Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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जघन्यजपा
आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र मध्यमस्थिति वाले मनुष्यों को भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि स्थिति अवगाहना, तथा आदि के चार ज्ञानों एवं तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित है तथा केवलज्ञान और केवलदर्शन से तुल्य है।
जघन्यगुण काले मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-जघन्यगुण काले मनुष्य द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य हैं, अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है, कृष्णवर्ण के पर्यायों से तुल्य हैं; तथा अवशिष्ट वर्णादि, चार ज्ञानों, तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित है और केवलज्ञान-केवलदर्शन से तुल्य है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले मनुष्यों में भी समझना । अजघन्य-अनुत्कृष्ट गुण काले मनुष्यों को भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित हैं । इसी प्रकार शेष वर्णादि वाले मनुष्यों को कहना।
जघन्य आभिनिबोधिकज्ञानी मनष्यों के अनन्तपर्याय हैं। क्योंकि-जघन्य आभिनिबोधिकज्ञानी मनष्य द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है, तथा वर्णादि से षटस्थानपतित है, तथा आभिनिबोधिकज्ञान से तुल्य है, किन्तु श्रुतज्ञान और दो दर्शनों से षट्स्थानपतित है। इसी प्रकार उत्कृष्ट आभिनि-बोधिकज्ञानी में जानना । विशेष यह कि वह आभिनिबोधिकज्ञान के पर्यायों से तुल्य है, स्थिति से त्रिस्थानपतित है, तथा तीन ज्ञानों
और तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित है। अजघन्य-अनुत्कृष्ट आभिनिबोधिकज्ञानी मनुष्यों में ऐसे ही कहना । विशेष यह कि स्थिति से चतुःस्थानपतित हैं, तथा स्वस्थानमें षट्स्थानपतित हैं । इसी प्रकार श्रुतज्ञानीमें भी जानना ।
जघन्य अवधिज्ञानी मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं। क्योंकि-जघन्य अवधिज्ञानी मनुष्य द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से चतुःस्थानपतित, स्थिति से त्रिस्थानपतित है, तथा वर्णादि एवं दो ज्ञानों से षट्स्थानपतित है, तथा अवधिज्ञान से तुल्य है, मनःपर्यवज्ञान और तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट अवधिज्ञानी में भी कहना । इसी प्रकार मध्यम अवधिज्ञानी मनुष्यों में भी कहना । विशेष यह कि स्वस्थान में वह षट्स्थानपतित है।
अवधिज्ञानी के समान मनःपर्यायज्ञानी में कहना । विशेष यह कि अवगाहना की अपेक्षा से (वह) त्रिस्थानपतित है । आभिनिबोधिकज्ञानीयों के समान मति और श्रुत-अज्ञानी में कहना । अवधिज्ञानी के समान विभंगज्ञानी (मनुष्यों) को भी कहना । चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी मनुष्यों आभिनिबोधिकज्ञानी के समान हैं । अवधिदर्शनी को अवधिज्ञानी मनुष्यों के समान समझना ।
__ केवलज्ञानी मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि केवलज्ञानी मनुष्य द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य हैं, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, स्थिति से त्रिस्थानपतित है, तथा वर्ण आदि से षट्स्थानपतित है, एवं केवलज्ञान और केवलदर्शन से तुल्य है। केवलज्ञानी के समान केवलदर्शनी में भी कहना । सूत्र-३२१
वाणव्यन्तर देवों में असुरकुमारों के समान जानना । ज्योतिष्कों और वैमानिक देवों में भी इसी प्रकार जानना। विशेष यह कि वे स्वस्थान में स्थिति से त्रिस्थानपतित हैं। सूत्र-३२२
भगवन् ! अजीवपर्याय कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, रूपी अजीवपर्याय और अरूपी अजीवपर्याय | भगवन् ! अरूपी-अजीव के पर्याय कितने प्रकार के हैं? गौतम! दस । (१) धर्मास्तिकाय, (२) धर्मास्तिकाय का देश, (३) धर्मास्तिकाय के प्रदेश, (४) अधर्मास्तिकाय, (५) अधर्मास्तिकाय का देश, (६) अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, (७) आकाशास्तिकाय, (८) आकाशास्तिकाय का देश, (९) आकाशास्तिकाय के प्रदेश (१०) अद्धासमय के पर्याय । सूत्र-३२३
भगवन ! रूपी अजीव पर्याय कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! चार-स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्ध-प्रदेश और परमाणुपुद्गल (के पर्याय) । भगवन् ! क्या वे संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! वे अनन्त हैं। भगवन् ! किस हेतु से आप ऐसा कहते हैं ? गौतम ! परमाणु-पुदगल अनन्त हैं; द्विप्रदेशिक यावत् दशप्रदेशिक-स्कन्ध अनन्त हैं, संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक और अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं । हे गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा है कि वे अनन्त हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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