Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 122
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र सादि-सपर्यवसित । जो सादि-सपर्यवसित हैं, वह जघन्य अन्तर्मुहर्त्त तक और उत्कृष्ट अनन्तकाल तक; काल से अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों और क्षेत्र से देशोन अपार्द्ध पुद्गल-परावर्त्त तक (मिथ्यादृष्टिपर्याय से युक्त रहता है ।) सम्यग्मिथ्यादृष्टि जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक सम्यग्दृष्टिपर्याय में रहता है। सूत्र-४८२ - भगवन् ! ज्ञानी जीव कितने काल तक ज्ञानीपर्याय में निरन्तर रहता है ? गौतम ! ज्ञानी दो प्रकार के हैं, सादिअपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । जो सादि-सपर्यवसित हैं, वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक छियासठ सागरोपम तक रहता है। भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञानी आभिनिबोधिकज्ञानी के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! सामान्य ज्ञानी के समान समझना । इसी प्रकार श्रुतज्ञानी को भी समझना । अवधि-ज्ञानी भी इसी प्रकार हैं, विशेष यह कि वह जघन्य एक समय तक ही अवधिज्ञानी के रूप में रहता है । मनःपर्यव-ज्ञानी जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि मनःपर्यवज्ञानीपर्याय में रहता है । केवलज्ञानी-पर्याय सादि-अपर्यवसित होती है । भगवन् ! अज्ञानी, मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी कितने काल तक स्व-पर्याय में रहते हैं ? गौतम ! ये तीन-तीन प्रकार के हैं । अनादि-अपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । जो सादि-सपर्यवसित हैं, वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल तक, काल की अपेक्षा से अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों तक एवं क्षेत्र की अपेक्षा से देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्त्त तक रहते हैं । विभंगज्ञानी विभंगज्ञानी के रूप में जघन्य एक समय, उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम तक रहता है। सूत्र-४८३ भगवन् ! चक्षुर्दर्शनी कितने काल तक चक्षुर्दर्शनीपर्याय में रहता है ? गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार सागरोपम तक (चक्षुर्दर्शनीपर्याय में रहता है) । भगवन् ! अचक्षुर्दर्शनी, अचक्षुर्दर्शनीरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! अचक्षुर्दर्शनी दो प्रकार के है । अनादि-अपर्यवसित और अनादिसपर्यवसित । अवधिदर्शनी, अवधिदर्शनीरूप में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट कुछ अधिक दो छियासठ सागरो-पम तक रहता है। केवलदर्शनी सादि-अपर्यवसित होता है। सूत्र-४८४ भगवन् ! संयत कितने काल तक संयतरूप में रहता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन करोड़ पूर्व तक । भगवन् ! असंयत कितने काल तक असंयतरूप में रहता है ? गौतम ! असंयत तीन प्रकार के हैं, अनादि-अपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित, सादि-सपर्यवसित । जो सादि-सपर्यवसित हैं, वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल तक, काल की अपेक्षा-अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों तक तथा क्षेत्र की अपेक्षा-देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्त तक रहता है । संयतासंयत जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि तक रहता है । भगवन् ! नोसंयत, नोअसंयत, नोसंयतासंयत कितने काल तक उसी रूप में रहता है ? गौतम ! वह सादि-अपर्य-वसित हैं । सूत्र-४८५ भगवन् ! साकारोपयोगयुक्त जीव निरन्तर कितने काल तक साकारोपयोगयुक्तरूप में बना रहता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक । अनाकारोपयोगयुक्त जीव भी इसी प्रकार जघन्य और उत्कृष्ट अन्त-र्मुहूर्त तक रहता है। सूत्र - ४८६ भगवन् ! आहारक जीव कितने काल तक आहारकरूप में रहता है ? गौतम ! आहारक जीव दो प्रकार के हैं, छद्मस्थ-आहारक और केवली-आहारक । छद्मस्थ-आहारक जघन्य दो समय कम क्षुद्रभव ग्रहण जितने काल और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक छद्मस्थ-आहारकरूप में रहता है । कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों तथा क्षेत्रतः अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण । केवली-आहारक केवली-आहारक के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट देशोन कोटिपूर्व तक रहता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 122

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