Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र सूत्र-१६५
यह खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यंचयोनिकों की प्ररूपणा हुई। सूत्र - १६६
मनुष्य किस प्रकार के होते हैं ? दो प्रकार के । सम्मूर्छिम और गर्भज । सम्मूर्छिम मनुष्य कैसे होते हैं ? भगवन् ! सम्मूर्छिम मनुष्य कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! मनुष्य क्षेत्र के अन्दर, ४५ लाख योजन विस्तृत द्वीप-समुद्रों में, पन्द्रह कर्मभूमियों में, तीस अकर्मभूमियों में एवं छप्पन अन्तर्वीपों में गर्भज मनुष्यों के उच्चारों में, मूत्रों में, कफों में, सिंघाण में, वमनों में, पित्तों में, मवादों में, रक्तों में, शुक्रों में, सूखे हुए शुक्र के पुद्गलों को गीला करने में, मरे हुए जीवों के कलेवरों में, स्त्री-पुरुष के संयोगों में, गटरों में अथवा सभी अशुचि स्थानों में उत्पन्न होते हैं । इन की अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र की होती है । ये असंज्ञी मिथ्यादृष्टि एवं अपर्याप्त होते हैं । ये अन्तर्मुहूर्त की आयु भोग कर मर जाते हैं।
गर्भज मनुष्य तीन प्रकार के हैं । कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक और अन्तरद्वीपक ।
अन्तरद्वीपक अठ्ठाईस प्रकार के हैं । एकोरुक, आभासिक, वैषाणिक, नांगोलिक, हयकर्ण, गजकर्ण, गोकर्ण, शष्कुलिकर्ण, आदर्शमुख, मेण्ढमुख, अयोमुख, गोमुख, अश्वमुख, हस्तिमुख, सिंहमुख, व्याघ्रमुख, अश्वकर्ण, सिंहकर्ण, अकर्ण, कर्णप्रावरण, उल्कामुख, मेघमुख, विद्युन्मुख, विद्युद्दन्त, घनदन्त, लष्टदन्त, गूढदन्त और शुद्धदन्त ।
अकर्मभूमक मनुष्य तीस प्रकार के हैं । पाँच हैमवत, पाँच हैरण्यवत, पाँच हरिवर्ष, पाँच रम्यकवर्ष, पाँच देवकरु और पाँच उत्तरकरु-क्षेत्रों में ।
कर्मभूमक मनुष्य पन्द्रह प्रकार के हैं । पाँच भरत, पाँच ऐरवत और पाँच महाविदेहक्षेत्रों में । वे संक्षेप में दो प्रकार के हैं-आर्य और म्लेच्छ । म्लेच्छ मनुष्य अनेक प्रकार के हैं । शक, यवन, किरात, शबर, बर्बर, काय, मरुण्ड, उड्ड, भण्डक, निन्नक, पक्कणिक, कुलाक्ष, गोंड, सिंहल, पारस्य, आन्ध्र, उडम्ब, तमिल, चिल्लल, पुलिन्द, हारोस, डोंब, पोक्काण, गन्धाहारक, बहलिक, अज्जल, रोम, पास, प्रदुष, मलय, चंचूक, मूयली, कोंकणक, मेद, पल्हव, मालव, गग्गर, आभाषिक, कणवीर, चीना, ल्हासिक, खस, खासिक, नेर, मंढ, डोम्बिलक, लओस, बकुश, कैकय, अरबाक, हूण, रोमक, मरुक रुत और चिलात देशवासी इत्यादि ।
आर्य दो प्रकार के हैं । ऋद्धिप्राप्त और ऋद्धिअप्राप्त । ऋद्धिप्राप्त आर्य छह प्रकार के हैं । अर्हन्त, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, चारण और विद्याधर | ऋद्धि-अप्राप्त आर्य नौ प्रकार के हैं । क्षेत्रार्य, जात्यार्य, कुलार्य, कार्य, शिल्पार्य, भाषार्य, ज्ञानार्य, दर्शनार्य और चारित्रार्य ।
क्षेत्रार्य साढे पच्चीस प्रकार के हैं । यथासूत्र- १६७-१७२
मगध में राजगह, अंग में चम्पा, बंग में ताम्रलिप्ती, कलिंग में काञ्चनपुर, काशी में वाराणसी। सूत्र-१६८
कौशल में साकेत, करु में गजपर, कशात में सौरीपर, पंचाल में काम्पिल्य, जांगल में अहिच्छत्रा । सौराष्ट में द्वारावती, विदेह में मिथिला, वत्स में कौशाम्बी, शाण्डिल्य में नन्दिपुर, मलय में भद्दिलपुर । मत्स्य में वैराट, वरण में अच्छ, दशार्ण में मृत्तिकावती, चेदि में शुक्तिमती, सिन्धु-सौवीर में वीतभय । शूरसेन में मथुरा, भंग में पावापुरी, पुरिवर्त्त में मासा, कुणाल में श्रावस्ती, लाढ़ में कोटिवर्ष । केकयार्द्ध में श्वेताम्बिका, (ये सब २५|| देश) आर्य (क्षेत्र) हैं। इन में तीर्थंकरों, चक्रवर्तियों, बलदेवों और वासदेवों का जन्म होता है। सूत्र-१७३
यह हुआ क्षेत्रार्यों का वर्णन । जात्यार्य छह प्रकार के हैं। सूत्र-१७४
अम्बष्ठ, कलिन्द, वैदेह, वेदग, हरित एवं चुंचुण; ये छह इभ्य जातियाँ हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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