Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त सुपर्णकुमार देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में यावत् सुपर्णकुमार देवों के बहत्तर लाख भवनावास हैं । भवन वर्णन पूर्ववत् । वहाँ पर्याप्त और अपर्याप्त सुपर्णकुमार देवों के स्थान हैं । इत्यादि समग्र वर्णन यावत् 'विचरण करता है। पूर्ववत् जानना । इन्हीं में दो सुपर्णकुमारेन्द्र सुपर्ण कुमारराज-वेणुदेव और वेणुदाली निवास करते हैं, जो महर्द्धिक हैं; इत्यादि पूर्ववत् । भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त दाक्षिणात्य सुपर्णकुमारों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! इसी रत्नप्रभापृथ्वी के यावत् मध्य में १,७८,००० योजन में, दाक्षिणात्य सुपर्णकुमारों के अड़तीस लाख भवनावास हैं । शेष वर्णन पूर्ववत् । यहाँ पर्याप्तक और अपर्याप्तक दाक्षिणात्य सुपर्णकुमारों के स्थान हैं । यहाँ बहुत-से सुपर्णकुमार देव निवास करते हैं । सुपर्णेन्द्र सुपर्ण कुमारराज वेणुदेव निवास करता है; शेष वर्णन पूर्ववत् । भगवन् ! उत्तरदिशा के पर्याप्त और अपर्याप्त सुपर्णकुमार देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापथ्वी के १,७८,००० योजन में, आदि यावत यहाँ उत्तरदिशा के सपर्ण-कमार देवों के चौंतीस लाख भवनावास हैं । भवन समग्र वर्णन पूर्ववत यावत यहाँ बहत-से उत्तरदिशा के सपर्ण-कमार देव निवास करते हैं, यावत् विचरण करते हैं । इन्हीं (पूर्वोक्त स्थानों) में यहाँ सुपर्णकुमारेन्द्र सुपर्णकुमारराज वेणुदाली निवास करता है, जो महर्द्धिक है; इत्यादि पूर्ववत् ।
सुपर्णकुमारों के समान शेष भवनवासियों को भी और उनके चौदह इन्द्रों को कहना । विशेषता यह है कि उनके भवनों की संख्या, इन्द्रों के नामों, वर्णों तथा परिधानों में अन्तर है। सूत्र-२०६-२०९
भवनावास-असुरकुमारों के ६४ लाख, नागकुमारों के ८४ लाख, सुपर्णकुमारों के ७२ लाख, वायुकुमारों के ९६ लाख । तथा- द्वीपकमारों से अग्निकमारों तक इन छहों के युगलों के प्रत्येक ७६-७६ लाख भवनावास हैं।
दक्षिणदिशा के असुरकुमारों आदि के भवनों की संख्या क्रमशः ३४ लाख, ४४ लाख, ३८ लाख, ५० लाख, ५ से १० तक प्रत्येक के ४०-४० लाख भवन हैं । उत्तरदिशा के असुरकुमारों आदि के भवनों की संख्या क्रमशः ३० लाख, ४० लाख, ३४ लाख, ४६ लाख, ५ से १० तक प्रत्येक के ३६-३६ लाख भवन हैं।
सूत्र - २१०
सामानिकों और आत्मरक्षकों की संख्या-दक्षिण दिशा के असरेन्द्र के ६४ हजार और उत्तरदिशा के असरेन्द्र के ६० हजार हैं; शेष सब के छह-छह हजार सामानिकदेव हैं। आत्मरक्षकदेव उन से चौगुने-चौगुने होते हैं। सूत्र-२११
दाक्षिणात्य इन्द्रों के नाम-चमरेन्द्र, धरणेन्द्र, वेणुदेवेन्द्र, हरिकान्त, अग्निसिंह, पूर्णेन्द्र, जलकान्त, अमित, वैलम्ब और घोष हैं। सूत्र - २१२
उत्तरदिशा के इन्द्रों के नाम-बलीन्द्र, भूतानन्द, वेणुदालि, हरिस्सह, अग्निमाणव, वशिष्ठ, जलप्रभ, अमित वाहन, प्रभंजन और महाघोष इन्द्र है । (ये दसों) उत्तरदिशा के इन्द्र... यावत् विचरण करते हैं । सूत्र-२१३,२१४
वर्गों का कथन-असुरकुमार काले, नाग और उदधिकुमार शुक्ल और सुपर्ण, दिसा और स्तनितकुमार श्रेष्ठ स्वरिखा के समान गौर वर्ण के हैं । विद्युत्कुमार, अग्निकुमार और द्वीपकुमार तपे हुए सोने के समान वर्ण के और वायुकुमार श्याम प्रियंगु के वर्ण के हैं। सूत्र-२१५, २१६
इनके वस्त्रों के वर्ण-असुरकुमारों के वस्त्र लाल, नाग और उदधिकुमारों के नीले और सुपर्ण, दिसा तथा स्तनितकुमारों के अतिश्वेत होते हैं । तथा विद्युत्कुमारों, अग्निकुमारों और द्वीपकुमारों के वस्त्र नीले रंग के और वायुकुमारों के सन्ध्याकाल की लालिमा जैसे हैं ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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