Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश/सूत्र क्षेत्रतः-(वे) तीसरे वर्गमूल से गुणित अंगुल का प्रथम वर्गमूल (-प्रमाण हैं ।) उनमें जो मुक्त औदारिकशरीर हैं, उनके विषय में औधिक मुक्त औदारिकशरीरों के समान है । मनुष्यों के वैक्रिय शरीर दो प्रकार के हैं-बद्ध और मुक्त । जो बद्ध हैं, वे संख्यात हैं । समय-समय में अपहृत होते-होते संख्यातकाल में अपहृत होते हैं; किन्तु अपहृत नहीं किए गए हैं । जो मुक्त वैक्रियशरीर हैं, वे औधिक औदारिकशरीरों के समान है | आहारक-शरीरों की प्ररूपणा औधिक
के समान समझना । तैजस-कार्मणशरीरों का निरूपण उन्हीं के औदारिकशरीरों के समान समझना। वाणव्यन्तर देवों के औदारिक और आहारक शरीरों का निरूपण नैरयिकों के समान जानना । इनके वैक्रियशरीरों का निरूपण नैरयिकों के समान है । विशेषता यह है कि उन (असंख्यात) श्रेणियों की विष्कम्भसूची कहना । प्रतर के पूरण और अपहार में वह सूची संख्यात योजनशतवर्ग-प्रतिभाग है । (इनके) मुक्त वैक्रियशरीरों का कथन औधिक औदारिकशरीरों की तरह समझना । इनके तैजस और कार्मण शरीरों को उनके ही वैक्रियशरीरों के समान समझना । ज्योतिष्क देवों की प्ररूपणा भी इसी तरह (समझना) विशेषता यह कि उन श्रेणियों की विष्कम्भसूची दो सौ छप्पन अंगुल वर्गप्रमाण प्रतिभाग रूप प्रतर के पूरण और अपहार में समझना । वैमानिकों की प्ररूपणा भी इसी तरह (समझना ।) विशेषता यह कि उन श्रेणियों की विष्कम्भसूची तृतीय वर्गमूल से गुणित अंगुल के द्वितीय वर्गमूल प्रमाण है अथवा अंगुल के तृतीय वर्गमूल के घन के बराबर श्रेणियाँ हैं । शेष पूर्ववत् जानना।
पद-१२-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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