Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र पद-६ व्युत्क्रान्ति सूत्र-३२६
द्वादश, चतुर्विशति, सान्तर, एकसमय, कहाँ से ? उद्वर्त्तना, परभव-सम्बन्धी आयुष्य और आकर्ष, ये आठ द्वार (इस व्युत्क्रान्तिपद में) हैं । सूत्र - ३२७
भगवन् ! नरकगति कितने काल तक उपपात से विरहित है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक । भगवन् ! तिर्यञ्चगति कितने काल तक उपपात से विरहित है ? गौतम ! नरकगति समान जानना । भगवन् ! मनुष्यगति कितने काल तक उपपात से विरहित है ? गौतम ! नरकगति समान जानना । भगवन् ! देवर कितने काल तक उपपात से विरहित है ? गौतम ! नरकगति समान जानना । भगवन् सिद्धगति कितने काल तक सिद्धि से रहित है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह महीनों तक ।
भगवन् ! नरकगति कितने काल तक उद्वर्त्तना से विरहित है ? गौतम ! जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक । इसी तरह तिर्यंचगति, मनुष्यगति एवं देवगति का उद्वर्त्तना विरह भी नरकगति समान जानना । सूत्र-३२८
भगवन् ! रत्नप्रभा-पृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उपपात से विरहित हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त तक । शर्कराप्रभापृथ्वी के नारक जघन्य एक समय और उत्कृष्टतः सात रात्रि-दिन तक उपपात से विरहित रहते हैं । वालुकापृथ्वी के नारक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अर्द्धमास तक उपपात से विरहित रहते हैं । पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट एक मास तक उपपातविरहित रहते हैं । धूमप्रभापृथ्वी के नारक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट दो मास तक उपपात से विरहित होते हैं । तमःप्रभापृथ्वी के नारक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चार मास उपपातविरहित रहते हैं । तमस्तमापृथ्वी के नैरयिक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास उपपात से विरहित रहते हैं।
भगवन् ! असुरकुमार कितने काल तक उपपात से विरहित रहते हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त तक । इसी तरह स्तनितकुमार तक जान लेना।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कितने काल तक उपपात से विरहित हैं ? गौतम ! प्रतिसमय उपपात से अविरहित हैं । इसी तरह वनस्पतिकायिक तक जानना । द्वीन्द्रिय जीवों का उपपातविरह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त रहता है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय एवं चतुरिन्द्रिय में समझना । सम्मूर्छिम पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक का उपपातविरह जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है । गर्भजपंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त उपपात से विरहित रहते हैं । सम्मूर्छिम मनुष्य जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त उपपात से विरहित कहे हैं । गर्भज मनुष्य जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त उपपात से विरहित कहे हैं।
भगवन् ! वाणव्यन्तर देव कितने काल तक उपपात से विरहित कहे हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त तक । ज्योतिष्क देव जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त उपपात विरहित कहे हैं।
भगवन् ! सौधर्मकल्प में देव कितने काल तक उपपात से विरहित कहे हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त । ईशानकल्प में यही काल जानना । सनत्कुमार देवों का उपपातविरहकाल जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट नौ रात्रि दिन और बीस मुहुर्त है। माहेन्द्र देवों का उपपातविरहकाल जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट बारह रात्रि-दिन और दस मुहूर्त है । ब्रह्मलोक देव जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट साढ़े बाईस रात्रि-दिन उपपातविरहकाल रहते हैं । लान्तक देवों का उपपातविरह जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट पैंतालीस रात्रि-दिन है । महाशुक्र देवों का उपपातविरह जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट अस्सी रात्रि-दिन है । सहस्रार देवों का उपपात-विरहकाल जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट सौ रात्रि-दिन है । आनतदेव का उपपातविरह काल जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट संख्यात मास है। प्राणतदेव जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट संख्यात मास उपपात विरहित हैं । आरण देवों का उपपातविरह काल जघन्य
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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