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[ १३ ] जबान और नाड़ी देखता है। फेफड़े और दिलकी हालत जाननेके लिये छाती और पीठ में अङ्गुलीसे आवाज करता है और एक यन्त्रले छाती और पीठके भीतरवाले शब्द सुनता है। फिर जिगर, पेट और जननेन्द्रियकी जाँच करता है। स्त्रियोंके जननेन्द्रियकी परीक्षा भी एक ऐने यन्त्रसे करता है जिसमें शीशा लगा रहता है। उस शीशेमें जननेन्द्रियकी भीतरी दशा बिलकुल प्रतिविम्बिति हो जाती है। खून में कितनी गरमी है, इस बातका निश्चय थर्मामीटरकी सहायताले किया जाता है। खून, गल, थूक, पेशाब
और पाखानेकी जाँच माइक्रासकोप या अनुवीक्षकके द्वारा की जाती है। कदाचित् बदनके चमड़े और पुट्ठोंकी जाँच भी इसी प्रकारसे की जाती है। इस साधारण परीक्षाके बाद अक्सर
आँख कान आदि शरीरके अलग अलग अंगोंकी परीक्षा बड़े विस्तारके साथ प्रारम्भ होती है। किन्तु अलग-अलग अंगोंकी परीक्षा आम तौरपर उन डाक्टरोंसे करवायी जाती है जो उन उन अङ्गोंकी बीमारियोंके इलाजमें खास तौरपर होशियार होते हैं। अन्तमें इन सब परीक्षाओं के बाद डाक्टर कहता क्या है ? वह रोगीसे यह कहता है कि देखो तुम्हारे वदनका फलाँ हिस्सा तो बिलकुल तन्दुरुस्त है पर फलाँ हिस्सेमें कुछ कुछ गड़बड़ी है और फलाँ हिस्सा बहुत ही बुरी हालतमें है। इस बातके बारेमें डाक्टर लोग बहुत ही कम राय देते हैं कि कुल समूचे शरीरकी हालत कैसी है ? अगर कोई डाक्टर रोगीके समूचे शरीरके सम्बन्धमें कभी इस तरहकी राय जाहिर भी करे
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