Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारागसूत्रे
आचारसूत्रे मुनिघासिलालः,
प्रयत्नतः साधुजनेष्टसिद्धथै । आचारचिन्तामणिमादधेऽहं,
भव्याः सदैनं हृदि धारयन्तु ॥२॥ अनेक लब्धिग्राहि चौदह पूर्वधारक जो तथा,
अध्यात्मशक्ति विभूतियुक्त विराजते हैं जिन यथा ॥
(२)
आचार्य गणधर लोक हित गौतमपदाम्बुज में नती,
मेरी विराजे सर्वदा देवे विमल मति शुभ गती । निर्दोषतत्त्वनिरूपिणी उनकी समुज्ज्वल भारती,
धरते उसे हिय में सदा जो भव्यजन को तारती ॥
(३)
विनीत 'घासीलाल' मुनि जनता तथा मुनि के लिये,
भगवत्सुभाषितरत्न 'आचाराङ्ग गुणगुंफित किये । मणिमालिका के रूपमें करते प्रकाशित हैं अभी,
आचारचिन्तामणि हृदयगृह में रखे जनता सभी ॥
(४)
जड द्रव्य चिन्तामणि हृदय बाहिरे जाते धरे,
'आचारचिन्तामणि' (टीका) हृदयमें धारिता तमको हरे ॥ सब भव्यजन संसार वन में घूमते इसको गहे,
जिससे प्रकाशित मार्ग हो निज लक्ष्य पद सत्वर लहे ॥
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧