Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र आदि एवं दो अज्ञानों और अचक्षुदर्शन के पर्यायों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले में भी कहना । मध्यमगुण काले में भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि वह स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। इसी प्रकार पाँच वर्णों, दो गन्धों, पाँच रसों और आठ स्पर्शों में कहना ।
भगवन् ! जघन्य मति-अज्ञानी पृथ्वीकायिकों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त, क्योंकि-जघन्य मतिअज्ञानी पृथ्वीकायिक द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, स्थिति से त्रिस्थानपतित है; तथा वर्ण आदि से षट्स्थानपतित है; मति-अज्ञान से तुल्य है; श्रुत-अज्ञान तथा अचक्षु-दर्शन से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट-मति-अज्ञानी में जानना । अजघन्य-अनुत्कृष्ट-मति-अज्ञानी में भी इसी प्रकार कहना. विशेष यह कि यह स्वस्थान में भी षट्स्थानपतित है । मति-अज्ञानी के समान श्रत-अज्ञानी तथा अचक्षदर्शनी को भी कहना । इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक कहना । सूत्र-३१८
भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले द्वीन्द्रिय जीवों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । क्योंकि-जघन्य अवगाहना वाले द्वीन्द्रिय जीव, द्रव्य, प्रदेश तथा अवगाहना से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित है, वर्ण आदि दो ज्ञानों, दो अज्ञानों तथा अचक्षु-दर्शन के से षट्स्थानपतित है। इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाले को भी जानना । किन्तु उत्कृष्ट अवगाहना वाले में ज्ञान नहीं होता, इतना अन्तर है । यही अजघन्य-अनुत्कृष्ट अवगाहना वाले में भी कहना । विशेषता यह कि वे स्वस्थान में अवगाहना से चतुःस्थानपतित है । जघन्य स्थितिवाले द्वीन्द्रिय के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-जघन्य स्थिति वाले द्वीन्द्रिय द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य हैं, अवगाहना से चतुःस्थान-पतित हैं, स्थिति से तल्य हैं; तथा वर्ण आदि से, दो अज्ञानों एवं अचक्षदर्शन से षटस्थानपतित है। इसी प्रकार उत्कष्ट स्थिति वाले द्वीन्द्रियजीवों को भी कहना । विशेष यह है कि इनमें दो ज्ञान अधिक कहना । उत्कृष्ट स्थिति वाले द्वीन्द्रिय के समान मध्यम स्थिति वाले द्वीन्द्रियों में भी कहना । अन्तर इतना ही है कि स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित है । जघन्यगुण कृष्णवर्ण वाले द्वीन्द्रिय के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-जघन्यगुण काले द्वीन्द्रिय जीव द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य हैं, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, स्थिति से त्रिस्थानपतित है, कृष्णवर्णपर्याय से तुल्य है; शेष वर्णादि, दो ज्ञान, दो अज्ञान एवं अचक्षुदर्शन पर्यायों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले द्वीन्द्रियों में कहना । अजघन्यअनुत्कृष्ट गुण काले द्वीन्द्रिय जीवों को इसी प्रकार (कहना) विशेष यह कि स्वस्थान में षटस्थानपतित होता है । इसी तरह शेष वर्ण आदि के विषय में भी जानना।
जघन्य-आभिनिबोधिक ज्ञानी द्वीन्द्रियके अनन्त पर्याय हैं । क्योंकि-जघन्य आभिनिबोधिकज्ञानी द्वीन्द्रिय द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य हैं, अवगाहना से चतुःस्थानपतित हैं, वर्ण आदि गंध से षट्स्थानपतित है । आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य हैं; श्रुतज्ञान तथा अचक्षुदर्शन से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट आभिनिबोधिकज्ञानी द्वीन्द्रिय जीवों में कहना । मध्यम-आभिनिबोधिक ज्ञानी को भी ऐसा ही कहना किन्तु वह स्वस्थान में षट् स्थानपतित है । इसी प्रकार श्रुतज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी, मति-अज्ञानी और अचक्षुर्दर्शनी द्वीन्द्रिय जीवों में कहना । विशेषता यह है कि ज्ञान और अज्ञान साथ नहीं होते । जहाँ दर्शन होता है, वहाँ ज्ञान भी हो सकते हैं और अज्ञान भी ।
द्वीन्द्रिय के समान त्रीन्द्रिय के पर्याय-विषय में भी कहना । चतुरिन्द्रिय जीवों में भी यही कहना । अन्तर केवल इतना कि इनके चक्षुदर्शन अधिक हैं।
सूत्र-३१९
भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले पंचेन्द्रियतिर्यंचों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । क्योंकि-जघन्य अवगाहना वाले पंचेन्द्रियतिर्यंच द्रव्य, प्रदेशों, और अवगाहना से तुल्य है, स्थिति से त्रिस्थानपतित है, तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श, दो ज्ञानों, अज्ञानों और दो दर्शनों से षट्स्थानपतित है । उत्कृष्ट अवगाहना वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यंचों को भी ऐसे ही कहना, विशेषता इतनी कि तीन ज्ञानों, तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थान पतित हैं । इसी प्रकार अजघन्य-अनुत्कृष्ट अवगाहना वाले पंचेन्द्रियतिर्यंचो को कहना । विशेष यह कि ये अवगाहना तथा स्थिति
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 58