________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[ २४ ]
तो यह न समझ लेना चाहिये कि वह रोगीकी परीक्षा करके यह राय जाहिर कर रहा है। बल्कि यह समझना चाहिये कि रोगीकी बाहरी आकृति देखकर और कदाचित् उसका बयान सुनकर जो भाव उसके हृदयमें पैदा हुए उन्हीं भावोंकी बदौलत वह अपनी इस तरह की राय जाहिर करता है । क्योंकि वर्षोंतक रोगियों की परीक्षा करते करते डाक्टरोंकी नजर तेज हो जाती है और वे फौरन जान लेते हैं कि रोगीकी आम तौर से हालत कैसी है।
अब आप पूछ सकते हैं कि फिर इस एलोपेथी चिकित्सा शास्त्रकी क्या जरूरत है ? मैं तो कभी इस दावेको नहीं मानता कि इस चिकित्सा शास्त्र में वह सब गुण हैं जो आम तौरपर इसके सम्बन्धमें कहे जाते हैं ।
पहली बात तो यह है कि इसपर भरोसा नहीं किया जा सकता । यदि भिन्न-भिन्न डाक्टर एक ही रोगी की परीक्षा करें तो उस रोगी के बारेमें जितने डाक्टर उतनी रायें सुनकर आपको आश्चर्य होगा। बड़े-बड़े मशहूर डाक्टर भी अपनी परीक्षासे अक्सर एक दूसरे से बिलकुल विरुद्ध परिणाम निकालते हैं। अगर बदनके किसी खास हिस्से के चारों ओर विजातीय द्रव्य बहुत ज्यादा नहीं जमा है तो डाक्टर अक्सर धोखे में घा जाते हैं और यह कह देते हैं कि रोगी तो बिलकुल चंगा है । पर असल में रोगी ही इस बातको जानता है कि वह कितना बीमार है और उसकी हालत कितनी खराब होती जा रही है। ऐसी हालत खासकर उन
For Private And Personal Use Only