Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र सूत्र-४७७
भगवन् ! सयोगी जीव कितने काल तक सयोगीपर्याय में रहता है ? गौतम ! सयोगी जीव दो प्रकार के हैंअनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित । भगवन् ! मनोयोगी कितने काल तक मनोयोगी अवस्था में रहता है? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त । इसी प्रकार वचनयोगी भी समझना । काययोगी, काययोगी के रूप में जघन्य-अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तक रहता है । अयोगी सादि-अपर्यवसित है। सूत्र-४७८
भगवन् ! सवेद जीव कितने काल तक सवेदरूप में रहता है ? गौतम ! सवेद जीव तीन प्रकार के हैं । अनादिअनन्त, अनादि-सान्त और सादि-सान्त । जो सादि-सान्त हैं, वह जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः अनन्तकाल तक; काल से अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों तक तथा क्षेत्र की अपेक्षा से देशोन अपार्द्धपुद्गल-परावर्त तक रहता है । भगवन् ! स्त्रीवेदक जीव स्त्रीवेदकरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट एक अपेक्षा से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक ११० पल्योपम तक, एक अपेक्षा से पूर्वकोटि-पृथक्त्व अधिक अठारह पल्योपम तक, एक अपेक्षा से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक चौदह पल्योपम तक, एक अपेक्षा से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक सौ पल्योपम तक, एक अपेक्षा से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक पल्योपमपृथक्त्व तक रहता है । पुरुषवेदक जीव पुरुषवेदकरूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक सागरोपमशतपृथक्त्व तक रहता है । नपुंसकवेदक नपुंसकवेदकपर्याययुक्त जघन्य एक समय और उत्कृष्ट वनस्पतिकालपर्यन्त रहता है । अवेदक दो प्रकार के हैं, सादि-अनन्त और सादि-सान्त। जो सादि-सान्त हैं, वह जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक अवेदकरूप में रहता है। सूत्र -४७९
भगवन् ! सकषायी जीव कितने काल तक सकषायीरूप में रहता है ? गौतम ! सकषायी जीव तीन प्रकार के हैं, अनादिअपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । जो सादि-सपर्यवसित हैं, उसका कथन सादिसपर्यवसित सवेदक के अनुसार यावत् क्षेत्रतः देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्त्त तक करना । भगवन् ! क्रोध-कषायी क्रोधकषायीपर्याय से युक्त कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहर्त्त तक । इसी प्रकार यावत् मायाकषायी को समझना । लोभकषायी, लोभकषायी के रूप में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहता है । अकषायी दो प्रकार के हैं । सादि-अपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । जो सादि-सपर्य-वसित हैं, वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहता है। सूत्र-४८०
भगवन् ! सलेश्यजीव सलेश्य-अवस्था में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! सलेश्य दो प्रकार के हैं । अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित | भगवन् ! कृष्णलेश्यावाला जीव कितने काल तक कृष्णलेश्यावाला रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त अधिक तेतीस सागरोपम तक । नीललेश्यावाला जीव जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम तक, कापोतलेश्यावान् जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम तक, तेजोलेश्यावान् जीव जघन्य अन्तर्महर्त्त और उत्कष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम तक, पद्मलेश्यावान जीव जघन्य अन्तर्महर्त और उत्कष्ट अन्तर्महर्त अधिक दस सागरोपम तक, शक्ललेश्यावान जीव जघन्य अन्तर्महर्त्त और उत्कष्ट अन्तर्मुहर्त्त अधिक तेतीस सागरोपम तक अपने अपने पर्याय में रहते हैं । भगवन् ! अलेश्यी जीव कितने काल तक अलेश्यीरूप में रहता है ? गौतम ! वे सादि-अपर्यवसित है। सूत्र-४८१
भगवन् ! सम्यग्दृष्टि कितने काल तक सम्यग्दृष्टिरूप में रहता है ? गौतम ! सम्यग्दृष्टि दो प्रकार के हैं, सादिअपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । जो सादि-सपर्यवसित हैं, वह जघन्य अन्तर्मुहर्त्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक छियासठ सागरोपम तक रहता है । मिथ्यादृष्टि तीन प्रकार के हैं । अनादि-अपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित और
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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