Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र
पद-३-अल्पबहुत्व
सूत्र-२५७,२५८
__ दिक्, गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, लेश्या, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, संयत, उपयोग, आहार, भाषक, परीत, पर्याप्त, सूक्ष्म, संज्ञी, भव, अस्तिक, चरम, जीव, क्षेत्र, बन्ध, पुद्गल और महादण्डक तृतीयपदमें ये २७ द्वार हैं सूत्र-२५९
दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े जीव पश्चिमदिशा में हैं, (उन से) विशेषाधिक पूर्वदिशा में हैं, (उन से) विशेषाधिक दक्षिणदिशामें हैं, (और उन से) विशेषाधिक (जीव) उत्तरदिशा में हैं। सूत्र - २६०
दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े पृथ्वीकायिक जीव दक्षिणदिशा में हैं, उत्तर में विशेषाधिक हैं, पूर्वदिशा में विशेषाधिक हैं, पश्चिम में विशेषाधिक हैं | दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े अप्कायिक जीव पश्चिम में हैं, विशेषाधिक पूर्व में हैं, विशेषाधिक दक्षिण में हैं और विशेषाधिक उत्तरदिशा में हैं । दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े तेजस्कायिक जीव दक्षिण और उत्तर में हैं, पूर्व में संख्यातगुणा अधिक हैं, पश्चिम में विशेषाधिक हैं । दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम वायुकायिक जीव पूर्वदिशा में हैं, विशेषाधिक पश्चिम में हैं, विशेषाधिक उत्तर में हैं और भी विशेषाधिक दक्षिण में हैं । दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े वनस्पतिकायिक जीव पश्चिम में हैं, विशेषाधिक पूर्व में हैं, विशेषाधिक दक्षिण में हैं, विशेषाधिक उत्तर में हैं।
दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम द्वीन्द्रिय जीव पश्चिम में हैं, विशेषाधिक पूर्व में हैं, विशेषाधिक दक्षिण में हैं, विशेषाधिक उत्तरदिशा में हैं, दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम त्रीन्द्रिय जीव पश्चिमदिशा में हैं, विशेषाधिक पूर्व में हैं, विशेषाधिक दक्षिण में हैं और विशेषाधिक उत्तर में हैं । दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम चतुरिन्द्रिय जीव पश्चिम में हैं, विशेषाधिक पूर्वदिशा में हैं, विशेषाधिक दक्षिण में हैं, विशेषाधिक उत्तरदिशा में हैं।
दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े नैरयिक पूर्व, पश्चिम और उत्तरदिशा में हैं, असंख्यातगुणे अधिक दक्षिणदिशा में हैं । इसी तरह रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तमा के नैरयिकों के विषय में भी दिशाओं की अपेक्षा से यही अल्पबहुत्व जानना।
दक्षिणदिशा के अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों से छठी तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिक पूर्व, पश्चिम और उत्तर में असंख्यातगुणे हैं, और (उन से भी) असंख्यातगुणे दक्षिणदिशामें हैं । इसी तरह दक्षिणदिशा के साथ तमःप्रभापृथ्वी से लेकर शर्कराप्रभापृथ्वी के नैयिकों का पीछे पीछे की नरक यावत् रत्नप्रभा के नैरयिकों के साथ अल्प-बहुत्व जानना।
दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव पश्चिम में हैं । पूर्व में विशेषाधिक हैं, दक्षिण में विशेषाधिक हैं और उत्तर में (इनसे भी) विशेषाधिक हैं । दिशाओं की अपेक्षा सबसे कम मनुष्य दक्षिण एवं उत्तर में हैं, पूर्व में संख्यातगुणे अधिक हैं और पश्चिमदिशा में (उनसे भी) विशेषाधिक हैं । दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े भवनवासी देव पूर्व और पश्चिम में हैं । असंख्यातगुणे अधिक उत्तर में हैं और (उनसे भी) असंख्यात-गुणे दक्षिण दिशा में हैं। दिशाओं की अपेक्षा से सबसे अल्प वाणव्यन्तर देव पूर्व में हैं, विशेषाधिक पश्चिम में हैं, विशेषाधिक उत्तर में हैं
और उनसे भी विशेषाधिक दक्षिण में हैं । दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े ज्योतिष्क देव पूर्व एवं पश्चिम में हैं, दक्षिण में विशेषाधिक हैं और उत्तर में उनसे भी विशेषाधिक हैं।
___ दिशाओं की अपेक्षा से सबसे अल्प देव सौधर्मकल्प में पूर्व तथा पश्चिम दिशा में हैं, उत्तर में असंख्यातगुणे हैं और दक्षिण में (उनसे भी) विशेषाधिक हैं | माहेन्द्रकल्प तक दिशाओं की अपेक्षा से यही अल्पबहुत्व समझना । दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम देव ब्रह्मलोककल्प में पूर्व, पश्चिम और उत्तर में हैं; दक्षिणदिशा में असंख्यातगुणे हैं। सहस्रारकल्प तक यहीं अल्पबहुत्व जानना । हे आयुष्मन् श्रमणो ! उससे आगे (के प्रत्येक कल्प यावत् अनुतर विमान में चारों दिशाओं में) बिलकुल सम उत्पन्न होने वाले हैं।
दिशाओं की अपेक्षा से सब से अल्प सिद्ध दक्षिण और उत्तरदिशा में हैं । पूर्वमें संख्यातगुणे हैं और पश्चिममें
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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