Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 131
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश/सूत्र उत्कृष्ट शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की है । गर्भज-तिर्यंच-पंचेन्द्रियों के औदारिकशरीर की अवगाहना उत्कृष्ट छह गव्यूति की और पर्याप्तकों की भी इतनी ही है । औषक चतुष्पदों, गर्भज-चतुष्पदों के तथा इनके पर्याप्तकों के औदारिकशरीर की अवगाहना उत्कृष्टतः छह गव्यूति की होती है । सम्मूर्छिम-चतुष्पद० उनके पर्याप्तकों की उत्कृष्ट रूप से गव्यूतिपृथक्त्व है । इसी प्रकार उरःपरिसर्प० औधिक, गर्भज तथा (उनके) पर्याप्तकों की एक हजार योजन है । सम्मूर्छिम० उनके पर्याप्तकों की योजनपृ-थक्त्व है । भुजपरिसर्प० औधिक, गर्भज की उत्कृष्टतः गव्यूति-पृथक्त्व है । सम्मूर्छिम० की धनुषपृथक्त्व है । खेचर० औधिकों, गर्भजों एवं सम्मूर्छिमों, इन तीनों की उत्कृष्ट अवगाहना धनुषपृथक्त्व है। सूत्र-५१३ गर्भज जलचरों की एक हजार योजन, चतुष्पदस्थलचरों की छह गव्यूति, उर:परिसर्प-स्थलचरों की एक हजार योजन, भुजपरिसर्प० की गव्यूतिपृथक्त्व और खेचर पक्षियों की धनुषपृथक्त्व की औदारिकशरीरावगाहना होती है। सूत्र - ५१४ सम्मूर्छिम स्थलचरों की एक हजार योजन, चतुष्पद-स्थलचरों की गव्यूतिपृथक्त्व, उरःपरिसरों की योजन पृथक्त्व, भुजपरिसॉं तथा सम्मूर्छिम खेचर की धनुषपृथक्त्व, उत्कृष्ट औदारिकशरीरावगाहना है । सूत्र - ५१५ मनुष्यों के औदारिकशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट तीन गव्यूति । उनके अपर्याप्तक की जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की तथा सम्मूर्छिम की जघन्यतः और उत्कृष्टतः अंगुल के असंख्यातवें भाग की है । गर्भज मनुष्यों के तथा इनके पर्याप्तकों की जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्टतः तीन गव्यूति है। सूत्र-५१६ वैक्रियशरीर कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का, एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीर और पंचेन्द्रिय-वैक्रिय-शरीर। यदि एकेन्द्रिय जीवों के वैक्रियशरीर होता है, तो क्या वायुकायिक का या अवायुकायिक को होता है ? गौतम ! केवल वायुकायिक को होता है । वायुकायिक-एकेन्द्रियों में बादरवायुकायिक को वैक्रियशरीर होता है । बादर-वायुकायिकएकेन्द्रियमें पर्याप्त-बादर-वायुकायिक को वैक्रियशरीर होता है |पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है तो क्या नारकपंचेन्द्रिय को होता है, अथवा यावत् देव-पंचेन्द्रिय को ? गौतम ! नारक-पंचेन्द्रियों यावत् देव-पंचेन्द्रियों को भी होता है यदि नारक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है तो क्या रत्नप्रभा-पृथ्वी के अथवा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी के नारकपंचेन्द्रियों को होता है ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी यावत् अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिक-पंचेन्द्रियों को भी वैक्रियशरीर होता है । रत्नप्रभापृथ्वी में उनके पर्याप्तक अपर्याप्तक-नैरयिक-पंचेन्द्रियों दोनों को वैक्रियशरीर होता है। इसी प्रकार शर्कराप्रभापृथ्वी से अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिक-पंचेन्द्रियों में वैक्रियशरीर को कहना। यदि तिर्यंचयोनिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है तो क्या सम्मूर्छिम अथवा गर्भज-तिर्यंचयोनिकपंचेन्द्रियों को होता है ? गौतम ! केवल गर्भज-तिर्यंचयोनिक-पंचेन्द्रियों को होता है । गर्भज-तिर्यंचयोनिक-पंचेन्द्रियों में संख्यात वर्ष की आयुवाले गर्भज-तिर्यंचयोनिक-पंचेन्द्रियों को वैक्रियशरीर होता है, (किन्तु) असंख्यात वर्ष की आयुवाले को नहीं । संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज-तिर्यंचयोनिक-पंचेन्द्रियों में पर्याप्तक-संख्यातवर्षा-युष्कगर्भज-तिर्यंच-पंचेन्द्रियों को वैक्रियशरीर होता है, अपर्याप्तक को नहीं । संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यंच-योनिकपंचेन्द्रियों में गौतम ! जलचर०, स्थलचर० तथा खेचरसंख्यातवर्षायुष्क तीनों गर्भज-तिर्यंचयोनिक-पंचेन्द्रियों को वैक्रियशरीर होता है । जलचर-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यंचयोनिक-पंचेन्द्रियों में गौतम ! पर्याप्तक -जलचरसंख्यातवर्षायुष्क-गर्भज० को वैक्रियशरीर होता है, अपर्याप्तक० को नहीं । स्थलचर-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भजतिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों में, गौतम ! पर्याप्तक चतुष्पद० को भी, चतुष्पद स्थलचरों को भी परिसर्प, एवं भुजपरिसर्प० को भी वैक्रियशरीर होता है । इसी प्रकार खेचर-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यंचयोनिक-पंचेन्द्रियों को भी जान लेना, मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 131

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