Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र
पद-४-स्थिति सूत्र - २९८
भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की । भगवन् ! अपर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है । भगवन् ! पर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तैंतीस सागरोपम की।
रत्नप्रभापृथ्वी के नारकों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम है । अपर्याप्तकरत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्तक-रत्नप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक सागरोपम है । शर्कराप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन सागरोपम है । भगवन् ! अपर्याप्त शर्कराप्रभापृथ्वी के नारकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्तक-शर्कराप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त कम तीन सागरोपम है।
वालुकाप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य तीन और उत्कृष्ट सात सागरोपम है । अपर्याप्तक-वालुकाप्रभापृथ्वी नारकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त हैं । पर्याप्तक-वालुकाप्रभापृथ्वी नारकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम तीन सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम है । पंकप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य सात और उत्कृष्ट दस सागरोपम है । अपर्याप्तक-पंकप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्तक-पंकप्रभापृथ्वी नारकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दस सागरोपम है।
धूमप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य दस, उत्कृष्ट १७ सागरोपम है । धूमप्रभापृथ्वी अपर्याप्त नैरयिकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । धूमप्रभापृथ्वी पर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस सागरोपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम १७ सागरोपम की है । तमःप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य १७, उत्कृष्ट २२ सागरोपम है । तमःप्रभापृथ्वी अपर्याप्त नैरयिकों की स्थिति जघन्य है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । तमःप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य अन्तर्महर्त कम १७ सागरोपम और उत्कष्ट अन्तर्महर्त कम २२ सागरोपम की है।
अधः सप्तमपृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम है । अपर्याप्तकअधःसप्तम पृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । पर्याप्तक-अधःसप्तमपृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त कम बाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त कम तैंतीस सागरोपम की है। सूत्र-२९९
भगवन् ! देवों की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम । अपर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्तक-देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट कम तैंतीस सागरोपम की है । देवियों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट पचपन पल्योपम है। अपर्याप्तक देवियों की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । पर्याप्तक देवियों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचपन पल्योपम है।
भवनवासी देवों की स्थिति जघन्य १०००० वर्ष, उत्कृष्ट साधिक एक सागरोपम है । अपर्याप्तक भवनवासी देवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । भगवन् ! पर्याप्तक भवनवासी देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम कुछ अधिक सागरोपम है । भगावनसी देवियों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट साढ़े चार पल्योपम है । अपर्याप्तक भवनवासी देवियों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्तक भवनवासी देवियों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम १०००० वर्ष, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम साढ़े चार पल्योपम हैं । असुरकुमार देव-देवी के विषयमें सामान्य भवनवासी समान ही समझना ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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