Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश/सूत्र सूत्र-३२४
भगवन् ! परमाणुपुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? गौतम ! अनन्त । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! एक परमाणुपुद्गल, दूसरे परमाणुपुद्गल से द्रव्य, प्रदेशों और अवगाहना की दृष्टि से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अत्यधिक है । यदि हीन है, तो असंख्यातभाग हीन है, संख्यातभाग हीन है अथवा संख्यातगुण हीन है, अथवा असंख्यातगुण हीन है; यदि अधिक है, तो यावत् असंख्यातगुण अधिक है । कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है, और कदाचित् अधिक है । यदि हीन है तो अनन्तभाग, असंख्यातभाग, संख्यातभाग, संख्यातगुण, असंख्यातगुण या अनन्तगुण-हीन है । यदि अधिक है तो यावत् अनन्तगुण अधिक है । इसी प्रकार अवशिष्ट वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है । स्पर्शों में शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है । हे गौतम! इस हेतु से ऐसा कहा गया है कि परमाणु-पुदगलों के अनन्त पर्याय प्ररूपित हैं।
द्विप्रदेशिक स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-गौतम ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध, द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है और कदाचित् अधिक है । यदि हीन हो तो एक प्रदेश हीन होता है । यदि अधिक हो तो एक प्रदेश अधिक होता है । स्थिति से चतुःस्थानपतित है, वर्ण आदि से और उपर्युक्त चार स्पर्शों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार त्रिप्रदेशिक स्कन्धों में कहना । विशेषता यह कि अवगाहना से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक होता है । यदि हीन हो तो एक या द्विप्रदेशों से हीन है । यदि अधिक हो तो एक अथवा दो प्रदेश अधिक होता है । इसी प्रकार यावत् दशप्रदेशिक स्कन्धों तक कहना । विशेष यह कि अवगाहना से प्रदेशों की वृद्धि करना; यावत् दशप्रदेशी स्कन्ध नौ प्रदेश-हीन तक होता है।
संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-संख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक है । यदि हीन हो तो संख्यात भाग हीन या संख्यातगुण हीन होता है । यदि अधिक हो तो संख्यातभाग अधिक या संख्यातगुण अधिक होता है । अवगाहना से द्विस्थानपतित होता है । स्थिति से चतुःस्थानपतित होता है । वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों के पर्यायों से षटस्थानपतित होता है। असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे हैं । क्योंकि-असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों, अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है, वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों से षट्स्थानपतित है । अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं। क्योंकि-अनन्तप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्स्थानपतित है, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, तथा वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के पर्यायों से षट्स्थानपतित है।
एक प्रदेश के अवगाढ़ पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-प्रदेश में अवगाढ़ पुद्गल द्रव्य से तुल्य हैं, प्रदेशों से षट्स्थानपतित है, अवगाहना से तुल्य है, स्थिति से चतुःस्थानपतित है, वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों से षट् स्थानपतित है । इसी प्रकार दसप्रदेशावगाढ़ स्कन्धों तक के पर्यायों को जानना । संख्यातप्रदेशावगाढ़ स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-संख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्स्थानपतित है, अवगाहना से द्विस्थानपतित है, स्थिति से चतुःस्थानपतित है, वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों से षट्स्थानपतित है । असंख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-असंख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्स्थानपतित है, अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है, वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों से षट्स्थानपतित है।
एक समय स्थितिवाले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-एक समय स्थितिवाले पुद्गल, द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्स्थानपतित हे, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, स्थिति से तुल्य है, वर्णादि से षट्स्थानपतित है । इस प्रकार यावत् दस समय की स्थितिवाले पुद्गलों को समझना । संख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गलों को भी इसी प्रकार समझना । विशेष यह कि वह स्थिति से द्विस्थानपतित है। असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गलों भी इसी प्रकार है। विशेषता यह कि वह स्थिति से चतुःस्थानपतित है।
एकगुण काले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-एकगुण काले पुद्गल द्रव्य से तुल्य हैं, प्रदेशों से षट्
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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