Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 105
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश/सूत्र ये आठ भंग हैं । इसी प्रकार औदारिकमिश्र, आहारक और कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी के आठ भंग समझ लेना। इसी प्रकार औदारिकमिश्र, आहारकमिश्र और कार्मणशरीरकाय-प्रयोग से लेकर आठ भंग कर लेना । इसी प्रकार आहारक, आहारकमिश्र और कार्मणशरीरकाय-प्रयोग को लेकर आठ भंग कर लेना । इस प्रकार त्रिकसंयोग के ये सब मिलकर कुल बत्तीस भंग जान लेने चाहिए। अथवा एक औदारिकमिश्र०, एक आहारक०, एक आहारकमिश्र० और एक कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी होता है, अथवा एक औदारिकमिश्र०, एक आहारक०, एक आहारकमिश्र० और अनेक कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी होते हैं, अथवा एक औदारिकमिश्र०, एक आहारक० अनेक आहारकमिश्र० और एक कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी होता है, अथवा एक औदारिकमिश्र०, एक आहारक०, अनेक आहारकमिश्र० और अनेक कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी होते हैं; अथवा एक औदारिकमिश्र०, अनेक आहारक०, एक आहारकमिश्र० और एक कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी होता है; अथवा एक औदारिकमिश्र०, अनेक आहारक०, एक आहारकमिश्र० और अनेक कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी होते हैं; अथवा एक औदारिकमिश्र० अनेक आहारक०, अनेक आहारकमिश्र० और एक कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी होता है; अथवा एक औदारिकमिश्र०, अनेक आहारक०, अनेक आहारकमिश्र० और अनेक कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी होते हैं; अथवा अनेक औदारिकमिश्र०, एक आहारक०, एक आहारकमिश्र० और एक कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी होता है; अथवा अनेक औदारिकमिश्र०, एक आहारक०, एक औदारिकमिश्र० और अनेक कार्मणशरीर-काय-प्रयोगी होते हैं; अथवा अनेक औदारिकमिश्र०, एक आहारक०, अनेक आहारकमिश्र० और एक कार्मण-शरीरकाय-प्रयोगी होता है, अथवा अनेक औदारिकमिश्र०, एक आहारक०, अनेक आहारकमिश्र० और अनेक कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी होते हैं, अथवा अनेक औदारिकमिश्र० अनेक आहारक०, एक आहारकमिश्र० और एक कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी होता है, अथवा अनेक औदारिकमिश्र०, अनेक आहारक०, एक आहारकमिश्र० और अनेक कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी होते हैं, अथवा अनेक औदारिकमिश्र०, अनेक आहारक०, अनेक आहारकमिश्र० और एक कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी होता है; अथवा अनेक औदारिकमिश्र०, अनेक आहारक०, अनेक आहारक-मिश्र० और अनेक कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी होते हैं । इस प्रकार चतुःसंयोगी ये सोलह भंग होते हैं तथा ये सभी असंयोगी ८, द्विकसंयोगी २४, त्रिकसंयोगी ३२ और चतुःसंयोगी १६ मिलकर अस्सी भंग होते हैं। वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के प्रयोग असुरकुमारों के प्रयोग के समान समझना । सूत्र-४४१ भगवन् ! गतिप्रपात कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच-प्रयोगगति, ततगति, बन्धनछेदनगति, उपपात-गति और विहायोगति । वह प्रयोगगति क्या है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार की, सत्यमनःप्रयोगगति यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगगति । प्रयोग के समान प्रयोगगति भी कहना । भगवन् ! जीवों की प्रयोगगति कितने प्रकार की है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार की है, वे पूर्ववत् जानना । भगवन् ! नैरयिकों की कितने प्रकार की प्रयोगगति है ? गौतम ! ग्यारह प्रकार की, सत्यमनःप्रयोगगति इत्यादि । इस प्रकार वैमानिक पर्यन्त जिसको जितने प्रकार की गति है, उसकी उतने प्रकार की गति कहना | भगवन् ! जीव क्या सत्यमनःप्रयोगगति वाले हैं, अथवा यावत् कार्मणशरीरकाय-प्रयोगगतिक हैं ? गौतम! जीव सभी प्रकार की गतिवाले होते हैं । उसी प्रकार वैमानिकों तक कहना। वह ततगति किस प्रकार की है? ततगति वह है, जिसके द्वारा जिस ग्राम यावत सन्निवेश के लिए प्रस्थान किया हुआ व्यक्ति (अभी) पहुँचा नहीं, बीच मार्ग में ही है । वह बन्धनछेदनगति क्या है ? बन्धनछेदनगति वह है, जिसके द्वारा जीव शरीर से अथवा शरीर जीव से पृथक् होता है । उपपातगति कितने प्रकार की है ? तीन प्रकार कीक्षेत्रोपपातगति, भवोपपातगति और नोभवोपपातगति । क्षेत्रोपपातगति कितने प्रकार की है ? पाँच प्रकार की-नैरयिकक्षेत्रोपपातगति, तिर्यंचयोनिकक्षेत्रोपपात-गति, मनुष्यक्षेत्रोपपातगति, देवक्षेत्रोपपातगति और सिद्धक्षेत्रोपपातगति । नैरयिकक्षेत्रोपपातगति सात प्रकार की है - मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 105

Loading...

Page Navigation
1 ... 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181