Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र उद्दिश्यप्रविभक्तगति क्या है ? आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, प्रवर्तक, गणि, गणधर अथवा गणावच्छेदक को लक्ष्य करके जो गमन किया जाता है, वह उद्दिश्यप्रविभक्तगति है । चतुःपुरुषप्रविभक्तगति किसे कहते हैं ? जैसे-१. किन्हीं चार पुरुषों का एक साथ प्रस्थान हुआ और एक ही साथ पहुँचे, २. एक साथ प्रस्थान हुआ, किन्तु एक साथ नहीं पहुँचे, ३. एक साथ प्रस्थान नहीं हुआ, किन्तु पहुँचे एक साथ, तथा ४. प्रस्थान एक साथ नहीं हुआ और एक साथ भी नहीं पहुँचे, यह चतुःपुरुषप्रविभक्तगति है । वक्रगति चार प्रकार की है । घट्टन से, स्तम्भन से, श्लेषण से और प्रपतन से । जैसे कोई पुरुष कादे में, कीचड़ में अथवा जल में (अपने) शरीर को दूसरे के साथ जोड़कर गमन करता
उसकी) यह (गति) पंकगति है । वह बन्धनविमोचनगति क्या है ? अत्यन्त पक कर तैयार हुए, अतएव बन्धन से विमक्त आमों, आम्रातकों, बिजौरों, बिल्वफलों, कवीठों, भद्र फलों, कटहलों, दाडिमों, पारेवत फल, अखरोटों, चोर
अथवा तिन्दकफलों की रुकावट न हो तो स्वभाव से ही जो अधोगति होती है, वह बन्धनविमोचनगति है।
पद-१६-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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