Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र काले कहना । इसी प्रकार शेष वर्ण, गन्ध और रस भी कहना । विशेष यह कि सुगन्ध और दुर्गन्धवाले परमाणुपुद्गल साथ-साथ नहीं होते । तिक्त रस वाले में शेष रस का कथन नहीं करना, कटु आदि रसों में भी ऐसा ही समझना ।
__ भगवन् ! जघन्यगुणकर्कश अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-जघन्यगुणकर्कश अनन्तप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्स्थानपतित है, अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है एवं वर्ण, गन्ध तथा रस से षट्स्थानपतित है, कर्कशस्पर्श के पर्यायों से तुल्य है और अवशिष्ट सात स्पर्शों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुणकर्कश में समझना । मध्यमगुणकर्कश को भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि स्वस्थान में षट् स्थानपतित है । मृदु, गुरु और लघु स्पर्श में भी इसी प्रकार जानना।
जघन्यगुण शीत परमाणुपुद्गलों के कितने अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-जघन्यगुणशीत परमाणुपुद्गल द्रव्य, प्रदेशों और अवगाहना से तुल्य हैं, स्थिति से चतुःस्थानपतित है तथा वर्ण, गन्ध और रसों से षट्स्थानपतित हैं, शीतस्पर्श के पर्यायों से तुल्य है । इसमें उष्णस्पर्श का कथन नहीं करना । स्निग्ध और रूक्षस्पर्शों के पर्यायों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुणशीत के पर्यायों में कहना । मध्यमगुणशीत में भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित हैं।
जघन्यगुणशीत द्विप्रदेशिक स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-जघन्यगुणशील द्विप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य हैं, अवगाहना से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक होता है । यदि हीन हो तो एकप्रदेश हीन होता है, यदि अधिक हो तो एकप्रदेश अधिक होता है, स्थिति से चतुःस्थानपतित है तथा वर्ण, गंध और रस के पर्यायों से षट्स्थानपतित है एवं शीतस्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है और उष्ण, स्निग्ध तथा रूक्ष स्पर्श से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुणशीत को जानना । मध्यमगुणशीत को भी इसी प्रकार समझना । इसी प्रकार दशप्रदेशी स्कन्धों तक को कहना । विशेष यह कि अवगाहना से पर्याय की वृद्धि करनी चाहिए । यावत् दशप्रदेशी स्कन्ध तक नौ प्रदेश बढ़ते हैं।
जघन्यगुणशीत संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-जघन्यगुणशील संख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों और अवगाहना से द्विस्थानपतित है; स्थिति से चतुःस्थानपतित है, वर्णादि से षट्स्थान-पतित है तथा शीतस्पर्श के पर्यायों से तुल्य है और उष्ण, स्निग्ध एवं रूक्ष स्पर्श से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुण शीत को भी समझना । अजघन्य-अनुत्कृष्टगुण शीत संख्यातप्रदेशी स्कन्धों को भी ऐसा ही समझना । विशेष यह कि वह स्वस्थान में षट्स्थानपतित हैं।
जघन्यगुण शीत असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-जघन्यगुणशीत असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य से तुल्य हैं, प्रदेशों, अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है, वर्णादि के पर्यायों से षट्स्थानपतित है, शीतस्पर्श के पर्यायों से तुल्य है और उष्ण, स्निग्ध एवं रूक्ष स्पर्श के पर्यायों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुणशीत असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों को भी कहना । मध्यमगुणशील असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों को भी इसी प्रकार समझना । विशेष यह कि वह स्वस्थान में षट्स्थानपतित होता है।
__ जघन्यगुणशीत अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-जघन्यगुणशीत अनन्तप्रदेश स्कन्ध द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्स्थानपतित है, अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है, वर्णादि से षट्स्थान-पतित है; शीतस्पर्श के पर्यायों से तुल्य है और शेष सात स्पर्शों के पर्यायों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट गुणशीत अनन्तप्रदेशी स्कन्धों में कहना । मध्यमगुणशीत अनन्तप्रदेशी स्कन्धों को भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित है । शीतस्पर्श-स्कन्धों के पर्यायों के समान उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्शों में कहना । इसी प्रकार परमाणुपुद्गल में इन सभी का प्रतिपक्ष नहीं कहा जाता, यह कहना चाहिए। सूत्र- ३२५
भगवन् ! जघन्यप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त | भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! एक जघन्यप्रदेशी स्कन्ध दूसरे जघन्यप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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