Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र भगवन् ! अनाहारकजीव, अनाहारकरूप में निरन्तर कितने काल तक रहता है ? गौतम ! अनाहारक दो प्रकार के, छद्मस्थ-अनाहारक और केवली-अनाहारक । छद्मस्थ-अनाहारक, छद्मस्थ-अनाहारक के रूप में जघन्य एक समय, उत्कृष्ट दो समय तक रहता है। केवली-आहारक दो प्रकार के, सिद्धकेवली-अनाहारक और भवस्थकेवलीअनाहारक । सिद्धकेवली सादि-अपर्यवसित हैं । भवस्थकेवली-अनाहारक दो प्रकार के हैं-सयोगि-भवस्थकेवलीअनाहारक और अयोगि-भवस्थकेवली-अनाहारक । सयोगि-भवस्थकेवली-अनाहारक उसी रूपमें अजघन्य-अनुत्कृष्ट तीन समय तक रहता है । अयोगि-भवस्थकेवली-अनाहारक उसी रूपमें जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहता है। सूत्र-४८७
भगवन् ! भाषक जीव कितने काल तक भाषकरूप में रहता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त तक । अभाषक तीन प्रकार के हैं-अनादि-अपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । उनमें से जो सादि-सपर्यवसित हैं, वे जघन्य अन्तर्मुहर्त्त तक और उत्कृष्ट वनस्पतिकालपर्यन्त अभाषकरूप में रहते हैं।
सूत्र-४८८
परीत दो प्रकार के हैं । कायपरीत और संसारपरीत । कायपरीत जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट पृथ्वीकाल तक, असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों तक उसी पर्यायमें रहता है। संसारपरीत जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अनन्तकाल तक, यावत् देशोन अपार्द्ध पुद्गल-परावर्त्त उसी पर्याय में रहता है । अपरीत दो प्रकार के हैं, काय-अपरीत और संसार-अपरीत । काय-अपरीत जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तक उसी पर्याय में रहता है। संसारअपरीत दो प्रकार के हैं। अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित । नोपरीत-नोअपरीत सादि-अपर्यवसित हैं। सूत्र-४८९
भगवन् ! पर्याप्त जीव कितने काल तक निरन्तर पर्याप्त-अवस्था में रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक शतसागरोपम पृथक्त्व तक । अपर्याप्त जीव ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहता है। नोपर्याप्त-नोअपर्याप्त जीव सादि-अपर्यवसित हैं। सूत्र-४९०
भगवन् ! सूक्ष्म जीव कितने काल तक सूक्ष्म-पर्यायवाला रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पृथ्वीकाल । बादर जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यातकाल यावत् क्षेत्रतः अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण रहता है। भगवन् ! नोसूक्ष्म-नोबादर सादि-अपर्यवसित हैं। सूत्र-४९१
भगवन् ! संज्ञी जीव कितने काल तक संज्ञीपर्याय में रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक शतसागरोपमपृथक्त्वकाल । असंज्ञी असंज्ञी पर्याय में जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तक रहता है। नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी सादि-अपर्यवसित हैं। सूत्र-४९२
भगवन ! भवसिद्धिक जीव कितने काल तक उसी पर्याय में रहता है ? गौतम ! वह अनादि-सपर्यवसित हैं। अभवसिद्धिक अनादि-अपर्यवसित हैं । नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक सादि-अपर्यवसित हैं। सूत्र-४९३,४९४
धर्मास्तिकाय धर्मास्तिकायरूप में? वह सर्वकाल रहता है । इसी प्रकार यावत् अद्धासमय भी समझना ।
भगवन् ! चरमजीव ? गौतम ! (वह) अनादि-सपर्यवसित होता है । अचरम दो प्रकार के हैं, अनादिअपर्यवसित और सादि-अपर्यवसित ।
पद-१८-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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