Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 83
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र इसी प्रकार के प्राणी हैं, क्या वे सब पुरुषवचन हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! कांस्य, कंसोक, परिमण्डल, शैल, स्तूप, जाल, स्थाल, तार, रूप, अक्षि, पर्व, कुण्ड, पद्म, दुग्ध, दधि, नवनीत, आसन, शयन, भवन, विमान, छत्र, चामर, शृंगार, अंगन, निरंगन, आभरण और रत्न, ये और इसी प्रकार के अन्य जितने भी (शब्द) हैं, वे सब क्या नपुंसकवचन हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। __भगवन् ! पृथ्वी स्त्रीवचन है, आउ पुरुषवचन है और धान्य, नपुंसकवचन है, क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है ? क्या यह भाषा मृषा नहीं है ? हाँ, गौतम ! यह भाषा प्रज्ञापनी है, यह भाषा मृषा नहीं है । भगवन् ! पृथ्वी, यह भाषा स्त्रीआज्ञापनी है, अप यह भाषा पुरुष-आज्ञापनी है और धान्य, यह भाषा नपुंसक-आज्ञापनी है, क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है ? क्या यह भाषा मृषा नहीं है ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है । भगवन् ! पृथ्वी, यह स्त्री-प्रज्ञापनी भाषा है, अप, यह पुरुष-प्रज्ञापनी भाषा है और धान्य, यह नपुंसक-प्रज्ञापनी भाषा है, क्या यह भाषा आराधनी है ? क्या यह भाषा मृषा नहीं है ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है । भगवन् ! इसी प्रकार स्त्री या पुरुष अथवा नपुंसकवचन बोलते हुए क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है ? क्या यह भाषा मृषा नहीं है ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है। सूत्र-३७९ भगवन् ! भाषा की आदि क्या है ? भाषा का प्रभव-स्थान क्या है ? आकार कैसा है ? पर्यवसान कहाँ होता है ? गौतम ! भाषा की आदि जीव है । उत्पादस्थान शरीर है । वज्र के आकार की हैं । लोक के अन्त में उसका पर्यवसान होता है। सूत्र-३८०,३८१ भाषा कहाँ से उद्भूत होती है ? कितने समयों में बोली जाती है ? कितने प्रकार की है ? और कितनी भाषाएं अनुमत हैं ? भाषा का उद्भव शरीर से होता है । समयों में बोली जाती है । भाषा चार प्रकार की है, उनमें से दो भाषाएं अनुमत हैं। सूत्र - ३८२ भगवन् ! भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! दो प्रकार की । पर्याप्तिका और अपर्याप्तिका | पर्याप्तिका भाषा दो प्रकार की है । सत्या और मृषा । भगवन् ! सत्या-पर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! दस प्रकार की | जनपदसत्या, सम्मतसत्या, स्थापनासत्या, नामसत्या, रूपसत्या, प्रतीत्यसत्या, व्यवहारसत्या, भाव-सत्या, योगसत्या और औपम्यसत्या । सूत्र-३८३ दस प्रकार के सत्य हैं - जनपदसत्य, सम्मतसत्य, स्थापनासत्य, नामसत्य, रूपसत्य, प्रतीत्यसत्य, व्यवहारसत्य, भावसत्य, योगसत्य और दसवाँ औपम्यसत्य । सूत्र-३८४ भगवन् ! मृषा-पर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! दस प्रकार की । क्रोधनिःसृता, माननिःसृता, मायानिःसृता, लोभनिःसृता, प्रेयनिःसृता, द्वेषनिःसृता, हास्यनिःसृता, भयनिःसृता, आख्यायिका-निःसृता और उपघातनिःसृता। सूत्र-३८५ क्रोधनिःसृत, माननिःसृत, मायानिःसृत, लोभनिःसृत, प्रेयनिःसृत, द्वेषनिःसृत, हास्यनिःसृत, भयनिःसृत, आख्यायिकानिःसृत और दसवाँ उपघातनिःसृत असत्य । सूत्र - ३८६ भगवन् ! अपर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! दो प्रकार की । सत्या-मृषा और असत्यामृषा। भगवन् ! सत्यामृषा-अपर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! दस प्रकार की । उत्पन्नमिश्रिता, विगतमिश्रिता, उत्पन्न-विगतमिश्रिता, जीवमिश्रिता, अजीवमिश्रिता, जीवाजीवमिश्रिता, अनन्त-मिश्रिता, परित्तमिश्रिता, मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 83

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