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२४ | अध्यात्म-प्रवचन के समान है, जिसमें शुद्ध अमृत रस का अभाव नहीं है, प्रत्येक आत्मा में अनन्त-अनन्त गुण हैं । वह कभी गुणों से रिक्त एवं शून्य नहीं हो सकता । आत्मा उस धन-कुबेर के पुत्र के समान है, जिसके पास कभी धन की कमी नहीं होती, भले ही वह अपने उस अक्षय भंडार का दुरुपयोग ही क्यों न कर रहा हो। शक्ति का अक्षय धन तो आपके पास है, परन्तु उसे दुरुपयोग से हटा कर सदुपयोग में लगाना है। यदि इतना कर सके, तो आपके जीवन का समस्त दुःख सुख में बदल जाएगा- अशान्ति शान्ति में बदल जाएगी और विषमता समता में बदल जाएगी। जीवन का हा-हाकार जय-जयकार में परिणत हो जायगा । फिर जीवन में किसी भी प्रकार के द्वन्द्व, संघर्ष और प्रतिकुल भाव कभी नहीं रहेंगे । ___मैं प्रवचन के प्रारम्भ में ही आपसे कह चुका हूँ कि संसारी आत्मा के पास सता भी है और चेतना भी है। यदि उसके पास कुछ कमी है तो स्थायी सुख एवं स्थायी आनन्द की है। आत्मा को परमात्मा बनने के लिए यदि किसी वस्तु की आवश्यकता है, तो वह है उसका अक्षय एवं अनन्त आनन्द । अक्षय आनन्द की उपलब्धि के लिए आत्मा में निरन्तर उत्कण्ठा रहती है। वह सदा आनन्द और सुख की खोज करता है । संसार के प्रत्येक प्राणी को सुख की खोज क्यों रहती है ? इसलिए कि सुख और आनन्द आत्मा का निज रूप है। चींटी से लेकर हाथी तक और गन्दो नाली के कीट से लेकर सुरलोक में रहने वाले इन्द्र तक सभी सुख चाहते हैं, आनन्द चाहते हैं। विश्व की छोटी-सेछोटी चेतना भी सुख चाहती है। भले ही, उस सुख को वह अपनी भाषा में अभिव्यक्त न कर सके। और यह भी सम्भव है कि सबकी सूख की कल्पना एक जैसी न हो। किन्तु यह निश्चित है कि सबके जीवन का ध्येय सुख प्राप्ति है। सुख कहाँ मिलेगा, कैसे मिलेगा? यह तथ्य भी सबकी समझ में एक जैसा नहीं है। किन्तु सचेतन जीवन में कभी भी सुख की अभिलाषा का अभाव नहीं हो सकता, यह ध्रुव सत्य है । सुख की अभिलाषा तो सभी को है, किन्तु उसे प्राप्त करने का प्रयत्न और वह भी उचित प्रयत्न कितने करते हैं ? यह एक विचारणीय प्रश्न है। जो उचित एवं सही प्रयत्न करेगा वह एक-नएक-दिन अवश्य ही सुख पाएगा, इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं है । सुख की अभिलाषा प्रत्येक में होने पर भी वह सुख कहाँ मिलेगा, इस तथ्य को बिरला ही समझ पाता है । निश्चय ही उक्त अनन्त एवं
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