Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 06
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
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________________ वीर 1380 - अमिधानराजेन्द्रः - भाग 6 वीर विउव्विऊण ठिया, ताहे सो तं पाय, तस्स उवरि फुसति, ताहे सो वच्छओ भणइ-- किं अम्मो ! एस ममं उवरि अमेज्झलित्तयं पादं फुसइ? ताहे सा गावी माणुसियाए वायाए भणइ - 'कि तुमे पुत्ता ! अधिति करेसि ? एसो अज मायाए सम संवासं गच्छइ, तं एस एरिसं अकिचं ववसइ, अन्नं पि किं न काहिति त्ति / ताहे ते सोऊणं तस्स चिंता समुप्पण्णा-गतो पुच्छिहामि, ताहे पविट्ठो पुच्छइ-का तुज्झ उप्पत्ती ? ताहे सा भणति-किं तव उप्पत्तीए ? महिलाभावं दाएइ सा, ताहे सो भणति-अन्नं पि एत्ति मोल्लं देमि, साह सब्भावं ति सवहसावियाए सव्यं सिद्धृति, ताहे सो निग्गओ सग्गाम गओ, अम्मापियरो य पुच्छइ, ताणि न साहे ति, ताहे ताव अणसिओ ठिओ जाव कहियं / ताहे सो त मायरं मोयावेत्ता वेसाओ पच्छा विरागं गओ। एयावत्था विसय त्ति पाणामाएपवज्जाए पव्वइओ, एस उप्पत्ती। विहरतोयतं कालं कुम्भग्गामे आयावेइ, तस्स य जडाहिंतो छप्पयाओआइयकिरणताविआओपडंति, जीवहियाए पडियाओ चेव सीसे छुभइ। तं गोसालो दठूण ओसरित्ता तत्थ गओ भणइ - कि ? भवं मुणी मुणिओ उयाहु जूआसेज्जातरो? कोऽर्थः, 'मन' ज्ञाने, ज्ञात्वा प्रव्रजितो नेति, अथवा- कि इत्थी पुरिसे वा? एकसिं दो तिणि वारे, ताहे वेसिआयणो रुट्टो तेयं निसिरइ, ताहे तस्स अणुकंपणट्टाए वेसियायणस्स य उसिणतेयपडिसाहरणट्ठाए एत्थंतरा सीयलिया तेयलेस्सा निस्सारिया, सा जंबूदीवं भगवओ सीयलिया तेयलेसा, अभितरओ वेढेति, इतरातं परियंचति, सा तत्थेव सीयलियाए विज्झाविया, ताहे सो सामिस्स रिद्धिं पासित्ता भणति-से गयमेवं भगवं ! से गयमेव भयवं?. कोऽर्थः ?- न याणामि जहा तुभं सीसो, खमह, गोसालो पुच्छइसामी ! किं एस जूआसेज्जातरो भणति? सामिणा कहिय, ताहे भीओ पुच्छइ-किह संखित्तविउलतेयलेस्सो भवति? भगवं भणति-जे णं गोसाला ! छठे छट्टेण अणिक्खित्तेण तवोकम्मेणं आयावेति, पारणए सणहाए कुम्मास, पिडियाए एगेण य वियडासणेण जावेइ जाव छम्मासासे ण संखित्तविउलतेयलेस्सो भवति / अण्णया सामी कुम्मगामाओ सिद्धत्थपुरंपत्थिओ, पुणरवि तिलथंबगस्स अदूरसामंतण वीतिवयइ, पुच्छइ सामि जहा-न निष्फण्णो कहिय जहा णिप्फण्णो, तं एवं वणस्सईणं पउट्टपरिहारो, (पउट्टपरिहारो नाम परावर्त्य परावर्त्य तस्मिन्नेव सरीरके उववज्जंति) तं असद्दहमाणो गंतूण तिलसंगलियंहत्थेण फोडिता तेतिले गणेमाणो भणति-एवं सव्वजीवावि पउट्ट परियदृति, णियइवादंधणियमवलंबेत्तातं करेइज उवदिट्ट सामिणा जहा संखित्तविउलतेयलेस्सो भवति, ताहे सोसामिस्स पासाओ फिट्टो सावत्थीए कुंभकारसालाए ठिओ तेयनिसगं आयावेइ, छहिं मासेहि जाओ, कूवतडे दासीओ विण्णासिओ, पच्छा छदिसाअरा आगया, तेहिं निमित्तलल्लोगो कहिओ, एवं सो अजिणो जिणप्पलावी विहरइ, एसा से विभूती संजाया। वेसालीए पडिम, डिंभमुणि(णी) उत्ति तत्थ गणराया। पूएइ संखनामो, चित्तो नावाएँ भगिणिसुओ॥४६४|| भगवं पि वेसालिं नगरि पत्तो, तत्थ पडिमं ठिआ, डिभेहिं मुणिउत्ति काऊण खलयारिओ, तत्थ 'संखो' नाम गणराया, सिद्धत्थस्स रणो मित्तो सो त पूएति / पच्छा वाणियग्गामं पहाविओ, तत्थंतरा गंडइया नदी, तं सामी णावाए उत्तिण्णो ते णाविआ सामि भणंति-देहि मोल्लं, एवं था हंति, तत्थ संखरण्णो भाइणिज्जो चित्तो नाम दूएकाए गएल्लओ णावाकडएण एइ, ताहे तेण मोइओ महिओय। वाणियगामायावण, आनंदो ओहिपरीसहसहिंति। सावत्थीए वासं चित्ततवो साणुलट्ठि वहिं।।४६५|| तत्तो वाणियग्गामं गओ, तस्स बाहिं पडिमं ठिओ, तत्थ आणंदो नाम सावओ, छटुंछट्टेण आयावेइ, तस्स ओहिनाणं समुप्पण्णं, जाव पेच्छइ तित्थंकर, वंदति भणति - अहो सामिणा परीसहा अहियासेजंति, एचिरेण कालेण तुज्झं केवलनाण उप्पजिहिति पूएति य / ततो सामी सावत्थि गओ, तत्थ दसमं वासारत्तं, विचित्तं च तवोकम्मं ठाणादिहि। ततो साणुलट्ठियं नाम गामं गओ। पडिमा भद्द महाभ-दसवओभद्द पढमिआ चउरो। अट्ठय वीसाणंदे, बहुलिय तह उज्झिए दिव्वा / / 466|| तत्थ भद्रं पडिमं ठाइ, केरिसा भद्दा ? पुव्वाहुत्तो दिवसं अच्छइ, पच्छा रत्तिं दाहिणहुत्तो, अवरेण दिवसं उत्तरेण रति, एवं छट्ठभत्तेण निटुिआ, पच्छा न चेव पारेइ अपारिओ चेव महाभ पडिमं ठाइ, सा पुण पुव्वाए दिसाए अहोरत्तं एवं चउसुवि दिसासुचत्तारि अहोरत्ताणि, एवं सादसमेणं निहाइ, ताहे अपारिओ चेव सव्वओभई पडिमं ठाइ, सा पुण सव्वतोभद्दा इंदाए अहोरत्तं एवं अग्गेईए जामाए नेरइए वारुणीए वायव्वाए सोम्माए ईसाणीए विमलाए जाइंउड्डलोइयाइंदव्याणि ताणि निज्झायति, तमाएहेडिल्लाई, एवमेवेसा दसहिं वि दिसाहिं वावीसइमेणं समप्पइ। 'पढमिआ चउरो' ति पुव्वाए दिसाए चत्तारि जामा, दाहिणाए वि चत्तारि जामा, अवराए वि चत्तारि जामा, उत्तराए वि चत्तारि जामा, बितियाए अट्ट, पुयाए बे चउरो जाभाणं एवं दाहिणाए उत्तराए वि अट्टएए अट्ठाततियाए वीस, पुवाए दिसाए बेचउक्कं जामाणं जाव अहो वेचउक्का, एए बीसंपच्छा तासुसमत्तासु आणंदस्स गाहावइस्स घरे बहुलियाएदासीए महाणसिणीए भायणाणि खणीकरें तीए दोसीण छड्डेउकामाए सामी पविट्ठो, ताए भणति-किं भगवं ! अट्ठो सामिणा पाणी पसारिओ, ताए परमाए सद्धाए दिण्णं, पंच दिव्वाणि पाउब्भूआणि। दढभूमीए बहिआ, पेढालं नाम होइ उज्जाणं। पोलासचेइयम्मी, ठिएगराई महापडिमं // 467|| ततो सामी दढभूमि गओ, तीसे बाहिं पेढालं नाम उजाणं, तत्थ पोलास चेइअं, तत्थ अट्ठमेणं भत्तेणं एगराइयं पडिमं ठिओ, एगपोग्गलनिरुद्धदिट्टी अणमिसनयणो, तत्थविजे अचित्ता पोग्गला तेसु दिट्टि निवेसेइ. सचित्तेहिं

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