Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र होने का निषेध नहीं करना, यावत् कईं मनुष्य सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होते हैं, परिनिर्वाण पाते हैं और सर्व दुःखों का अन्त भी करते हैं। सूत्र-३५०
वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म एवं ईशान देवलोक के वैमानिक देवों की उद्वर्त्तन-प्ररूपणा असुर-कुमारों के समान समझना । विशेष यह कि ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के लिए च्यवन करते हैं। कहना । भगवन् ! सनत्कुमार देव अनन्तर च्यवन करके, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? असुरकुमारों के समान समझना । विशेष यह कि एकेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते । इसी प्रकार सहस्रार देवों तक कहना । आनत देवों से अनुत्तरौपपातिक देवों तक इसी प्रकार समझना । विशेष यह कि तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न नहीं होते, मनुष्यों में भी पर्याप्तक संख्यात-वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं । सूत्र-३५१
भगवन् ! आयुष्य का कितना भाग शेष रहने पर नैरयिक परभव का आयु बांधता है ? गौतम ! नियत से छह मास आयु शेष रहने पर । इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक कहना । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव आयुष्य का कितना भाग शेष रहने पर परभव का आयु बांधते हैं ? गौतम ! पृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं, सोपक्रम आयुवाले और निरुपक्रम आयुवाले । जो निरुपक्रम आयुवाले हैं, वे नियम से आयुष्य का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव की आयु का बन्ध करते हैं तथा सोपक्रम आयुवाले कदाचित् आयु का तीसरा भाग शेष रहने पर, कदाचित् आयु के तीसरे का तीसरा भाग शेष रहने पर और कदाचित् आयु के तीसरे के तीसरे का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव का आयुष्यबन्ध करते हैं । अप्कायिक यावत् वनस्पतिकायिकों तथा विकलेन्द्रियों को इसी प्रकार कहना ।
भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक, आयुष्य का कितना भाग शेष रहने पर परभव की आयु बांधता है ? गौतम! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक दो प्रकार के हैं । संख्यातवर्षायुष्क और असंख्यातवर्षायुष्क । जो असंख्यात वर्ष आयुवाले हैं, वे नियम से छह मास आयु शेष रहते परभव का आयु बांधते हैं और संख्यातवर्ष आयुवाले हैं, वे दो प्रकार के हैं । सोपक्रम और निरुपक्रम आयुवाले । निरुपक्रम आयुवाले हैं, नियमतः आयु का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव का आयुष्यबन्ध करते हैं । सोपक्रम आयुवाले का कथन सोपक्रम पृथ्वीकायिक समान जानना । मनुष्यों को इसी प्रकार कहना चाहिए । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों को नैरयिकों के समान कहना । सूत्र-३५२
भगवन् ! आयुष्य का बन्ध कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का । जातिनामनिधत्तायु, गतिनामनिधत्तायु, स्थितिनामनिधत्तायु, अवगाहनानामनिधत्तायु, प्रदेशनामनिधत्तायु और अनुभावनामनिधत्तायु । भगवन् ! नैरयिकों का आयुष्यबन्ध कितने प्रकार का कहा है ? पूर्ववत् जानना । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझ लेना।
भगवन् ! जीव जातिनामनिधत्तायु को कितने आकर्षों से बांधते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन अथवा उत्कृष्ट आठ आकर्षों से । इसी प्रकार वैमानिक तक समझ लेना । इसी प्रकार गतिनामनिधत्तायु यावत् अनुभावनामनिधत्तायु को जानना।
भगवन् ! इन जीवों में यावत् आठ आकर्षों से बन्ध करनेवालों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे कम जीव जातिनामनिधत्तायु को आठ आकर्षों से बांधने वाले हैं, सात आकर्षों से बांधने वाले (इनसे) संख्यातगुणे हैं, यावत् इसी अनुक्रम से एक आकर्ष से बांधने वाले (इनसे भी) संख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार गतिनामनिधत्तायु यावत् अनुभावनामनिधत्तायु को (जानना ।) इसी प्रकार ये छहों ही अल्पबहुत्व-सम्बन्धी दण्डक जीव से आरम्भ करके कहना ।
पद-६-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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