Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र
पद-२-स्थान
सूत्र-१९२
भगवन् ! बादरपृथ्वीकाय पर्याप्तक जीवों के स्थान कहाँ कहे हैं ? गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा से आठ पृथ्वीयों में । रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, तमस्तमःप्रभा और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी में । अधोलोक में-पातालों, भवनों, भवनों के प्रस्तटों, नरकों, नरकावलियों एवं नरक के प्रस्तटों में । ऊर्ध्व-लोक मेंकल्पों, विमानों, विमानावलियों और विमान के प्रस्तटों में । तिर्यक्लोक में-टंकों, कूटों, शैलों, शिखरी-पर्वतों, प्राग्भारों, विजयों, वक्षस्कार पर्वतों, वर्षक्षेत्रों, वर्षधरपर्वतों, वेलाओं, वेदिकाओं, द्वारों, तोरणों, द्वीपों और समुद्रों में । उपपात, समुद्घात में और स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में है।
भगवन् ! बादरपृथ्वीकायिकों के अपर्याप्तकों के स्थान कहाँ कहे हैं ? गौतम ! बादरपृथ्वीकायिक-पर्याप्तकों के समान उनके अपर्याप्तकों के स्थान हैं । उपपात और समुद्घात की अपेक्षा से समस्त लोक में तथा स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भागमें हैं । गौतम! सूक्ष्मपृथ्वीकायिक, जो पर्याप्तक हैं और जो अपर्याप्तक हैं, वे सब एक ही प्रकार के हैं, विशेषतारहित हैं, नानात्व से रहित हैं और हे आयुष्मन् श्रमणो ! वे समग्र लोक में परिव्याप्त हैं।
भगवन् ! बादर अप्कायिक-पर्याप्तकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! (१) स्वस्थान की अपेक्षा से-सात घनोदधियों और सात घनोदधि-वलयों में | अधोलोक में पातालों में, भवनों में तथा भवनों के प्रस्तटों में । ऊर्ध्वलोक में-कल्पों, विमानों, विमानावलियों और विमानों के प्रस्तटों में हैं | तिर्यग्लोक में-अवटों, तालाबों, नदियों, ह्रदों, वापियों, पुष्करिणियों, दीर्घिकाओं, गुंजालिकाओं, सरोवरों, सर:सर:पंक्तियों, बिलों, उज्झरों, निर्झरों, गडों, पोखरों, वप्रों, द्वीपों, समुद्रों, जलाशयों और जलस्थानों में । उपपात, समुद्घात और स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं।
भगवन् ! बादर-अप्कायिकों के अपर्याप्तकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! बादर-अप्कायिक-पर्याप्तकों के स्थान समान उनके अपर्याप्तकों के स्थान हैं । उपपात और समुद्घात की अपेक्षा से सर्वलोक में और स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं । भगवन् ! सूक्ष्म-अप्कायिकों के पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों के स्थान कहाँ कहे हैं ? गौतम ! सूक्ष्म-अप्कायिकों के जो पर्याप्तक और अपर्याप्तक हैं, वे सभी एक प्रकार के और नानात्व से रहित हैं, वे सर्वलोकव्यापी हैं।
भगवन् ! बादर तेजस्कायिक-पर्याप्तक जीवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा से-मनुष्य-क्षेत्र के अन्दर ढ़ाई द्वीप-समुद्रों में, निर्व्याघात से पन्द्रह कर्मभूमियों में, व्याघात से-पाँच महाविदेहों में । उपपात की अपेक्षा से लोक, समुद्घात तथा स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं।
भगवन् ! बादर तेजस्कायिकों के अपर्याप्तकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! बादर तेजस्कायिकों के पर्याप्तकों के स्थान समान उनके अपर्याप्तकों के स्थान हैं। उपपात अपेक्षा से-(वे) लोक के दो ऊर्ध्वकपाटों में तथा तिर्यग्लोक के तट्ट में एवं समुद्घात की अपेक्षा से-सर्वलोक में तथा स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं। भगवन् ! सूक्ष्म तेजस्कायिकों के पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! सूक्ष्म तेजस्कायिक, जो पर्याप्त और अपर्याप्त हैं, वे सब एक ही प्रकार के, अविशेष और नानात्व रहित हैं, वे सर्वलोकव्यापी हैं। सूत्र-१९३
भगवन् ! बादर वायुकायिक-पर्याप्तकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा से सात घनवात, सात घनवातवलय, सात तनुवात और सात तनुवातवलयों में | अधोलोक में-पातालों, भवनों, भवनों के प्रस्तटों, भवनों के छिद्रों, भवनों के निष्कुट प्रदेशों, नरकों में, नरकावलियों, नरकों के प्रस्तटों, छिद्रों और नरकों के निष्कुटप्रदेशों में । ऊर्ध्वलोक में कल्पों, विमानों, विमानों के छिद्रों और विमानों के निष्कुट-प्रदेशों में | तिर्यग्लोक में-पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर में समस्त लोकाकाश के छिद्रों में, तथा लोक के निष्कुट-प्रदेशों में हैं । उपपात की अपेक्षा से-लोक, समुद्घात तथा स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्येयभागों में हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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