Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 150
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र आहारकशरीर और तीर्थंकरनामकर्म का बन्ध जघन्य और उत्कृष्ट अन्तः कोटाकोटि का है । पुरुषवेद का बन्ध वे जघन्य आठ वर्ष का और उत्कृष्ट दशकोटाकोटि सागरोपम का है | अबाधाकाल एक हजार वर्ष का है । यशःकीर्तिनाम और उच्चगोत्र का बन्ध भी पुरुषवेदवत् जानना । विशेष यह कि संज्ञीपंचेन्द्रिय जीवों का जघन्य स्थितिबन्ध आठ मुहूर्त का है । अन्तरायकर्म का बन्धकाल ज्ञानावरणीयकर्म के समान है । शेष सभी स्थानों में तथा संहनन, संस्थान, वर्ण, गन्ध नामकर्मों में बन्ध का जघन्य काल अन्तःकोटाकोटि सागरोपम का है और उत्कृष्ट स्थितिबन्ध का काल, इनकी सामान्य स्थिति के समान है । विशेष यह कि इनका अबाधाकाल' और अबाधाकालन्यून नहीं कहा जाता । इसी प्रकार अनुक्रम से सभी कर्मों का अन्तरायकर्म तक का स्थितिबन्ध-काल कहना । सूत्र-५४४ भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म की जघन्य स्थिति का बन्धक कौन है ? गौतम ! वह अन्यतर सूक्ष्मसम्पराय, उपशामक या क्षपक होता है । हे गौतम ! यही ज्ञानावरणीयकर्म का जघन्य और अन्य अजघन्य स्थिति का बन्धक होता है । इस प्रकार से मोहनीय और आयुकर्म को छोड़कर शेष कर्मों के विषय में कहना । मोहनीयकर्म की जघन्य स्थिति का बन्धक अन्यतर बादरसम्पराय, उपशामक अथवा क्षपक होता है । हे गौतम ! यह मोहनीयकर्म की जघन्य स्थिति उससे भिन्न और अन्य अजघन्य स्थिति का बन्धक होता है । आयुष्यकर्म का जघन्यस्थिति-बन्धक ? जो जीव असंक्षेप्य-अद्धाप्रविष्ट होता है, उसकी आयु सर्वनिरुद्ध होती है । शेष सबसे बड़े उस आयुष्य-बन्धकाल के अन्तिम के समय में जो सबसे जघन्य स्थिति को तथा पर्याप्ति-अपर्याप्ति को बाँधता है । हे गौतम ! यही आयुष्यकर्म की जघन्य स्थिति का बन्धक होता है, उससे भिन्न अजघन्य स्थिति का बन्धक होता है। सूत्र-५४५ भगवन् ! उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले ज्ञानावरणीयकर्म को क्या नारक बाँधता है, तिर्यंच बाँधता है, तिर्यंचनी बाँधती है, मनुष्य बाँधता है, मनुष्य स्त्री बाँधती है अथवा देव बाँधता है या देवी बाँधती है ? गौतम ! उसे नारक यावत् देव सभी बाँधते हैं । भगवन् ! किस प्रकार का नारक उत्कृष्ट स्थितिवाला ज्ञानावरणीयकर्म बाँधता है? गौतम ! जो संजीपंचेन्द्रिय, समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकारोपयोग वाला, जाग्रत, श्रुत में उपयोगवान्, मिथ्या-दृष्टि, कृष्णलेश्यावान्, उत्कृष्ट संक्लिष्ट परिणामवाला अथवा किंचित् मध्यम परिणाम वाला हो, ऐसा नारक बाँधता। भगवन् ! किस प्रकार का तिर्यंच उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले ज्ञानावरणीयकर्म को बाँधता है ? गौतम ! जो कर्मभूमि में उत्पन्न अथवा कर्मभूमिज सदृश हो, संजीपंचेन्द्रिय, यावत् किंचित् मध्यम परिणामवाला हो, ऐसा तिर्यंच बाँधता है। इसी प्रकार की तिर्यंचनी, मनुष्य और मनुष्यस्त्री भी उत्कृष्ट स्थितिवाले ज्ञानावरणीय कर्म को बाँधते हैं । देव-देवी को नारक के सदश जानना। आयुष्य को छोडकर शेष सात कर्मों के विषय में पूर्ववत जानना। भगवन् ! उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले आयुष्कर्म को क्या नैरयिक बाँधता है, यावत् देवी बाँधती है ? गौतम! उसे तिर्यंच, मनुष्य तथा मनुष्य स्त्री बाँधती है । भगवन् ! किस प्रकार का तिर्यंच उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले आयुष्कर्म को बाँधता है ? गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्मबन्ध समान जानना । भगवन् ! किस प्रकार का मनुष्य उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले आयुष्यकर्म को बाँधता है ? गौतम ! जो कर्मभूमिज हो अथवा कर्मभूमिज के सदृश हो यावत् श्रुत में उपयोगवाला हो, सम्यग्दृष्टि हो अथवा मिथ्यादृष्टि हो, कृष्णलेश्यी हो या शुक्ललेश्यी हो, ज्ञानी हो या अज्ञानी हो, उत्कृष्ट संक्लिष्ट परिणामवाला हो, अथवा तत्प्रयोग विशुद्ध होते हुए परिणामवाला हो, ऐसा मनुष्य बाँधता है । भगवन् ! किस प्रकार की मनुष्य-स्त्री उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले आयुष्यकर्म को बाँधती है ? गौतम ! जो कर्मभूमि में उत्पन्न हो अथवा कर्मभूमिजा के समान हो यावत् श्रुत में उपयोगवाली हो, सम्यग्दृष्टि हो, शुक्ल-लेश्यावाली हो, तत्प्रायोग्य विशुद्ध होत हुए परिणाम वाली हो, ऐसी मनुष्य-स्त्री बाँधती है । उत्कृष्ट स्थिति वाले अन्तरायकर्म के बंध के विषय में ज्ञानावरणीयकर्म के समान जानना । पद-२३-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 150

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