Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र पद-१७-लेश्या
उद्देशक-१ सूत्र-४४२
समाहार, सम-शरीर और सम उच्छवास, कर्म, वर्ण, लेश्या, समवेदना, समक्रिया तथा समायुष्क, यह सात द्वार इस उद्देशक में है। सूत्र -४४३
भगवन ! क्या सभी नारक समान आहार, समान शरीर तथा समान उच्छवास-निःश्वास वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्योंकि-नारक दो प्रकार के हैं-महाशरीरवाले और अल्पशरीर वाले । जो महा-शरीर वाले होते हैं, वे बहुत अधिक पुद्गलों का-आहार करते हैं, परिणत करते हैं, उच्छ्वास लेते हैं और से पुद्गलों का निःश्वास छोड़ते हैं । वे बार-बार आहार करते हैं, परिणत करते हैं, उच्छ्व सन और निःश्वसन करते हैं । जो अल्पशरीरवाले हैं, वे अल्पतर पुद्गलों का आहार करते हैं, यावत् निःश्वास छोड़ते हैं । वे कदाचित् आहार करते हैं, यावत् कदाचित् निःश्वसन करते हैं । इस हेतु से ऐसा कहा है कि नारक सभी समान आहारवाले यावत् समान निःश्वासवाले नहीं होते हैं सूत्र-४४४
भगवन् ! नैरयिक क्या सभी समान कर्मवाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्योंकि-नारक दो प्रकार के हैं, पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक । जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे अल्प कर्मवाले हैं और उनमें जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे महाकर्म वाले हैं।
भगवन ! क्या नैरयिक सभी समान वर्णवाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्योंकि-गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के हैं । पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक । जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे अधिक विशुद्ध वर्णवाले होते हैं और जो पश्चादुपपन्नक होते हैं, वे अविशुद्ध वर्णवाले होते हैं । वर्णसमान लेश्या से भी नारकों को विशुद्ध और अविशुद्ध जानना
भगवन् ! सभी नारक क्या समान वेदनावाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्योंकि-गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के हैं, संज्ञीभूत और असंज्ञीभूत । जो संज्ञीभूत हैं, वे महान् वेदनावाले हैं और उनमें जो असंज्ञी-भूत हैं, वे अल्पतर वेदनावाले हैं। सूत्र-४४५
भगवन् ! सभी नारक समान क्रियावाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्योंकि-गौतम ! नारक तीन प्रकार के हैं-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि । जो सम्यग्दृष्टि हैं, उनके चार क्रियाएं होती हैं-आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया और अप्रत्याख्यानक्रिया | जो मिथ्यादृष्टि तथा सम्यगमिथ्यादृष्टि हैं, उनके नियत पाँच क्रियाएं होती हैं-आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानक्रिया और मिथ्यादर्शनप्रत्यया ।
भगवन् ! क्या सभी नारक समान आयुष्यवाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । गौतम ! नैरयिक चार प्रकार के हैं, कईं नारक समान आयुवाले और समान उत्पत्तिवाले होते हैं, कईं समान आयुवाले, किन्तु विषम उत्पत्तिवाले होते हैं, कईं विषम आयुवाले और एक साथ उत्पत्तिवाले होते हैं तथा कईं विषम आयुवाले और विषम उत्पत्तिवाले होते हैं। सूत्र-४४६
भगवन् ! सभी असुरकुमार क्या समान आहार वाले हैं ? इत्यादि यह अर्थ समर्थ नहीं है । शेष कथन नैरयिकों के समान है। भगवन् ! सभी असुरकुमार समान कर्मवाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । क्योंकि-असुरकुमार दो प्रकार के हैं-पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक | पूर्वोपपन्नक हैं, वे महाकर्मवाले हैं । पश्चादुपपन्नक हैं, वे अल्पतर कर्मवाले हैं । इसी प्रकार वर्ण और लेश्या के लिए प्रश्न-गौतम ! असुरकुमारों में जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे अविशुद्धतर वर्णवाले हैं तथा जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे विशुद्धतर वर्णवाले हैं । इसी प्रकार लेश्या में कहना । (असुरकुमारों की) वेदना, क्रिया एवं आयु के विषय में नैरयिकों के समान कहना । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक समझना ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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