Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश/सूत्र स्थिति जघन्य पल्योपम का चतुर्थभाग है और उत्कृष्ट कुछ अधिक चौथाई पल्योपम की है । नक्षत्रविमान में अपर्याप्तक देवियों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । नक्षत्रविमान में पर्याप्त देवियों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम चौथाई पल्योपम और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के चौथाई भाग से कुछ अधिक है।
ताराविमान में देवों की स्थिति जघन्य पल्योपम के आठवें भाग और उत्कृष्ट चौथाई पल्योपम है । भगवन् ! ताराविमान में अपर्याप्त देवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । ताराविमान में पर्याप्त देवों की स्थिति
औधिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त कम जानना । ताराविमान में देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम का आठवाँ भाग और उत्कृष्ट पल्योपम के आठवें भाग से कुछ अधिक की है । ताराविमान में अपर्याप्त देवियों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की है । ताराविमान में पर्याप्त देवियों की स्थिति औधिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त कम है। सूत्र-३०६
भगवन् ! वैमानिक देवों की स्थिति कितने काल की है ? जघन्य एक पल्योपम की है और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम है । अपर्याप्तक वैमानिक देवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्त वैमानिक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्योपम और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तैंतीस सागरोपम है । वैमानिक देवियों की स्थिति जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट पचपन पल्योपम है । वैमानिक अपर्याप्त देवियों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्त वैमानिक देवियों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्योपम और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचपन पल्योपम है।
भगवन ! सौधर्मकल्प में, देवों की स्थिति जघन्य एक पल्योपम और उत्कष्ट दो सागरोपम है । इनके अपर्याप्तों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की है । सौधर्मकल्प में पर्याप्तक देवों की स्थिति औघिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त कम समझना । सौधर्मकल्प में देवियों की स्थिति जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट पचास पल्योपम है । इनके अपर्याप्त की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । सौधर्मकल्प की पर्याप्तक देवियों की स्थिति औधिक
कम समझना । सौधर्मकल्प में परिगृहिता देवियों की स्थिति जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट सात पल्योपम है । इनके अपर्याप्तकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । इनके पर्याप्त की स्थिति औधिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त कम समझना । सौधर्मकल्प में अपरिगृहिता देवियों की स्थिति औधिक देवियों के समान जानना
भगवन् ! ईशानकल्प में देवों की स्थिति कितने काल की है ? सौधर्मकल्प के देवों से कुछ अधिक समझना। ईशानकल्प में देवियों की स्थिति सौधर्मकल्प देवियों के समान ही है, विशेष यह की जघन्य स्थिति में कुछ अधिक कहना । ईशानकल्प में परिगृहीता देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम से कुछ अधिक और उत्कृष्ट भी नौ पल्योपम है | इनकी अपर्याप्त देवियों की स्थिति अन्तर्मुहर्त्त ही है । इनकी पर्याप्त देवियों की स्थिति इनकी औधिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त कम है । ईशानकल्प में अपरिगृहीता देवियों की स्थिति इनकी औधिक देवियों के समान ही है।
सनत्कुमारकल्प में देवों की स्थिति जघन्य दो सागरोपम और उत्कृष्ट सात सागरोपम है । इनके अपर्याप्त की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की है । - इनके पर्याप्तों की स्थिति इनकी औधिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त कम समझना । माहेन्द्रकल्प के देवों की स्थिति सनत्कुमारदेवों से कुछ अधिक समझना । ब्रह्मलोककल्प में देवों की स्थिति जघन्य सात सागरोपम और उत्कृष्ट दस सागरोपम है । इनके अपर्याप्तकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त्त है। इनके पर्याप्तकों की स्थिति इनकी औधिक स्थिति से अन्तर्मुहर्त कम समझना।
लान्तककल्प में देवों की स्थिति जघन्य दस सागरोपम और उत्कृष्ट चौदह सागरोपम है । इनके अपर्याप्तकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । इनकी पर्याप्तकों की स्थिति इनकी औधिक स्थिति से अन्तर्मुहर्त कम समझना । महाशुक्रकल्प में देवों की स्थिति जघन्य चौदह सागरोपम तथा उत्कृष्ट सत्तरह सागरोपम है । इनके अपर्याप्तकों की जघन्य
और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की है । इनके पर्याप्तकों की स्थिति औधिक से अन्त-र्मुहूर्त कम है । सहस्रारकल्प में देवों की स्थिति जघन्य सत्तरह सागरोपम और उत्कृष्ट अठारह सागरोपम है । इनके अपर्याप्तकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त है । इनके पर्याप्तकों की स्थिति ओधिक से अन्तर्मुहूर्त कम है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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