Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 85
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र भावतः जिन वर्णवान् द्रव्यों को ग्रहण करता है क्या (वह) एक वर्ण वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है, यावत् पाँच वर्ण वाले द्रव्यों को? गौतम ! ग्रहण द्रव्यों की अपेक्षा से एक वर्ण वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, यावत् पाँच वर्ण वाले द्रव्यों को भी । (किन्तु) सर्वग्रहण की अपेक्षा से नियमतः पाँच वर्णों वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है । जैसे किकाले, नीले, लाल, पीले और शुक्ल । भगवन् ! वर्ण से जिन काल द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या (वह) एकगुण काले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? अथवा यावत् अनन्तगुण काले द्रव्यों को ? गौतम ! (वह) एकगुणकृष्ण यावत् अनन्तगुणकृष्ण को भी ग्रहण करता है । इसी प्रकार शुक्ल वर्ण तक कहना । भावतः जिन गन्धवान् भाषा-द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या (वह) एक गन्ध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? या दो गन्ध वाले को ? गौतम ! द्रव्यों की अपेक्षा से (वह) एक गन्धवाले भी ग्रहण करता है, तथा दो गन्धवाले भी, (किन्तु) सर्वग्रहण की अपेक्षा से नियमतः दो गन्ध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है । गन्ध से सुगन्ध वाले जिन द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या (वह) एकगुण सुगन्ध वाले ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण सुगन्ध वाले ? गौतम ! (वह) एकगुण सुगन्ध वाले भी ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण सुगन्ध वाले भी । इसी तरह दुर्गन्ध के विषय में जानना। भावतः रसवाले जिन भाषा-द्रव्यों को जीव ग्रहण करता है, क्या वह एक रस वाले ग्रहण करता है, यावत् पाँच रस वाले ? गौतम ! ग्रहणद्रव्यों की अपेक्षा से एक रस वाले, यावत् पाँच रसवाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है; किन्तु सर्वग्रहण की अपेक्षा से नियमतः पाँच रस वाले को ग्रहण करता है । रस से तिक्त रस वाले जिन भाषाद्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या उन एकगुण तिक्तरसवाले को ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण तिक्तरसवाले ? गौतम ! एकगुण तिक्तरसवाले भी ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण तिक्तरसवाले भी । इसी प्रकार यावत् मधुर रस वाले भाषाद्रव्यों में कहना । भावतः जिन स्पर्श वाले भाषाद्रव्यों को ग्रहण करता है, (तो) क्या (वह) एक स्पर्शवाले भाषाद्रव्यों को ग्रहण करता है, यावत् आठ स्पर्शवाले ? गौतम ! ग्रहणद्रव्यों की अपेक्षा से एक स्पर्शवाले द्रव्यों को ग्रहण नहीं करता, दो यावत् चार स्पर्शवाले द्रव्यों को ग्रहण करता है, किन्तु पाँच यावत् आठ स्पर्शवाले को ग्रहण नहीं करता । सर्वग्रहण की अपेक्षा से नियमतः चार स्पर्श वाले भाषाद्रव्यों को ग्रहण करता है; शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष । स्पर्श से जिन शीतस्पर्श वाले भाषाद्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या (वह) एकगुण शीतस्पर्श वाले ग्रहण करता है, यावत् अनन्त-गुण ? गौतम ! (वह) एकगुण शीतद्रव्यों को भी ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण भी । इसी प्रकार उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्शवाले में जानना। भगवन् ! जिन एकगुण कृष्णवर्ण से लेकर अनन्तगुण रूक्षस्पर्श तक के द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या (वह) उन स्पृष्ट द्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा अस्पृष्ट द्रव्यों को ? गौतम ! (वह) स्पृष्ट भाषाद्रव्यों को ही ग्रहण करता है। भगवन ! जिन स्पृष्ट द्रव्यों को जीव ग्रहण करता है, क्या वह अवगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा 3 द्रव्यों को ? गौतम ! वह अवगाढ़ द्रव्यों को ही ग्रहण करता है । भगवन् ! जिन अवगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या (वह) अनन्तरावगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा परम्परावगाढ़ द्रव्यों को? गौतम ! (वह) अनन्तरावगाढ़ द्रव्यों को ही ग्रहण करता है । भगवन् ! जिन अनन्तरावगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या (वह) अणुरूप द्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा बादर द्रव्यों को? गौतम ! दोनों को । भगवन् ! जिन अणुद्रव्यों को (जीव) ग्रहण करता है, क्या उन्हें ऊर्ध्व (दिशा में) स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, अधः दिशा में अथवा तिर्यक् दिशा में स्थित द्रव्यों को ? गौतम ! तीनों दिशा में से ग्रहण करता है । भगवन् ! (जीव) जिन (अणुद्रव्यों) को तीनों दिशा में से ग्रहण करता है, क्या वह उन्हें आदि में ग्रहण करता है, मध्य में अथवा अन्त में ? गौतम ! वह उन को तीनों में से ग्रहण करता है । जिन (भाषा) को जीव आदि, मध्य और अन्त में ग्रहण करता है, क्या वह उन स्व-विषयक द्रव्यों को ग्रहण करता है अथवा अविषयक द्रव्यों को ? गौतम ! वह स्वविषयक द्रव्यों को ही ग्रहण करता है । भगवन् ! जिन स्वविषयक द्रव्यों को जीव ग्रहण करता है, क्या वह उन्हें आनुपूर्वी से ग्रहण करता है, अथवा अनानुपूर्वी से ? गौतम ! उनको आनुपूर्वी से ही ग्रहण । है । भगवन् ! जिन द्रव्यों को जीव आनुपूर्वी से ग्रहण करता है, क्या उन्हें तीन दिशाओं से ग्रहण करता है, यावत् छह दिशाओं से? गौतम ! नियमतः छह दिशाओं से ग्रहण करता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 85

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