Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 22
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य दो प्रकार के हैं । प्रथम और अप्रथमसमय अथवा चरम और अचरमसमय-स्वयंबुद्धछद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य | बुद्धबोधित-छद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य दो प्रकार के हैं-प्रथम और अप्रथमसमय अथवा चरम और अचरमसमय-बुद्धबोधित-छद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य । केवलि-क्षीणकषायवीतराग-चारित्रार्य दो प्रकार के हैं-सयोगिकेवलि और अयोगिकेवलि । सयोगिकेवलिक्षीणकषाय-वीतरागचारित्रार्य दो प्रकार के हैं-प्रथम और अप्रथमसमय अथवा चरम और अचरमसमय-सयोगिकेवलि-क्षीणकषाय-वीतरागचारित्रार्य । अयोगिकेवलि-क्षीणकषाय-वीतरागचारित्रार्य दो प्रकार के हैं-प्रथम और अप्रथमसमय अथवा चरम और अचरमसमय-अयोगिकेवलि-क्षीणकषाय-वीतरागचारित्रार्य । प्रकारान्तर से चारित्रार्य पाँच प्रकार के हैं । सामायिक-चारित्रार्य, छेदोपस्थापनिक-चारित्रार्य, परिहारविशद्धिक-चारित्रार्य, सक्ष्म-सम्पराय-चारित्रार्य और यथाख्यात-चारित्रार्य | सामायिक-चारिक हैं-इत्वरिक और यावतकथित सामायिक-चारित्रार्य । छेदपस्थापनिक-चारित्रार्य दो प्रकार के हैं-सातिचार और निरतिचार-छेदपस्थापनिक-चारित्रार्य | परिहारविशुद्धि-चारित्रार्य दो प्रकार के हैं-निर्विश्यमानक और निर्विष्टकायिकपरिहारविशुद्धि-चारित्रार्य। सूक्ष्मसम्पराय-चारित्रार्य दो प्रकार के हैं-संक्लिश्यमान और विशुद्धयमान | यथाख्यातचारित्रार्य दो प्रकार के हैं-छद्मस्थ और केवलियथाख्यात । सूत्र - १९१ देव कितने प्रकार के हैं ? चार प्रकार के हैं । भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक । भवन-वासी देव दस प्रकार के हैं-असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधि-कुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार और स्तनितकुमार | ये देव संक्षेप में दो प्रकार के हैं । पर्याप्तक और अपर्याप्तक । वाणव्यन्तरदेव आठ प्रकार के हैं । किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच । वे संक्षेप में दो प्रकार के हैं; पर्याप्तक और अपर्याप्तक । ज्योतिष्क देव पाँच प्रकार के हैं । चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे । वे देव संक्षेप में दो प्रकार के हैं पर्याप्तक और अपर्याप्तक । वैमानिक देव दो प्रकार के हैं-कल्पोपपन्न और कल्पातीत । कल्पोपपन्न देव बारह प्रकार के हैं-सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत । वे देव संक्षेप में दो प्रकार के हैं । पर्याप्तक और अपर्याप्तक । कल्पातीत देव दो प्रकार के हैं-ग्रैवेयकवासी और अनुत्तरौपपातिक । ग्रैवेयक देव नौ प्रकार के हैं । अधस्तनअधस्तन-ग्रैवेयक, अधस्तन-मध्यम-ग्रैवेयक, अधस्तन-उपरिम-ग्रैवेयक, मध्यम-अधस्तन-ग्रैवेयक, मध्यम-मध्यमग्रैवेयक, मध्यम-उपरिम-ग्रैवेयक, उपरिम-अधस्तन-ग्रैवेयक, उपरिम-मध्यम-ग्रैवेयक और उपरिम-उपरिम-ग्रैवेयक । ये संक्षेप में दो प्रकार के हैं पर्याप्तक और अपर्याप्तक । अनुत्तरौपपातिक देव पाँच प्रकार के हैं-विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध । पद-१-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 22

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