Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 116
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र बन्धुजीवक वृक्ष हों, नीललेश्या इससे भी अनिष्टतर, अधिक अकान्त, अप्रय, अमनोज्ञ और अधिक अमनाम वर्ण हैं। भगवन् ! कापोतलेश्या वर्ण से कैसी है ? गौतम ! जैसे कोई खदिर के वृक्ष का सार भाग, खेरसार, धमासवृक्ष का सार, ताम्बा, ताम्बे का कटोरा, ताम्बे की फली, बैंगन का फूल, कोकिलच्छद वृक्ष का फूल, जवासा का फूल अथवा कलकुसुम हो, कापोतलेश्या वर्ण से इससे भी अनिष्टतर यावत् अमनाम हैं। भगवन् ! तेजोलेश्या वर्ण से कैसी है ? गौतम ! जैसे कोई खरगोश या मेष या सूअर या सांभर या मनुष्य का रक्त हो, बाल-इन्द्रगोप, बाल-सूर्य, सन्ध्याकालीन लालिमा, गुंजा के आधे भाग की लालिमा, उत्तम हींगुल, प्रवाल का अंकुर, लाक्षारस, लोहिताक्षमणि, किरमिची रंग का कम्बल, हाथी का तालु, चीन नामक रक्तद्रव्य के आटे की राशि, पारिजात का फूल, जपापुष्प, किंशुक फूलों की राशि, लाल कमल, लाल अशोक, लाल कनेर अथवा लालबन्धुजीवक हो, तेजोलेश्या इन से भी इष्टतर, यावत अधिक मनाम वर्णवाली होती है। भगवन ! पद्मलेश्या वर्ण से कैसी है? जैसे कोई चम्पा, चम्पक छाल, चम्पक का टुकड़ा, हल्दी, हल्दीगुटिका, हरताल, हरतालगुटिका, हरताल का टुकड़ा, चिकुर, चिकुर का रंग, स्वर्णशक्ति, उत्तम स्वर्ण-निकष, वासुदेव का पीताम्बर, अल्लकीफूल, चम्पाफूल, कनेरफूल, कूष्माण्ड लता का पुष्प, स्वर्णयूथिका फूल हो, सुहिरण्यिका-कुसुम, कोरंट फूलों की माला, पीत अशोक, पीला कनेर अथवा पीला बन्धुजीवक हो, पद्मलेश्या वर्ण में इनसे भी इष्टतर, यावत् अधिक मनाम होती है। भगवन् ! शुक्ललेश्या वर्ण से कैसी है ? गौतम ! जैसे कोई अंकरत्न, शंख, चन्द्रमा, कुन्द, उदक, जलकण, दही, दूध, दूध का उफान, सूखी फली, मयूरपिच्छ की मिंजी, तपा कर धोया हुआ चाँदी का पट्ट, शरद् ऋतु का बादल, कुमुद का पत्र, पुण्डरीक कमल का पत्र, चावलों के आटे का पिण्ड, कटुजपुष्पों की राशि, सिन्धुवारफूलों की माला, श्वेत अशोक, श्वेत कनेर अथवा श्वेत बन्धुजीवक हो, शुक्ललेश्या इनसे भी वर्ण में इष्टतर यावत् अधिक मनाम होती है। भगवन् ! ये छहों लेश्याएं कितने वर्णों द्वारा कही जाती है ? गौतम ! (ये) पाँच वर्णों वाली हैं । कृष्णलेश्या काले वर्ण से, नीललेश्या नीले वर्ण से, कापोतलेश्या काले और लाल वर्ण से, तेजोलेश्या लाल वर्ण से, पद्मलेश्या पीले वर्ण से और शुक्ललेश्या श्वेत वर्ण द्वारा कही जाती है। सूत्र-४६५ भगवन् ! कृष्णलेश्या आस्वाद (रस) से कैसी कही है ? गौतम ! जैसे कोई नीम, नीमसार, नीमछाल, नीमक्वाथ हो, अथवा कटुज, कटुजफल, कटुजछाल, कटुज का क्वाथ हो, अथवा कड़वी तुम्बी, कटुक तुम्बीफल, कड़वी ककड़ी, कड़वी ककड़ी का फल, देवदाली, देवदाली पुष्प, मृगवालुंकी, मृगवालुंकी का फल, कड़वी घोषातिकी, कड़वी घोषातिकी फल, कृष्णकन्द अथवा वज्रकन्द हो; भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या रस से इसी रूप की होती है ? कृष्णलेश्या स्वाद में इन से भी अनिष्टतर, अधिक अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ और अतिशय अमनाम है । भगवन् ! नीललेश्या आस्वाद में कैसी है ? गौतम ! जैसे कोई भृगी, भुंगी कण, पाठा, चविता, चित्रमूलक, पिप्पलीमूल, पीपल, पीपलचूर्ण, शृंगबेर, शृंगबेर चूर्ण हो; नीललेश्या रस में इससे भी अनिष्टतर, अधिक अकान्त, अधिक अप्रिय, अधिक अमनोज्ञ और अत्यधिक अमनाम है । भगवन् ! कापोतलेश्या आस्वाद में कैसी है ? गौतम ! जैसे कोई आम्रों, आम्राटकफलों, बिजौरों, बिल्वफलों, कवीठों, भट्ठों, पनसों, दाडिमों, पारावत, अखरोटों, बड़े बेरों, तिन्दुकोफलों, जो कि अपक्व हों, वर्ण, गन्ध और स्पर्श से रहित हों; कापोतलेश्या स्वाद में इनसे भी अनिष्टतर यावत् अत्यधिक अमनाम कही है। भगवन् ! तेजोलेश्या आस्वाद में कैसी है ? गौतम ! जैसे किन्हीं आम्रों के यावत् तिन्दुकों के फल जो कि परिपक्व हों, परिपक्व अवस्था के प्रशस्त वर्ण से, गन्ध से और स्पर्श से युक्त हों, तेजोलेश्या स्वाद में इनसे भी इष्टतर यावत् अधिक मनाम होती है । भगवन् ! पद्मलेश्या का आस्वाद कैसा है ? गौतम ! जैसे कोई चन्द्रप्रभा मदिरा, मणिशलाका मद्य, श्रेष्ठ सीधु, उत्तम वारुणी, आसव, पुष्पों का आसव, फलों का आसव, चोय से बना आसव, मधु, मैरेयक, खजूर का सार, द्राक्षा सार, सुपक्व इक्षुरस, अष्टविध पिष्टों द्वारा तैयार की हुई वस्तु, जामुन के फल की तरह स्वादिष्ट वस्तु, उत्तम प्रसन्ना मदिरा, जो अत्यन्त स्वादिष्ट, प्रचुररसयुक्त, रमणीय, झटपट ओठों से लगा ली जाए जो मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 116

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