Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 27
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र भगवन् ! पर्याप्त अपर्याप्त असुरकुमार देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! १,८०,००० योजन मोटी इस रत्नप्रभापृथ्वी के बीच में १,७८,००० योजन में असुरकुमारदेवों के चौंसठ लाख भवन-आवास हैं । भवनावास वर्णनपूर्ववत् जानना । (वे) उपपात, समुद्घात और स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं । वे काले, लोहिताक्षरत्न तथा बिम्बफल के समान ओठों वाले, श्वेत पुष्पों के समान दाँतों तथा काले केशों वाले, बाएं एक कुण्डल के धारक, गीले चन्दन से लिप्त शरीरवाले, शिलिन्धपुष्प के समान थोड़े-से प्रकाशमान तथा संक्लेश उत्पन्न न करने वाले सूक्ष्म अतीव उत्तम वस्त्र पहने हुए, प्रथम वय को पार किये हुए और द्वितीय वय को असंप्राप्त, भद्र यौवन में वर्तमान होते हैं । (वे) तलभंगक, त्रटित, एवं अन्यान्य श्रेष्ठ आभषणों में जटित निर्मल मणियों तथा रत्नों से मण्डित भुजाओं वाले, दस मुद्रिकाओं से सुशोभित अग्रहस्त वाले, चूड़ामणिरूप अद्भुत चिह्न वाले, सुरूप, इत्यादि यावत् दिव्य भोगों का उपभोग करते हुए विहरण करते हैं। यहाँ दो असुरकुमारों के राजा-चमरेन्द्र और बलीन्द्र निवास करते हैं, वे काले, महानील के समान, नील की गोली, गवल, अलसी के फूल के समान, विकसित कमल के समान निर्मल, कहीं श्वेत, रक्त एवं ताम्रवर्ण के नेत्रों वाले, गरुड़ के समान विशाल सीधी और ऊंची नाक वाले, पुष्ट या तेजस्वी मूंगा तथा बिम्बफल के समान अधरोष्ठ वाले; श्वेत विमल एवं निर्मल, चन्द्रखण्ड, जमे हुए दही, शंख, गाय के दूध, कुन्द, जलकण और मृणालिका के समान धवल दन्तपंक्ति वाले, अग्नि में तपाये और धोये पनीय सुवर्ण समान लाल तलवों, तालु तथा जिह्वा वाले, अंजन तथा मेघ के समान काले, रुचकरत्न के समान रमणीय एवं स्निग्ध केशोंवाले, बाएं एक कानमें कुण्डल के धारक इत्यादि पूर्ववत् विशेषण वाले यावत् दिव्य भोगों को भोगते हुए रहते हैं। भगवन् ! पर्याप्त एवं अपर्याप्त दाक्षिणात्य असुरकुमार देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप में सुमेरु पर्वत के दक्षिण में, १,८०,००० योजन मोटी इस रत्नप्रभापृथ्वी के बीच में १,७८,००० योजन क्षेत्र में दाक्षिणात्य असुरकुमार देवों के १,३४,००० भवनावास हैं । भवन, निवास, इत्यादि समस्त वर्णन पूर्ववत् । इन्हीं में (दाक्षिणात्य) असुरकुमारों का इन्द्र असुरराज चमरेन्द्र निवास करता है, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् । चमरेन्द्र वहाँ ३४ लाख भवनावासों का, ६४,००० सामानिकों का, तेंतीस त्रायस्त्रिंक देवों का, चार लोकपालों का, पाँच सपरिवार अग्रमहिषियों का, तीन परिषदों का, सात सेनाओं का, सात सेनाधिपति देवों का, २,५६,००० आत्मरक्षक देवों का तथा अन्य बहुत-से दाक्षिणात्य असुरकुमार देवों और देवियों का आधिपत्य एवं अग्रेसरत्व करता हुआ यावत् विचरण करता है । भगवन् ! उत्तरदिशा में पर्याप्त और अपर्याप्त असुरकुमार देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के मध्य के १,७८,००० योजन प्रदेश में, उत्तरदिशा के असुरकुमार देवों के तीस लाख भवनावास हैं । शेष सब वर्णन पूर्ववत् । इन्हीं स्थानों में वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलीन्द्र निवास करता है, वह वहाँ तीस लाख भवनावासों का, ६०,००० सामानिक देवों का, तैंतीस त्रायस्त्रिंक देवों का, यावत् २,४०,००० आत्मरक्षक देवों का तथा और भी बहुत-से उत्तरदिशा के असुरकुमार देवों और देवियों का आधिपत्य एवं पुरोवर्त्तित्व करता हुआ विचरण करता है। भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त नागकुमार देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं? भगवन् ! वे कहाँ निवास करते हैं? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर बीच में १,७८,००० योजन में, नागकुमार देवों के चौरासी लाख भवनावास हैं। इत्यादि समस्त वर्णन पूर्ववत् । यहाँ दो नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज-धरणेन्द्र और भूतानन्देन्द्र-निवास करते हैं । भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त दाक्षिणात्य नागकुमारों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी मध्य में १,७८,००० हजार योजन में, दाक्षिणात्य नागकुमार देवों के ४४ लाख भवन हैं । इत्यादि वर्णन पूर्ववत् इन्हीं स्थानों में नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरणेन्द्र निवास करता है, वहाँ वह ४४ लाख भवनावासों का, ६००० सामानिकों का, तैंतीस त्रायस्त्रिंक देवों का, यावत् २४,००० आत्मरक्षक देवों का और अन्य बहुत-से दाक्षिणात्य नागकुमार देवों देवियों का आधिपत्य और अग्रेसरत्व करता हुआ विचरण करता है । भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त उत्तरदिशा के नागकुमार देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के बीच में १,७८,००० योजन में, उत्तरदिशा के नागकुमार देवों के चालीस लाख भवनावास हैं । इत्यादि पूर्ववत् । इन्हीं स्थानों में नागकुमारेन्द्र नाग-कुमारराज भूतानन्द निवास करता है, इत्यादि । मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 27

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