Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र पद-१०-चरमाचरम सूत्र-३६१
भगवन् ! पृथ्वीयाँ कितनी कही गई है ? गौतम ! आठ पृथ्वीयाँ हैं - रत्नप्रभा, शर्करप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, तमस्तमःप्रभा और ईषत्प्राग्भारा ।
भगवन् ! क्या यह रत्नप्रभापृथ्वी चरम है, अचरम है, अनेक चरमरूप है, अनेक अचरमरूप है, चरमान्त बहुप्रदेशरूप है अथवा अचरमान्त बहुप्रदेशरूप है ? गौतम ! नियमतः (वह) अचरम और अनेकचरमरूप है तथा चरमान्त अनेकप्रदेशरूप और अचरमान्त अनेकप्रदेशरूप है । युं यावत् अधःसप्तमी पृथ्वी तक कहना । सौधर्मादि से लेकर अनुत्तर विमान तक और ईषत्प्राग्भारापृथ्वी इसी तरह समझना । लोक और अलोक में भी इसी तरह कहना। सूत्र - ३६२
। इस रत्नप्रभापथ्वी के अचरम और बहवचनान्त चरम, चरमान्तप्रदेशों तथा अचरमान्तप्रदेशों में द्रव्यों, प्रदेशों से और द्रव्य-प्रदेश की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प है, बहुत है, तुल्य है अथवा विशेषाधिक है ? गौतम! द्रव्य से इस रत्नप्रभापृथ्वी का एक अचरम सबसे कम है । उससे (बहुवचनान्त) चरम असंख्यातगुणे हैं । अचरम और (बहुवचनान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं । प्रदेशों से 'चरमान्तप्रदेश' सबसे कम हैं । उनसे अचर मान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं । चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं । द्रव्य और प्रदेशों से सबसे कम इस रत्नप्रभापृथ्वी का एक अचरम है । उससे असंख्यातगुणे (बहुवचनान्त) चरम हैं। अचरम और (बहुवचनान्त) चरम, ये दोनों ही विशेषाधिक हैं । (उनसे) प्रदेशापेक्षया चरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) असंख्यातगुणे अचरमान्तप्रदेश हैं । चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं । इसी प्रकार तमस्तमःपृथ्वी तक तथा सौधर्म से लेकर लोक ऐसा ही समझना । सूत्र-३६३
भगवन् ! अलोक के अचरम, चरमों, चरमान्तप्रदेशों और अचरमान्तप्रदेशों में अल्पबहुत्व-गौतम ! द्रव्य सेसबसे कम अलोक का एक अचरम है । उससे असंख्यातगुणे (बहुवचनान्त) चरम हैं । अचरम और (बहुवच-नान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं । प्रदेशों से सबसे कम अलोक के चरमान्तप्रदेश हैं, उनसे अनन्तगुणे अचर-मान्त प्रदेश हैं । चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं । द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से-सबसे कम अलोक का एक अचरम है । उससे बहुवचनान्त चरम असंख्यातगुणे हैं | अचरम और (बहुवचनान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं । उनसे चरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं, उनसे भी अनन्तगुणे अचरमान्तप्रदेश हैं । चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं।
भगवन् ! लोकालोक के अचरम, (बहुवचनान्त) चरमों, चरमान्तप्रदेशों और अचरमान्तप्रदेशों में अल्प-बहत्वगौतम ! द्रव्य से-सबसे कम लोकालोक का एक-एक अचरम है । उससे लोक के (बहुवचनान्त) चरम असंख्यातगुणे हैं, अलोक के (बहुवचनान्त) चरम विशेषाधिक हैं, लोक और अलोक का अचरम और (बहवच-नान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं । प्रदेशों से-सबसे थोड़े लोक के चरमान्तप्रदेश हैं, अलोक के चरमान्तप्रदेश विशेषाधिक हैं, उनसे लोक के अचरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं, उनसे अलोक के अचरमान्तप्रदेश अनन्तगुणे हैं । लोक और अलोक के चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं । द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे कम लोकअलोक का एक-एक अचरम है, उससे लोक के (बहुवचनान्त) चरम असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) अलोक के (बहुवचनान्त) चरम विशेषाधिक हैं । लोक और अलोक का अचरम और (बहुवचनान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं। लोक के चरमान्तप्रदेश (उनसे) असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) अलोक के चरमान्तप्रदेश विशेषाधिक हैं, (उनसे) लोक के अचरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं, उनसे अलोकके अचरमान्तप्रदेश अनन्तगुणे हैं, लोक और अलोक के चरमान्तप्रदेश
और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं। उनसे सब द्रव्य विशेषाधिक हैं । उनसे सर्व प्रदेश अनन्तगुणे हैं और उनसे सर्व पर्याय अनन्तगुणे हैं ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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