँच अट्ठावीशांश भाग की, उत्कृष्ट साढ़े बारह कोड़ाकोड़ी सागरोपम है । अबाधाकाल साढ़े बारह सौ वर्ष का है । रक्त वर्ण-नामकर्म की स्थिति ? जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के ६/२८ भाग की, उत्कृष्ट पन्द्रह कोड़ाकोड़ी सागरोपम है । अबाधा-काल १५०० वर्ष का है । नीलवर्णनामकर्म की स्थिति ? जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के ७/२८ भाग की, उत्कृष्ट साढ़े सत्तरह कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है । अबाधाकाल साढ़े सत्तरह सौ वर्ष का है । कृष्णवर्ण-नामकर्म की स्थिति सेवार्तसंहनन के समान है । सुरभिगन्ध-नामकर्म की स्थिति, शुक्लवर्ण-नामकर्म के समान है । दुरभिगन्ध-नामकर्म की स्थिति सेवार्त मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 146

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